tag:blogger.com,1999:blog-20796289091446253332024-03-10T08:17:09.045+05:30Pt. Jaigovind Shastri Astrologerwww.astrogovind.in A RENOWNED VEDIC ASTROLOGER & STOCK MARKET CONSULTANT IN INDIA, HE IS ALSO KNOWN AS STOCK GURU IN MEDIA. HE HAS WRITTEN MORE THAN 25,000 ARTICLES PUBLISHED IN NATIONAL DAILY NEWS PAPERS LIKE DAINIK BHASKAR, RASHTRIYA SAHARA, PUNJAB KESHARI, AMAR UJALA, HINDUSTAN, PRABHAT KHABAR ETC. YOU CAN DIRECT CONTACT TO SHASTRI JI ADDRESS - 53A 2ND FLOOR MAIN ROAD PANDAV NAGAR DELHI 110092 MB.+91 9811046153; +91 9868535099. FROM CEO www.astrogovind.injaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.comBlogger378125tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-84382033023821075232023-07-13T07:34:00.003+05:302023-07-13T07:34:57.705+05:30 नमः शिवाय<p> नमः शिवाय ! आज 'अमर उजाला' समाचार पत्र के 'कल्पवृक्ष' </p><p>पेज पर प्रकाशित मेरा आलेख- 'मंत्र जाप [नमः शिवाय] से </p><p>शिवमय हो जाता है प्राणी' आपके लिए. पं. जयगोविंद शास्त्री </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-WUF4NzmuXsA_NikkQKSnf_9S_CTUpzA9anEUJ_CDkuFExXFdctSJANgtxKNQaJ5dFE0jdbfNGVh2DorhgSM_L32dog8OQLoYSlsLtMR7FfUJxyPScK84kGQwCbBzMu5dZ20IQqW0bnkShSijicMa4CuldTuMRjuhY6p_b2oD3BeL0p9fGEDWPuhIFjV4/s952/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A5%83%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%2013%E0%A4%9C%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%882023.webp" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="952" data-original-width="474" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-WUF4NzmuXsA_NikkQKSnf_9S_CTUpzA9anEUJ_CDkuFExXFdctSJANgtxKNQaJ5dFE0jdbfNGVh2DorhgSM_L32dog8OQLoYSlsLtMR7FfUJxyPScK84kGQwCbBzMu5dZ20IQqW0bnkShSijicMa4CuldTuMRjuhY6p_b2oD3BeL0p9fGEDWPuhIFjV4/w318-h640/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A5%83%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%2013%E0%A4%9C%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%882023.webp" width="318" /></a></div><br /><p></p>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-90673467733044786902023-06-30T07:05:00.001+05:302023-06-30T07:05:37.952+05:30एकादशी, हरिशयनी एकादशी <p> सप्ताह का मंत्र 128 </p><p>सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् | स भूमिँसर्वं तस्पृत्वाऽत्यतिष्ठद्दशाङगुलम् ||</p><p></p><h1 style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqB6HER7-Q_5aK5OUfu3eEzTNWYT6L6SNDE356Ko53g9AI2f0y79A-vgCrodndKVyVGmSqneGZUc1Y0E8DkZy92HUuHoXhKWZfWzTLmjDGW7HZDHkIv7G9IO8W1Zafq4k5T8jKj1M5vQqWiBw_ZkxG05UoM-ZH2Cl0i9VvMsIpojPkQw2EPvyFe6rqnwS5/s1132/FB_IMG_1688011447632.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1132" data-original-width="1080" height="886" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqB6HER7-Q_5aK5OUfu3eEzTNWYT6L6SNDE356Ko53g9AI2f0y79A-vgCrodndKVyVGmSqneGZUc1Y0E8DkZy92HUuHoXhKWZfWzTLmjDGW7HZDHkIv7G9IO8W1Zafq4k5T8jKj1M5vQqWiBw_ZkxG05UoM-ZH2Cl0i9VvMsIpojPkQw2EPvyFe6rqnwS5/w624-h886/FB_IMG_1688011447632.jpg" width="624" /></a></h1><br />पुरुषऽएवेदँ सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम् | उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ||<p></p><p>एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पुरुषः | पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ||</p><p>त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः | ततो विष्वङ् व्यक्रामत्साशनानशनेऽअभि ||</p><p>ततो विराडजायत विराजोऽअधि पूरुषः | स जातोऽअत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः ||</p><p>तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः सम्भृतं पृषदाज्यम् | पशूँस्ताँश्चक्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये || </p><p>स्रोत- ऋग्वेद संहिता/यजुर्वेद</p><p>संकेत-</p><p>प्रस्तुत मंत्र 'ऋग्वेद' संहिता के दशम मण्डल से लिया गया है, यही दिव्य मंत्र यजुर्वेद में भी आया है जिसे महर्षियों ने 'पुरुषसूक्त' नाम से अलंकृत किया है | मंत्र के द्वारा ऐसे