सोमवार, 28 सितंबर 2015

पितृपक्ष पर्व 28 सितंबर से
अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान एवं श्रद्धा प्रकटकर आशीर्वाद प्राप्ति का पवित्रपर्व श्राद्ध 28 सितंबर सोमवार से आरम्भ हो रहा है, इसदिन प्रतिपदा तिथि सुबह 08 बजकर 20 मिनट पर ही आरंभ हो रही है, अतः प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध इसीदिन दोपहर 11बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक के मध्य करना शुभ रहेगा | शास्त्रों-पुराणों में पितृों की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि पितृो वै जनार्दनः, पितृो वै वेदाः, पितृो वै ब्रह्मः, पितृ ही जनार्दन हैं, पितृ ही वेद है, पितृ ही ब्रह्म हैं, अतः जन्म-जन्मान्तर तक अनेकों योनियों में भटकते हुए जीव जब मनुष्य योनि में आता है तो उसे पितृरुपी जनार्दन के प्रतिश्राद्ध-तर्पण करने का अवसर मिलता है जिससे उसे वर्तमान के साथ-साथ भविष्य में भी होनेवाले जन्मों में उत्तम लोक और उत्तम योनि प्राप्त हो | जो मनुष्य वर्ष पर्यन्त दान-पुण्य, पूजा-पाठ आदि नहीं करते वै भी आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में केवल अपने पितृों का श्राद्ध-तर्पण करके ईष्टकार्यसिद्धि एवं उन्नति प्राप्त कर सकते हैं | एक वर्ष में बारह महीने की बारह अमावस्यायें, सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग के प्रारम्भ की चारों तिथियाँ, मनुवों के आरम्भ की चौदह मन्वादि तिथियाँ, बारह संक्रांतियां, बारह वैधृति योग, बारह व्यतिपात योग, पंद्रह महालय-श्राद्ध पक्ष की तिथियाँ, पांच अष्टका, पांच अन्वष्टका और पांच पूर्वेद्युह ये श्राद्ध करने के 96 अवसर हैं जिनमें मनुष्य अपने पूर्जवों के प्रति श्राद्ध तर्पण करके पितृदोष से मुक्ति पा सकता है | जिन जातकों की जन्मकुंडलियों में पितृदोष हो, उनके लिए तो यह अवसर वरदान की तरह है क्योंकि इन्हीं दिनों पितृ पृथ्वी पर पधारते हैं | श्राद्ध का समय आ गया है ऐसा विचार करके पितृ अपने-अपने कुलों में मन के सामान तीव्र गति से आ पहुचते हैं, और जिन ब्राह्मणों को श्राद्ध में भोजन कराया जाता है,उन्हीं के शरीर में प्रविष्ट होकर पितृगण भी भोजन करते हैं, उसके बाद अपने कुल के श्राद्धकर्ता को आशीर्वाद देकर पुनः पितृलोक चले जाते हैं | किसी भी माह की जिस तिथि में परिजन की मृत्यु हुई हो श्राद्धपक्ष में उसी तिथि के आने पर अपने पितृ का श्राद्ध करें | पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गयी हो उन नारियों का श्राद्ध नवमी तिथि में करें | एकादशी में वैष्णव सन्यासी का श्राद्ध, शस्त्र, आत्म हत्या, विष, वाहन दुर्घटना,सर्पदंश, ब्राह्मण श्राप ,वज्रघात, अग्नि से जले हुए, दंतप्रहार-पशु से आक्रमण, फांसी लगाकर मृत्य, ज्वरप्रकोप, क्षयरोग, हैजा, डाकुओं के मारे जाने से हुई मृत्यु वाले पूर्जवों का श्राद्ध चतुर्दशी को करें | जिन पूर्जवों की तिथि ज्ञात न हो एवं मृत्यु पश्च्यात अंतिम संस्कार न हुआ हो उनका श्राद्ध-तर्पण अमावस्या को करना चाहिए | सभी पितृों के स्वामी भगवान् विष्णु के शरीर के पसीने से तिल की और रोम से कुश की उतपत्ति हुई है, अतः तर्पण और अर्घ्य के समय तिल और कुश का प्रयोग करें |
 पं जय गोविन्द शास्त्री 

