सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

अच्छे विद्यार्थी बनने के लिए करें माँ ब्रह्मचारिणी का स्तवन- पं जयगोविन्द शास्त्री
ब्रह्मं चारयितुम शीलं यस्याः सा ब्रह्मचारिणी
अर्थात- जो ब्रह्मज्ञान दिलाकर मोक्ष मार्ग को प्रसस्त करे वे ही माँ ब्रह्म चारिणी हैं | माँ शक्ति का दूसरा रूप देवी ब्रह्म चारिणी का है जिस प्रकार नवधा भक्ति में परमेश्वर प्राप्ति के नौ मार्ग बताये गए हैं उसी प्रकार देवी सती भी नौ रूपों के द्वारा अलग-अलग तप करके परमेश्वर श्री शिव को प्राप्त किया | तभी इन नौ दुर्गाओं को नवधा भक्ति का सूक्ष्म तत्व भी कहा जाता है ये वही माँ हैं जो भक्तों को मोहजाल से मुक्ति दिलाती हैं |नवरात्र के दूसरे दिन इन्हीं माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-आराधना की जाती है | साधक इस दिन अपने मन को माँ के श्रीचरणों मे एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और माँ की कृपा प्राप्त करते हैं | ऋषि मुनियों ने कहा है कि 'वेदस्तत्वंतपो ब्रह्म, वेदतत्व और ताप का अर्थ है ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है, इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमण्डल रहता है | श्रद्धालु भक्त व साधक अनेक प्रकार से भगवती की अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए व्रत-अनुष्ठान व साधना करते हैं | अपनी कुंडलिनी जागृत करने के लिए साधक इस दिन स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं |माँ का ध्यान मंत्र इस प्रकार है- 'दधाना कपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू | देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||
पूजन विधि -
माँ मूलरूप से तपस्विनी हैं भगवान् शिव को पति रूप में पाने के लिए इन्होंने हजारों वर्ष तक घोर तपस्या की और जंगल के फलों-पत्तों को खाकर अपनी साधना पूर्ण की और शिव को प्राप्त किया इसलिए इनका का स्वरूप बहुत ही सादा और भव्य है | मात्र एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में चन्दन माला लिए हुए प्रसन्न मुद्रा में भक्तों को आशीर्वाद दे रही हैं। अन्य देवियों की तुलना में वह अतिसौम्य क्रोध रहित और तुरन्त वरदान देने वाली देवी हैं | नवरात्र के दूसरे दिन शाम के समय देवी के मंडपों में ब्रह्मचारिणी दुर्गा का स्वरूप बनाकर उसे सफेद वस्त्र पहनाकर हाथ में कमंडल और चंदन माला देने के बाद फल, फूल एवं धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करके आरती करने का विधान है | इनकी आराधना में ॐ या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: || इस सबसे सरल मंत्र के द्वारा पूजा के लिए लाये गए पदार्थों को अर्पित करना चाहिए |लाभ- इनकी आराधना से घर में सौम्य लक्ष्मी का वास रहता है दरिद्रता दरवाजे से वापस चली जाती है | विद्यार्थियों के लिए इनकी आराधना करना अति लाभप्रद रहता है उन्हें किसी भी तरह की शिक्षा प्रतियोगिता में सफलता और गृहस्थों के लिए सदैव सुख शान्ति बनी रहती है | पं जयगोविन्द शास्त्री

शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

माँ शैलपुत्री का आशीर्वाद लायेगा परिवार में खुशहाली-   पं जयगोविन्द शास्त्री
शारदीय नवरात्र में नौदुर्गा पूजन के क्रम में प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा आराधना की जाती है | इन्हीं की आराधना से हम सभी मनोवांछित फल
प्राप्त कर सकते हैं | पर्वतराज हिमालय के यहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा था | माँ का वाहन
वृषभ, दाहिने हाथ में त्रिशूल, और बायें हाथ में कमल सुशोभित है | अपने पूर्व जन्म में ये सती नाम से प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं
इनका विवाह भगवान शिव से हुआ था | प्रजापति दक्ष अपने जमाईराज को पसंद नहीं करते थे जिसके कारण एकबार यज्ञ करने के अवसर पर उन्होंने
अपने दामाद शिव को यज्ञ में सम्लित होने के लिए निमंत्रण नहीं दिया जिसके परिणाम स्वरूप उनकी पत्नी सती ने बिना बुलाये ही पिता से प्रश्न करने के
लिए यज्ञ में सम्लित होने गईं वहाँ अपने पति भगवान शिव के विषय में अशोभनीय बातें सुनकर अपने शरीर को योगाग्नि में भस्म कर दिया |
और अगले जन्म में हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं | इस जन्म में भी शैलपुत्री देवी शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं |
नव दुर्गाओं में माँ शैलपुत्री का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त हैं ये सहजभाव से भी पूजन करने पर मनोवांछित फल प्रदान करती हैं |
इस दिन उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं | यहीं से उनकी योगसाधना का आरम्भ होता है तभी माँ के इसी स्वरूप का आज के दिन
ध्यान-पूजन किया जाता है |  माँ की आराधना करने के लिए इन मन्त्रों के द्वारा ध्यान करें |
ध्यान-
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृत शेखराम् | वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्वनीम् ||
पूर्णेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम् ||
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥
अर्थात- माँ वृषभ पर विराजित हैं | इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल है, और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है | यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं |
इन्ही के पूजन के साथ नवरात्र का शुभारंभ होता है इनकी पूजा में लाल पुष्प, का प्रयोग उत्तम रहेगा
गृहस्थों के लिए माँ शैलपुत्री की पूजा बिधि-
नवरात्र के प्रथम दिन सुबह स्नान-ध्यान करके माता दुर्गा, भगवान् गणेश नवग्रह कुबेरादि की मूर्ति के साथ-साथ कलश स्थापन करें |
कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक आदि लिख दें | कलश स्थापन के समय अपने पूजा गृह में पूर्व के कोण की तरफ अथवा
घर के आँगन से पोर्वोत्तर भाग में पृथ्वी पर  सात प्रकार के अनाज रखें, संभव हो तो नदी की रेत रखें फिर जौ भी डाले इसके उपरांत कलश में जल
गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, मोली, चन्दन, अक्षत, हल्दी, रुपया पुष्पादि डालें फिर ॐ भूम्यै नमः कहते हुए कलश को सात अनाजों सहित
रेत के ऊपर स्थापित करें, अब कलश में थोडा और जल-गंगाजल डालते हुए ॐ वरुणाय नमः कहें और जल से भर दें इसके बाद आम का पल्लव या
पीपल, बरगद, गूलर अथवा पाकर में से किसी भी वृक्ष का पल्लव कलश के ऊपर रखें तत्पश्च्यात जौ अथवा कच्चा चावल कटोरे मे भरकर कलश के ऊपर
रखें और अब उसके ऊपर चुन्नी से लिपटा हुआ नारियल रखें | हाथ में हल्दी, अक्षत पुष्प लेकर इच्छित संकल्प लें
पश्च्यात इस मंत्र से दीप पूजन करें | ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्र जनार्दनः ! दीपो हरतु में पापं पूजा दीप नमोस्तु ते | यह मंत्र पढ़ें !
माँ की आराधना के समय नवार्ण मंत्र ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ! से सभी पूजन सामग्री अर्पण कर सकते हैं इस प्रक्रार माँ की कृपा से आपके घर
में दुःख-दारिद्र्य कलह,और निर्धनता का प्रवेश कभी नही होगा | पं जयगोविन्द शास्त्री