विराट पुरुष के विषय में बतलाया गया है जो परब्रह्म का विग्रहरूप हैं तथा जिनके हजारों सिर, हजारों नेत्र और हजारों पैर हैं | यह चराचर सृष्टि उन्हीं परमपुरुष की परिकल्पना मात्र है | </p><p>मंत्रार्थ- </p><p>जो सहस्रों सिरवाले, सहस्रों नेत्रवाले और सहस्रों चरणवाले विराट पुरुष हैं, वे सारे ब्रह्माँड को आवृत करके भी दस अंगुल शेष रहते हैं | जो सृष्टि बन चुकी और जो बनने वाली है, यह सब विराट पुरुष ही हैं | इस अमर जीव-जगत के भी वे ही स्वामी हैं और जो अन्न द्वारा वृद्धि को प्राप्त करते हैं, उनके भी वे ही स्वामी हैं | विराट पुरुष की महत्ता अति विस्तृत है | इस श्रेष्ठ पुरुष के एक भाग में सभी प्राणी हैं और तीन भाग में अनंत अंतरिक्ष स्थित हैं | चार भागों वाले विराट पुरुष के एक भाग में यह सारा संसार, जड़ और चेतन विविध रूपों में समाहित है | उसी विराट पुरुष से यह ब्रह्मांड उत्पन्न हुआ तथा उसी विराट पुरुष से समस्त जीव भी उत्पन्न हुए | वही देहधारी रूप में सबसे श्रेष्ठ हुआ, जिसने सबसे पहले पृथ्वी को, फिर शरीर धारियों को उत्पन्न किया | उस सर्वश्रेष्ठ विराट प्रकृति यज्ञ से दधियुक्त घृत प्राप्त हुआ जिससे विराट पुरुष की पूजा होती है | वायुदेव से संबंधित पशु, हिरण, गौ, अश्वादि की उत्पत्ति भी उसी विराट पुरुष के द्वारा ही हुई |</p><p>तात्पर्य-</p><p>ऋग्वेद के दशम मण्डल का नब्बेवाँ सूक्त जिसे 'पुरुषसूक्त' कहा गया है, उनमें दिए गए मंत्रों के द्वारा उन चराचरपति जगत नियंता, अच्युत, अनंत, अनादि श्रीहरि विष्णु का स्तवन किया गया है जिनमें अखिल ब्रह्मांड समाया हुआ है | उनके विराटरूप का वर्णन करते हुए वेद कहते हैं कि, ब्रह्मलोक जिनका शीश, पाताल जिनके चरण, शिव जिनका अहंकार, ब्रह्मा जिनकी बुद्धि, सूर्य-चन्द्र जिनके नेत्र, वेद जिनकी वाणी, घने मेघमण्डल जिनके काले केश, भयंकर काल भी जिनकी भृकुटी संचालन से गतिमान होता है | उत्पत्ति, पालन और प्रलय जिनकी चेष्ठा है तथा जो सृष्टि का आदि और अन्त हैं उन्हीं श्रीहरि विष्णु का 'पुरुषसूक्त' मंत्रों द्वारा स्तवन किया गया है | इन मंत्रों की महत्ता का बोध इसी से होता है कि इनके ऋषि स्वयं 'नारायण' ही हैं | सूक्त में कुल सोलह मंत्र हैं जिनमें प्रथम पंद्रह मंत्र 'अनुष्टुप' छंद में हैं और सोलहवां मंत्र [यज्ञेन यज्ञमयजन्त..] त्रिष्टुप छंद में है | यह सूक्त आध्यात्मिक, कर्मकांड तथा पूजा-पाठ की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है | किसी भी पूजा-आराधना के समय वैदिक विद्वान् 'पुरुषसूक्त' के मंत्रों का पाठ करके ही पूजन-अनुष्ठानादि संपन्न करते हैं |</p><div><br /></div>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-27770868688444412922023-06-15T09:13:00.003+05:302023-06-15T09:16:34.230+05:30प्राणायाम की साधना से नष्ट होते हैं पाप <p> आज 'अमर उजाला' समाचार पत्र के 'कल्पवृक्ष' पेजपर </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjz57y62bpROAyPczWaJC0wwwCdL0ogze47PYPuXOYh5ROjoKPP9AfkCtXdNjrWbqoeo01VyRqZwXvaiZRQgWew6tmZsTMTtqLf-zsj_PwKN-UJF7rhL2tNOTxmI5p-vGQJFygGu6YuotpJdEuI49P9eVu4my-1IKYSB1ijYWWOMxJl6rgiiJeesl7uig/s965/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A5%83%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%2015%E0%A4%9C%E0%A5%82%E0%A4%A8-2023.webp" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="965" data-original-width="473" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjz57y62bpROAyPczWaJC0wwwCdL0ogze47PYPuXOYh5ROjoKPP9AfkCtXdNjrWbqoeo01VyRqZwXvaiZRQgWew6tmZsTMTtqLf-zsj_PwKN-UJF7rhL2tNOTxmI5p-vGQJFygGu6YuotpJdEuI49P9eVu4my-1IKYSB1ijYWWOMxJl6rgiiJeesl7uig/w314-h640/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A5%83%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%2015%E0%A4%9C%E0%A5%82%E0%A4%A8-2023.webp" width="314" /></a></div><br />प्रकाशित मेरा आलेख- 'प्राणायाम की साधना से नष्ट होते हैं पाप' आपके लिए. पं. जयगोविंद शास्त्री <p></p>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-5714031687553151882023-04-03T09:25:00.008+05:302023-04-03T09:26:49.034+05:30उत्तराखण्ड की राज्यपाल श्री बेबीरानी मौर्या से सम्मान प्राप्ति <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEimCItIMHQQ8sKgubht7Gtm2z-RpYY6IXPgUuXUlm44BpIHP5poyokHODqePtWx_rWrGWk93c1RDPtuRWvaZiiT1VTJluqgQc1Wivdnh6tLtYog-BhzGWl9UWd7Ok8hOOolpTdwUW7vEO6l0Hflz6Xt_IZtey_NDzMlap7hBdHpFfDs2bFuiuLeG09myw/s1000/IMG_7319.