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

सिद्धि विनायक चतुर्थी 17 सितंबर को
सभी प्रकार की विपत्तियों का हरण करके धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करने वाले श्रीसिद्धि विनायक गणेश का जन्मदिन
भौदों शुक्लपक्ष चतुर्थी बृहस्पतिवार को मनाया जायेगा | गणेशभक्तों के लिए सबसे बड़ी खुशखबरी यह है कि इस वर्ष का जन्मदिन स्वयं गणेश के जन्म नक्षत्र स्वाति में ही पड़ रहा है जो अत्यंत दुर्लभ संयोग है, अतः इस वर्ष की विनायक आराधना का फल परम शुभकारी और कर्ज से मुक्ति दिलाने वाला सिद्ध होगा | गणेश सभी गणों, ॠद्धियों और सिद्धियों के स्वामी हैं जो सरल पूजा-पाठ से ही प्रसन्न होकर अपने भक्तों का अभीष्ट फल प्रदान करते हैं | पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पंचभूतों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश में पृथ्वी शिव, जल गणेश, तेज-अग्नि शक्ति, वायु सूर्य और आकाश विष्णु हैं इन पांच तत्वों के वगैर जीव-जगत की कल्पना नहीं की जा सकती | जल तत्व के अधिपति गणेश हर जीव में रक्त रूप में विराजते हुए चारों देवों सहित पंचायतन में पूज्य हैं जैसे श्रृष्टि का कोई भी शुभ-अशुभ कार्य जल के बिना पूर्ण नहीं हो सकता वैसे ही गणेश पूजन के बिना कोई भी जप-तप, अनुष्ठान आदि कर्म पूर्ण नहीं नहीं हो सकते | ज्योतिषशास्त्र में अश्विनी आदि सभी नक्षत्रों के अनुसार देवगण, मनुष्यगण और राक्षसगण इन तीनो गणों के ईश गणेश ही हैं | 'ग' ज्ञानार्थवाचक और 'ण' निर्वाणवाचक है 'ईश' अधिपति हैं अर्थात ज्ञान-निर्वाणवाचक गण के ईश गणेश ही परब्रह्म हैं | योग-शास्त्रीय साधना में शरीर में मेरुदंड के मध्य जो सुषुम्ना नाडी है, वह ब्रह्मरंध्र में प्रवेश करके मष्तिष्क के नाडी समूह से मिलजाती है इसका आरम्भ मूलाधार चक्र ही है इसी 'मूलाधार चक्र' को गणेश स्थान कहते हैं |गणेश्वरो विधिर्विष्णु: शिवो जीवो गुरुस्तथा | षडेते हंसतामेत्य मूलाधारादिषु स्थिताः | आध्यात्मिक भाव से विनायक जगत की आत्मा है सबके स्वामी हैं सबके ह्रदय की बात समझ लेने वाले सर्वज्ञ हैं ! इन्द्रियों के स्वामी होने से भी इन्हें गणेश कहा गया है | इनका सर हाथी का और वाहन मूषक है | ये पाश, अंकुश और वरमुद्रा धारण करते हैं पाश मोह का प्रतीक है जो तमोगुण प्रधान है अंकुश वृत्तियों का प्रतीक है जो रजोगुण प्रधान है वरमुद्रा सत्वगुण का प्रतीक है इनकी उपासना करके प्राणी तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण से ऊपर उठकर इनकी कृपा का पात्र बनता है | हम इस वर्ष की अति शुभफल कारी सिद्धिविनायक चतुर्थी का भक्ति-भाव से पूजन करके अपने सकल मनोरथ सिद्ध करसकते हैं | पं जयगोविन्द शास्त्री 

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

बृहस्पति का उदय, महंगाई पर नियंत्रण
देवगुरु बृहस्पति विगत माह 12 अगस्त को दोपहर 11 बजकर 54 मिनट पर अस्त हो गये थे जो आगामी 07 सितंबर सोमवार को दिन
के 03 बजकर 52 पर उदय हो रहे हैं | इनके उदय होने के साथ ही बढ़ रही महंगाई एवं बीमारियों में कमी आएगी, वर्षा के अच्छे आसार बनेंगें, जिससे किसानों को अधिक लाभ होगा किन्तु तेज हवाओं और चक्रवातीय/समुद्रीय तूफानों का खतरा भी बढेगा | गुरु के उदय होने का सर्वाधिक लाभ शेयर बाज़ार पर पड़ेगा जिसके फलस्वरूप हीरे-जवाहरात, सोने-चांदी तथा कमोडिटी सेक्टर्स के निवेशकों को भारी मुनाफा होगा | इन सेक्टर्स में निवेशकों का रुझान बढेगा जिसका प्रभाव देश के विदेशी मुद्राभंडार की वृद्धि के रूप में होगा | डालर के मुकाबले रुपये में भी मजबूती आयेगी | निफ्टी के टॉप 30 कंपनियों के शेयरों में भी भारी सुधार से बाज़ार में खरीदारी का माहौल बनेगा | शीघ्र ही निफ्टी सूचकांक 8000 {आठ हज़ार} का आंकड़ा भी पार कर लेगा | बैंकिंग एवं बीमा सेक्टर्स, आई टी, फार्मा, गैस, टेलिकॉम तथा भारी उद्योग के सेक्टर्स के निवेशकों को और भी जल्दी राहत के आसार बनेंगें | जिन जातकों के बृहस्पति वर्तमान समय में अशुभ गोचर में हैं या, जो इनकी महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशासे प्रभावित हैं उनके लिए के गुरु का उदय होना शुभ संकेत है | परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों अथवा प्रतियोगिताओं में बैठने वाले अन्य जातकों के लिए भी यह वरदान की तरह है | किसी भी जातक की जन्मकुंडली में गुरु छठें, आठवें और बारहवें भाव में अशुभ फलदायी होते हैं | जो जातक का गर्ग, गौतम एवं शांडिल्य गोत्र में ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए हों, वै यदि मांस-मदिरापान का सेवन कर रहे हों तो, ऐसे जातकों के त्रिकोण लग्न, पंचम एवं नवम् भाव/गोचर में भी से गुरु अशुभ फलदायी होते हैं | वर्तमान में सिंह राशिस्थ गुरु मीन राशि के छठें, मकर राशि के आठवें एवं कन्या राशि के बारहवें भाव में चल रहे हैं जिसके परिणाम स्वरूप इन जातकों को अधिक संयम और सावधानी बरतने की जरुरत है | पं जयगोविन्द शास्त्री