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="821" data-original-width="1000" height="552" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEimCItIMHQQ8sKgubht7Gtm2z-RpYY6IXPgUuXUlm44BpIHP5poyokHODqePtWx_rWrGWk93c1RDPtuRWvaZiiT1VTJluqgQc1Wivdnh6tLtYog-BhzGWl9UWd7Ok8hOOolpTdwUW7vEO6l0Hflz6Xt_IZtey_NDzMlap7hBdHpFfDs2bFuiuLeG09myw/w643-h552/IMG_7319.JPG" width="643" /></a></div><br /> <p></p>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-65841080676810690362023-04-03T09:20:00.004+05:302023-06-30T07:06:16.873+05:30विद्यावाचस्पति सम्मान <div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGsEjGDo9xo0uHSngJ2feAk5kBaXfH6Yvr4E-21WCdonCNK35-POER8c5srCuIy58o2-DMcr-GL64bF2x9YRt-C6hs3RTrW5-a1zxcz03aN1YWNVU3eU7kHkSBmh6sQxInwCbCKt7qeWI7wuHdTaFiTfVgxT4DtJa0OoEnZoGCADtcb9ZGq8CPndjCEQ/s1600/8b8a771f-87bd-40c1-a05d-67571516a88a.jpg" style="display: block; padding: 1em 0px; text-align: center;"><img alt="" border="0" data-original-height="1280" data-original-width="912" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGsEjGDo9xo0uHSngJ2feAk5kBaXfH6Yvr4E-21WCdonCNK35-POER8c5srCuIy58o2-DMcr-GL64bF2x9YRt-C6hs3RTrW5-a1zxcz03aN1YWNVU3eU7kHkSBmh6sQxInwCbCKt7qeWI7wuHdTaFiTfVgxT4DtJa0OoEnZoGCADtcb9ZGq8CPndjCEQ/s1600/8b8a771f-87bd-40c1-a05d-67571516a88a.jpg" /></a></div>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-35690783324870445302023-04-01T09:51:00.001+05:302023-04-01T09:51:27.776+05:30 विवाह मंगल स्तोत्र <p> विवाह मंगल स्तोत्र </p><p>अद्य विवाहस्य वर्धापनदिनस्य </p><p>श्रीमत् पंकज विष्टरो हरिहरौ वायुर्महेन्द्रोनलश्चन्द्रो भास्कर वित्तपालवरुणाः प्रेताधिपाद्या ग्रहाः ||</p><p>प्रद्युम्नो नलकुबरौ सुरगजस् चिंतामणिः कौस्तुभः स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः कुर्वन्तु वो मंगलम् ||</p><p>गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा भूमिः प्रपूर्णाशुभासावित्री च सरस्वति च सुरभिः सत्यवृताऽरुंधती ||</p><p>स्वाहा जांबवति च रुक्मभगिनी दुःस्वप्न विध्वंसिनी वेला चांबुनिधे समीनमकरा कुर्वन्तु वो मंगलम् ||</p><p>गंगा सिंधु सरस्वति च यमुना गोदावरी नर्मदा कावेरी सरयुर्महेन्द्रतनया चर्मण्वती वेदिका ||</p><p>क्षिप्रा वेगवती महासुर नदी ख्याता च या गंडक पूण्याः पूण्यजलैः समुद्र सहिता कुर्वन्तु वो मंगलम् ||</p><p>लक्ष्मीः कौस्तुभ पारिजातक सुरा धन्वंतरिश्चंद्रमा धेनुः कामदूधा सुरेश्वरगजो रंभादि देवांगना ||</p><p>अश्वः सप्तमुखो विषं हरिधेनुः शंखोऽमृतं चाम्बुधे रत्नानीति चतुर्दश प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलम् ||</p><p>ब्रह्मा देवपतिः शिवः पशुपतिः सूर्यो ग्रहाणां पतिः शक्रो देवपति र्हविर्हुतपतिः स्कंदश्च सेनापतिः ||</p><p>विष्णु र्यज्ञपति र्यमः पितृपतिः शक्ति पतिनां पतिः सर्वे ते पतयः सुमेरु सहिता कुर्वन्तु वो मंगलम् ||</p><p>दुर्वासाश्च्यवनोऽथ गौतम मुनिर्व्यासो वसिष्ठोऽसितः कौशल्यः कपिलः कुमार कवषौ कुंभोद्भव काश्यपः ||</p><p>गर्गोदेवल आर्ष्टिषेण ऋतवाग् बोध्योभृगुश्चासुरिरमार्कंडेय शुकौ पतंजलि मुनिः कुर्वंतु वो मंगलम् ||</p><p>इक्ष्वाकुर्न भगोंऽबरीष पुरुजित् कारुषकः केतुमान्मांधाता पुरुकुत्सरोहितसुतौ चंपोवृको बाहुकः ||</p><p>खट्वांगो रघुवंश राजतिलको रामो नलो नाहुषःशांतिः शंतनु भीष्म धर्मतनुजा कुर्वन्तु वो मंगलम् ||</p><p>श्रीमान् काश्यप गोत्रजो रविरलम् चंद्रः कठोरच्छवि रात्रेयो पृथिवी शिखिनिभोजो द्वाजेकुले जन्मभाक् ||</p><p>सौम्यः पीत उदंगमुखो गुरुरयं शुक्रस्तुलाधीश्वरो मंदो राहुरहो च केतुरपियः कुर्वन्तु वो मंगलम् ||</p>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-73030772596096873402023-04-01T09:47:00.003+05:302023-04-01T09:52:09.323+05:30 ब्रह्मबिन्दूपनिषद <p> ब्रह्मबिन्दूपनिषद </p><p>मनो हि द्विविधं प्रोक्तं शुद्धं चाशुद्धमेव च | अशुद्धं कामसङ्कल्पं शुद्धं कामविवर्जितम् ||1||</p><p>मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः | बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ||2||</p><p><br /></p><p>यतो निर्विषयस्यास्य मनसो मुक्तिरिष्यते | अतो निर्विषयं नित्यं मनः कार्यं मुमुक्षुणा ||3||</p><p>निरस्तनिषयासङ्गं सन्निरुद्धं मनो हृदि | यदाऽऽयात्यात्मनो भावं तदा तत्परमं पदम् ||4||</p><p><br /></p><p>तावदेव निरोद्धव्यं यावद्धृति गतं क्षयम् | एतज्ज्ञानं च ध्यानं च शेषो न्यायश्च विस्तरः ||5||</p><p>नैव चिन्त्यं न चाचिन्त्यं न चिन्त्यं चिन्त्यमेव च | पक्षपातविनिर्मुक्तं ब्रह्म संपद्यते तदा ||6||</p><p><br /></p><p>स्वरेण सन्धयेद्योगमस्वरं भावयेत्परम् | अस्वरेणानुभावेन नाभावो भाव इष्यते ||7||</p><p>तदेव निष्कलं ब्रह्म निर्विकल्पं निरञ्जनम् | तदब्रह्माहमिति ज्ञात्वा ब्रह्म सम्पद्यते ध्रुवम् ||8||</p><p><br /></p><p>निर्विकल्पमनन्तं च हेतुद्याष्टान्तवर्जितम् । अप्रमेयमनादिं च यज्ञात्वा मुच्यते बुधः ||9||</p><p>न निरोधो न चोत्पत्तिर्न बद्धो न च साधकः । न मुमुक्षुर्न वै मुक्त इत्येषा परमार्थता ||10||</p><p><br /></p><p>एक एवाऽऽत्मा मन्तव्यो जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तिषु । स्थानत्रयव्यतीतस्य पुनर्जन्म न विद्यते ||11||</p><p>एक एव हि भूतात्मा भूते भूते व्यवस्थितः । एकधा बहुधा चैव दृष्यते जलचन्द्रवत् ||12||</p><p><br /></p><p>घटसंवृतमाकाशं नीयमानो घटे यथा । घटो नीयेत नाऽकाशः तद्धाज्जीवो नभोपमः ||13||</p><p>घटवद्विविधाकारं भिद्यमानं पुनः पुनः ।तद्भेदे न च जानाति स जानाति च नित्यशः ||14||</p><p><br /></p><p>शब्दमायावृतो नैव तमसा याति पुष्करे । भिन्नो तमसि चैकत्वमेक एवानुपश्यति ||15||</p><p>शब्दाक्षरं परं ब्रह्म तस्मिन्क्षीणे यदक्षरम् । तद्विद्वानक्षरं ध्यायेच्द्यदीच्छेछान्तिमात्मनः ||16||</p><p>द्वे विद्ये वेदितव्ये तु शब्दब्रह्म परं च यत् । शब्दब्रह्माणि निष्णातः परं ब्रह्माधिगच्छति ||17||</p><p>ग्रन्थमभ्यस्य मेधावी ज्ञानवीज्ञानतत्परः । पलालमिव धान्यार्यी त्यजेद्ग्रन्थमशेषतः ||18||</p><p><br /></p><p>गवामनेकवर्णानां क्षीरस्याप्येकवर्णता । क्षीरवत्पष्यते ज्ञानं लिङ्गिनस्तु गवां यथा ||19||</p><p>घृतमिव पयसि निगूढं भूते भूते च वसति विज्ञानम् । सततं मनसि मन्थयितव्यं मनु मन्थानभूतेन ||20||</p><p><br /></p><p>ज्ञाननेत्रं समाधाय चोद्धरेद्वह्निवत्परम् । निष्कलं निश्चलं शान्तं तद्ब्रह्माहमिति स्मृतम् ||21||</p><p>सर्वभूताधिवासं यद्भूतेषु च वसत्यपि ।सर्वानुग्राहकत्वेन तदस्म्यहं वासुदेवः तदस्म्यहं वासुदेव इति ||22||</p><div><br /></div>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-7782631411502831642023-04-01T09:39:00.003+05:302023-04-01T09:53:38.485+05:30शनि के प्रकोप और यमदंड से बचाती हैं 'माँ' यमुना' <p> यमुना छठ 27मार्च को पं. जयगोविंद शास्त्री </p><p>यमदंड एवं शनि के प्रकोप से बचाती हैं 'माँ' यमुना' </p><p>परब्रह्म श्रीकृष्ण की पटरानी यमुना का पृथ्वी पर आगमन का चैत्र शुक्लपक्ष षष्टी को हुआ जिसे 'यमुना छठपर्व' के रूप में भी मनाया जाता है | पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी यमुना सूर्यदेव की पुत्री हैं | यमदेव और शनि इनके सबसे प्रिय भाईयों में </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjBi8b-R6t9FIuxpGa1WGO5_toTusIEPr7Ot4p5logebQKN4kZE20FIPyeKu1jjybR56B-2W3NoAgnUAaSf8GF37KyyMfDmh1j-eHPNBFcb3k8cLDJ2dClst04nGrOaocgjhnsI7YeUs5QEVrxIMZUtvf82ntfIu96zVm6YB3uHYsiFEfu2MKdCgQCmhg/s1256/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A5%83%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%20%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%9B%E0%A4%A0%2027%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A~2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1256" data-original-width="733" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjBi8b-R6t9FIuxpGa1WGO5_toTusIEPr7Ot4p5logebQKN4kZE20FIPyeKu1jjybR56B-2W3NoAgnUAaSf8GF37KyyMfDmh1j-eHPNBFcb3k8cLDJ2dClst04nGrOaocgjhnsI7YeUs5QEVrxIMZUtvf82ntfIu96zVm6YB3uHYsiFEfu2MKdCgQCmhg/w374-h640/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A5%83%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%20%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%9B%E0%A4%A0%2027%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A~2.jpg" width="374" /></a></div><br />से एक हैं और भद्रा इनकी बहन हैं | <p></p><p>यमुना की महिमा अपरम्पार-</p><p>गोलोकमें जब श्रीहरि ने यमुना जी को पृथ्वी पर जाने की आज्ञा दी और नदियों में श्रेष्ठ यमुना जब परमेश्वर श्रीकृष्ण परिक्रमा करके पृथ्वी पर जाने को उद्यत हुईं, उसी समय विरजा तथा ब्रह्मद्रव से उत्पन्न साक्षात गंगा ये दोनों महाशक्तियाँ नदीस्वरूप में आकर यमुना में लीन हो गईं | इसीलिए परिपूर्णतमा कृष्णा [यमुना] को परिपूर्णतम श्रीकृष्ण की पटरानी के रूप में लोग जानते हैं | तदन्तर सरिताओं में श्रेष्ठ कालिंदी अपने महान वेग से विरजा के वेग का भेदन करके निकुंज द्वार से निकलीं और असंख्य ब्रहमाण्ड समूहों का स्पर्श करती हुई ब्रह्मद्रव में गयीं | फिर उसकी दीर्घ जलराशि का अपने महान वेग से भेदन करती हुई वे महानदी श्रीभगवान् वामन के बाएँ चरण के अँगूठेके नख से विदीर्ण हुए ब्रह्मांड के शिरोंभाग में विद्यमान ब्रह्मद्रवयुक्त विवरमें श्रीगंगाके साथ ही प्रविष्ट हुई और वहां से ये ध्रुवमंडल में स्थित भगवान अजित विष्णुके धाम बैकुंठलोमें होती हुई ब्रह्मलोक को लाँघकर जब ब्रह्मकमंडलसे नीचे गिरीं, तब देवताओं के सैकड़ों लोकोंमें एक-से-दूसरेके क्रम में बिचरती हुई आगे बढीं |</p><p>यमुना का 'कालिंदी' नाम कैसे?</p><p>जब यमुना जी सुमेरगिरी के शिखरपर बड़े वेग से गिरीं और अनेक शैल-श्रृंगों को लाघकर बड़ी-बड़ी चट्टानों के तटों का भेदन करतीं हुई मेरुपर्वत से दक्षिण दिशा की ओर जाने को उद्यत हुईं, तब यमुना जी गंगा से अलग हो गयीं | महानदी गंगा तो हिमवान पर्वत पर चली गईं किंतु कृष्णा (श्याम सलिला) यमुना 'कलिंद शिखर' पर जा पहुंची | वहाँ जाकर उस कलिंद पर्वत से प्रकट होने के कारण उनका नाम 'कालिंदी' हो गया | कलिंदगिरीके शिखरों से टूटकर जो बड़ी-बड़ी चट्टानें पड़ी थीं, उनके सुदृढ़ तटों को तोड़ती-फोड़ती हुई वेगवती कृष्णा [कालिंदी] अनेक प्रदेशों को पवित्र करती हुई खांडववन (इंद्रप्रस्थ) जा पहूँची |</p><p>श्रीकृष्ण को पतिरूपमें पाने की चाह-</p><p>यमुना जी साक्षात् परिपूर्णतम भगवान श्रीकृष्ण को अपना पति बनाना चाहती थीं इसीलिए वे परम दिव्यदेह धारण करके खांडव वन में तपस्या करने लगीं | इनके पिता भगवान सूर्यने जलके भीतर ही एक दिव्य घर का निर्माण कर दिया जिसमें आज भी वह रहा करती हैं | खांडववनसे वेग पूर्वक चलकर कालिंदी ब्रजमंडल में श्री वृंदावन और मथुरा के निकट आ पहूँची | यहाँ से श्रीगोकुल आने पर परम सुंदरी यमुना ने विशाखा नाम की सखी के साथ अपने नेतृत्व में गोप किशोरियों का एक यूथ बनाया और श्रीकृष्णचंद्र के रास में सम्मिलित होने के लिए उन्होंने वहीं अपना निवास स्थान निश्चित किया | तदनंतर जब वे ब्रजसे आगे जाने लगीं तो ब्रजभूमि के वियोग से विह्वल हो, प्रेमानंद आँसू बहाती हुईं पश्चिम दिशा की ओर प्रवावित हुई | ब्रजमंडल की भूमि को अपने जलके वेगसे तीन बार प्रणाम करके यमुना अनेक प्रदेशों को पवित्र करती हुई उत्तम तीर्थ प्रयाग जा पहुंची | वहां गंगा जी के साथ उनका संगम हुआ और वे उन्हें साथ लेकर छीरसागरकी चली गयीं | उस समय देवताओं ने उनके ऊपर फूलों की वर्षा की और दिग्विजय सूचक जयघोष किया |</p><p>गंगा द्वारा यमुना की प्रशंसा-</p><p>एकसाथ छीरसागर पहुँचकर गंगा जी ने यमुना से कहा हे कृष्णे ! सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को पावन बनाने वाली तो तुम हो, अतः तुम्हीं धन्य हो | श्रीकृष्ण के वामांग से तुम्हारा प्रादुर्भाव हुआ है तुम परमानंदस्वरूपिणी हो | साक्षात् परिपूर्णतमा हो | समस्त लोकों के द्वारा वन्दनीया हो | परिपूर्णतम परमात्मा श्रीकृष्ण की पटरानी हो | अतः हे कृष्णे ! तुम सब प्रकार से उत्कृष्ट हो | तुम कृष्णा को मैं प्रणाम करती हूँ | तुम समस्त तीर्थों और देवताओं के लिए भी दुर्लभ हो | यमदंड और शनिपीणा से बचाव-यमुना छठ के दिन अथवा किसी भी शनिवार के दिन प्राणी यदि स्नान आदि करके यमुनातट पर इन मंत्रों | ऊँ नमो भगवत्यै कलिन्दनन्दिन्यै सूर्यकन्यकायै यमभगिन्यै श्रीकृष्णप्रियायै यूथीभूतायै स्वाहा | ऊँ हीं श्रीं, क्लीं कालिन्द्यै देव्यै नम: | मंत्रके द्वारा यमुना का पूजन और आरती आदि करे तो उसके जीवन में अकाल मृत्युका भय, यमदंड और त्रास देनेवाली शनि की शाढ़ेसाती, महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यान्तर दशा तथा मारकग्रह दशा का दोष शांत हो जाता है |</p><p><br /></p><p><br /></p>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-82431581795819885642022-04-23T13:01:00.005+05:302023-04-01T09:56:00.647+05:30उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री श्री योगी आदित्य नाथ जी से 'लीजेंड इन डिवाइन साइंस' सम्मान प्राप्ति <p> <span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">गत 16-17अप्रैल को गोरखपुर में अमर उजाला समूह द्वारा आयोजित 'ज्योतिष-आयुर्वेद' महा समागम में अंतर्राष्ट्रीय ज्योतिर्विद *पं. जयगोविंद शास्त्री* को *लीजेंड इन डिवाइन साइंस* अवार्ड" प्रदान करते हुए उत्तर प्रदेश के *यशस्वी मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी*</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjbCtNH-U1rxtcHXt48tXLHEQaCwJ0ZvWxkpdM9TQvzSl33wB1rZ9jJFeBvPvRJ-Fv1Q1ue33OWTfzSbLDKpXr1o3cfY4icShenEEmMVp4uHXSwCMvjdNZTP_3-h2pVWUMMJgkxD7En0p1QWdaET_c4bqoekc-4tAyD3EAil8vvsT9Zkl1C9-BCmv__yQ/s1303/IMG-20220417-WA0004.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1303" data-original-width="929" height="585" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjbCtNH-U1rxtcHXt48tXLHEQaCwJ0ZvWxkpdM9TQvzSl33wB1rZ9jJFeBvPvRJ-Fv1Q1ue33OWTfzSbLDKpXr1o3cfY4icShenEEmMVp4uHXSwCMvjdNZTP_3-h2pVWUMMJgkxD7En0p1QWdaET_c4bqoekc-4tAyD3EAil8vvsT9Zkl1C9-BCmv__yQ/w385-h585/IMG-20220417-WA0004.jpg" width="385" /></a></div><br /><p></p>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-56896890167450296032021-08-12T09:39:00.003+05:302023-04-01T09:56:45.726+05:30नागपंचमी पर्व<p> <span style="background-color: white; color: #050505; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">ग्रहों के समान ही शक्तिशाली हैं नाग, नागपंचमी पर्व पर अमर उजाला समाचार पत्र में प्रकाशित मेरा आलेख </span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgtBsQFXi72wV9gD0LyUl1BSsn4eNUYCPLn9uFnhbP5lPvPCy4qqLnP8Fy_bgmkObT50DUNCVg5klS-reV90kv5Y5WoefY_vwraKZcXAMF7dckwAo7rgkQNxZkDol2lFWNyKRizijAGT70A/s1261/KV12-AUG-2021.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1261" data-original-width="1201" height="551" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgtBsQFXi72wV9gD0LyUl1BSsn4eNUYCPLn9uFnhbP5lPvPCy4qqLnP8Fy_bgmkObT50DUNCVg5klS-reV90kv5Y5WoefY_vwraKZcXAMF7dckwAo7rgkQNxZkDol2lFWNyKRizijAGT70A/w426-h551/KV12-AUG-2021.jpg" width="426" /></a></div><br /><p></p>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-4006938064555231882021-04-01T08:29:00.005+05:302023-04-01T09:57:25.546+05:30कठोपनिषद् <p> सूर्यो यथा सर्वलोकस्य चक्षुर्नलिप्यते चाक्षुषैर्बह्यिदोषैः |</p><p>एकस्तथा सर्वभूतान्तरात्मा न लिप्यते लोकदुःखेन बाह्यः ||</p><p>स्रोत- कठोपनिषद् </p><p>संकेत- </p><p>प्रस्तुत मंत्र कठोपनिषद् द्वितीय अध्याय के द्वितीया वल्ली से लिया गया है | </p><p>मंत्र के द्वारा दुर्विज्ञेय ब्रह्मतत्वका प्रकारान्तर से जानने के क्रम में जगतात्मा </p><p>सूर्य को लेकर ब्रह्मनिरूपण किया गया है जिसमें आत्मा की असंगता के विषय </p><p>में बताया गया है कि अंतरात्मा केवल दृष्टा है वह संसार के बाह्य भोगों से दूर </p><p>ही रहता है, उसमें लिप्त नहीं होता | </p><p>मंत्रार्थ- </p><p>जिसप्रकार सम्पूर्ण लोकों का नेत्र होकर भी सूर्य नेत्रसंबंधी बाह्यदोषों से लिप्त नहीं होता उसी </p><p>प्रकार सम्पूर्ण भूतों का एक ही अन्तरात्मा संसार के दुःख से लिप्त नहीं होता, बल्कि उससे </p><p>बाहर ही रहता है वह दृष्टा मात्र है |</p><p>तात्पर्य- </p><p>जिसप्रकार सूर्य अपने प्रकाश से लोक का उपकार करता हुआ अर्थात मल-मूत्र आदि अपवित्र वस्तुओं </p><p>को प्रकाशित करने के कारण उन्हें देखने वाले समस्त लोकों का नेत्ररूप होकर भी अपवित्र पदार्थादिके </p><p>देखने से प्राप्त हुए आध्यात्मिक पापदोष तथा अपवित्र संसर्ग से होने वाले बाह्यदोषों से लिप्त नहीं </p><p>होता, उसीप्रकार सम्पूर्ण भूतों का एक ही अंतरात्मा लोक के दुःख से लिप्त नहीं होता, बल्कि उससे </p><p>बाहर ही रहता है | संसारी अपने आत्मा में आरोपित अविद्या के कारण ही कामना और कर्म जनित </p><p>दुखों का अनुभव करता है |<br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQaIb2FOuzS8mTCwcSwGLkCgOTmtTCZDsjPY3b34aPB__24wT_p0q_b_CbpRusAvl35VwV7LFEKH9dVI8BOMa1wfbZ86y2aKt3qXiFen3SOPiQIGsCovp1fC0msTjKWAD1QhTCB8aufatq/s818/17-dec-2020.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="818" data-original-width="489" height="743" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQaIb2FOuzS8mTCwcSwGLkCgOTmtTCZDsjPY3b34aPB__24wT_p0q_b_CbpRusAvl35VwV7LFEKH9dVI8BOMa1wfbZ86y2aKt3qXiFen3SOPiQIGsCovp1fC0msTjKWAD1QhTCB8aufatq/w492-h743/17-dec-2020.jpg" width="492" /></a></div><br />jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-11649500389696955262021-04-01T08:24:00.004+05:302023-04-01T10:00:07.741+05:30तैत्तिरीयोपनिषद्<p> अन्नं ब्रह्मेति व्यजानात् | अन्नाद्ध्येव खल्विमानि भूतानि जायन्ते | </p><p>अन्नेन जातानि जीवन्ति | अन्नं प्रयन्त्यभिसं विशन्तीति | तद्विज्ञाय </p><p>पुनरेव वरुणं पितरमुपससार | अधीहि भगवो ब्रह्मेति | तं होवाच | तपसा </p><p>ब्रह्म विजिज्ञासस्व | तपो ब्रह्मेति | स तपोऽतप्यत | स तपस्तप्त्वा ||</p><p>स्रोत- तैत्त्रियोपनिषद् </p><p>संकेत-</p><p>प्रस्तुत मंत्र तैत्त्रियोपनिषद् भृगुवल्ली के द्वितीय अनुवाक से लिया गया है | मंत्र के </p><p>द्वारा बताया गया है कि भृगु अपने पिता वरुण के पास गए और 'ब्रह्मविद्याविषयक'</p><p>प्रश्न किया, तथा 'अन्न ही ब्रह्म है' ऐसा जानलेने के पश्च्यात भी संशयग्रस्त होनेपर </p><p>पुनः उन्हींके उपदेश से तप करने के लिए प्रस्थान किए, इसका संकेत किया गया है |</p><p>मंत्रार्थ- </p><p>अन्न ही ब्रह्म है क्योंकि अन्न से ही सब प्राणी उत्पन्न होते हैं | उत्पन्न होने पर अन्न </p><p>से ही जीवित रहते हैं तथा महाप्रयाण करते समय भी अन्न में ही लीन होते हैं | ऐसा </p><p>जानकर भी भृगु पुनः अपने पिता वरुण के पास आये और निवेदन किया कि भगवन ! मुझे </p><p>ब्रह्म का उपदेश कीजिये | वरुण ने कहा पुत्र ! ब्रह्म को तप के द्वारा जानने की इच्छा </p><p>करो, तप ही ब्रह्म है ! तब भृगु ने तपके लिए प्रस्थान किया |</p><p>तात्पर्य-</p><p>अन्न ही ब्रह्म हैं क्योंकि अन्न में ही प्राण प्रतिष्ठित रहते हैं | यह सृष्टि अन्न के बगैर </p><p>संभव नहीं | अन्न के द्वारा ही प्राणी जन्म लेता है | अन्न से ही जीवित भी रहता है | </p><p>अन्न के द्वारा ही यज्ञ संभव है | मृत्युपश्च्यात प्राणी अन्न में ही लीन हो जाता है | </p><p>यह अन्न ही ब्रह्म है, ऐसा जान लेने के बाद भी भृगु संशयग्रस्त होकर अपने पिता </p><p>वरुण के पास आये और 'ब्रह्मविद्याविषयक' ज्ञान के लिए पुनः निवेदन किया |</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjqRQz4dmtU5OoQTb2TZLESGHa6N2zi5tGpmBB2fEGzvb7_M8o-te0plUYY9CBcfvsbi29nJfKEt6o1VBzz_1Ew8t9XSlDlF7hiPqBYteubiVQ7_IZuOw6yrVaIU5Hyi3LVTMC76ohwof86/s1896/10+DEC+KALPVARIKSH-page-001+%25281%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1896" data-original-width="1168" height="851" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjqRQz4dmtU5OoQTb2TZLESGHa6N2zi5tGpmBB2fEGzvb7_M8o-te0plUYY9CBcfvsbi29nJfKEt6o1VBzz_1Ew8t9XSlDlF7hiPqBYteubiVQ7_IZuOw6yrVaIU5Hyi3LVTMC76ohwof86/w490-h851/10+DEC+KALPVARIKSH-page-001+%25281%2529.jpg" width="490" /></a></div><br /><div><br /></div>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-87266780056287834792021-03-18T09:53:00.009+05:302023-04-01T10:00:55.464+05:30प्रश्नोपनिषद् 'ब्राह्मणभाग' <p> तिस्रो मात्रा मृत्युमत्यः प्रयुक्ता अन्योन्यसक्ता अनविप्रयुक्ताः |</p><p>क्रियासु बाह्याभ्यन्तरमध्यमासु सम्यक्प्रयुक्तासु न कम्पते ज्ञः ||</p><p>स्रोत- प्रश्नोपनिषद् 'ब्राह्मणभाग' </p><p>संकेत:</p><p>प्रस्तुत मंत्र अथर्ववेदीय प्रश्नोपनिषद् 'ब्राह्मणभाग' के पंचमप्रश्न से लिया गया है जिसमें शिबिपुत्र </p><p>सत्यकाम के द्वारा महामुनि पिप्पलाद से प्रश्न किया गया है कि भगवन ! 'अक्षर ब्रह्म' ओंकार </p><p>की तीनों मात्राओं 'अकार, उकार तथा मकार की विशेषता क्या है ? इनकी उपासना से क्या फल </p><p>मिलता है |</p><p>मंत्रार्थ:</p><p>ओंकार की तीनों मात्राएँ पृथक पृथक रहने पर मृत्युसे युक्त हैं तभी इन्हें मृत्युमती भी कहा गया है | </p><p>वै ध्यान क्रिया में प्रयुक्त होती हैं और परस्पर सम्बद्ध तथा अनविप्रयुक्ता (जिनका विपरीत प्रयोग </p><p>न किया गया हो ऐसे) हैं | इस प्रकार बाह्य (जाग्रत) आभ्यंतर (सुषुप्ति) और मध्यम (स्वप्नस्थानीय) </p><p>क्रियाओं में उनका सम्यक प्रयोग किया जाने पर ज्ञाता पुरुष विचलित नहीं होता |</p><p>तात्पर्य:</p><p>अक्षर ब्रह्म ओंकार में प्रयुक्त होने वाली तीनों मात्राएँ 'अकार, उकार और मकार' मृत्यु से परे नहीं हैं |</p><p>इनकी भी मृत्यु होती है | वै आत्मा की ध्यानक्रियाओं में प्रयुक्त होती हैं और एक दुसरे से सम्बद्ध हैं </p><p>इसीलिए उन्हें 'अनविप्रयुक्ता' कहा गया है | बाह्य, आभ्यंतर और मध्यम तीन क्रियाओं में योगी </p><p>(ओंकार की मात्राओं के विभाग को जानने वाला साधक) विचलित नहीं होता क्योंकि, सर्वात्मभूत </p><p>और ओंकारस्वरूपता को प्राप्त हुआ विद्वान् विषयासक्त से परे है |</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrpj-9AQMvMzNm2cQTD6HD9GNhyphenhyphenpDLU8yBJyP58mE99zU5oxlq53MgeeOh4QRR4-WhNuF2AanKu7PLQWO44ESr7zNP2vYP55ORD4X3jtGCcP6Paryf1Tf5VzSnC2SprID9hYoEuvTkP3Da/s813/03dec2020.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="813" data-original-width="509" height="887" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrpj-9AQMvMzNm2cQTD6HD9GNhyphenhyphenpDLU8yBJyP58mE99zU5oxlq53MgeeOh4QRR4-WhNuF2AanKu7PLQWO44ESr7zNP2vYP55ORD4X3jtGCcP6Paryf1Tf5VzSnC2SprID9hYoEuvTkP3Da/w651-h887/03dec2020.jpg" width="651" /></a></div><br /><div><br /></div>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-43247494405962932782021-03-18T09:41:00.007+05:302023-04-01T10:01:33.689+05:30कठोपनिषद् <p> पराञ्चि खानि व्यतृणत्स्वयम्भूस्तस्मात् पराङ्पश्यति नान्तरात्मन् |</p><p>कश्चिद्धीरः प्रत्यगात्मान मैक्षदावृत्तचक्षुर मृतत्वमिच्छन् ||</p><p>पराचः कामाननुयन्ति बालास्ते मृत्योर्यन्ति विततस्य पाशम् |</p><p>अथ धीरा अमृतत्वं विदित्वा ध्रुवमध्रुवेष्विह न प्रार्थयन्ते ||</p><p>स्रोत- कठोपनिषद् </p><p>संकेत- </p><p>प्रस्तुत मंत्र कठोपनिषद् के द्वितीय अध्याय की प्रथमा वल्ली से लिया गया है | मंत्र के द्वारा यमदेव </p><p>जी वाजश्रवस के पुत्र नचिकेता को आत्मज्ञान के मार्ग में आने वाली बाधाओं तथा विवेकी और अविवेकी </p><p>में क्या अन्तर होता है इसका ज्ञानामृत पिला रहे हैं |</p><p>मंत्रार्थ- </p><p>परब्रह्म परमेश्वर ने चक्षुरादि सभी इन्द्रियों को बहिर्मुखी प्रवृत्ति वाला बनाया है, जिसके द्वारा जीव </p><p>बाह्यबिषयों को ही देख पाता है, अन्तरात्माको नहीं | जिसने अमरत्व की इच्छा करते हुए अपनी </p><p>इन्द्रियों को वशीभूत कर लिया हो, ऐसा धीरपुरुष ही आत्मसाक्षात्कार कर पाता है | अल्पज्ञपुरुष </p><p>बाह्यभोगों के पीछे लगे रहते हैं तभी वै मृत्युके सर्वत्र फैले हुए पाश में पड़ते हैं | किन्तु विवेकी </p><p>पुरुष अमरत्वको परमसत्य जानकर संसारके अनित्य पदार्थोंमेंसे किसी की भी इच्छा नहीं करते |</p><p>तात्पर्य- </p><p>जो इन्द्रियाँ बहिर्मुख होकर ही शब्दादि विषयों को प्रकाशित करने के लिए प्रवृत हुआ करती हैं | </p><p>वै इन्द्रियाँ स्वभाव से ही ऐसी हैं इसलिए उनका हनन कर दिया गया है | इनका हनन करने </p><p>वाला परब्रह्म परमेश्वर स्वतः ही सर्वदा स्वतंत्र रहता है | अविवेकी पुरुष काम्यविषयों के पीछे </p><p>लगे रहते हुए निरंतर जन्म-मरण, जरा और रोग आदि बहुत से अनर्थसमूह को प्राप्त होते हैं | </p><p>ब्रह्मवेत्ता लोग इस अनर्थप्राय संसार के सम्पूर्ण अनित्य पदार्थों में से किसी की भी अभिलाषा </p><p>नहीं करते क्योंकि वै सब तो परमात्मा प्राप्ति के मार्ग की बाधाएं हैं |</p><p><br /></p><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDjHh7VlKH1m2xaTvLAxcNtBNn7_WFDBHiNSyH1FvU8Baaz4v0ryRifPnNLn9SBE27f2lcwsyWrYqmdm7wTdW20IG_pGOBS3-KiBzxSSlvcim-lnfwyxXQxRLAlrmBoLa3KEof8eq1UXKu/s827/26nov2020.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="827" data-original-width="473" height="987" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDjHh7VlKH1m2xaTvLAxcNtBNn7_WFDBHiNSyH1FvU8Baaz4v0ryRifPnNLn9SBE27f2lcwsyWrYqmdm7wTdW20IG_pGOBS3-KiBzxSSlvcim-lnfwyxXQxRLAlrmBoLa3KEof8eq1UXKu/w642-h987/26nov2020.jpg" width="642" /></a></div><br /><p><br /></p>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-73379531648627884042021-03-18T09:30:00.005+05:302023-04-01T10:02:46.759+05:30माण्डूक्योपनिषद् <p> ओंकारं पादशो विद्यात्पादा मात्रा न संशयः | ओंकारं पादशो ज्ञात्वा न किंचदपि चिन्तयेत् |</p><p>युञ्जीत प्रणवे चेतः प्रणवो ब्रह्म निर्भयम् | प्रणवे नित्ययुक्तस्य न भयं विद्यते क्वचित् ||</p><p>स्रोत- माण्डूक्योपनिषद् </p><p>संकेत- </p><p>प्रस्तुत मंत्र माण्डूक्योपनिषद् के प्रथम अध्याय से लिया गया है जिसमें समस्त ब्रह्मांड में निर्भयब्रह्म 'ॐ' की व्यापकता </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhyBORe3xxvls6UOCeUjy-kj6FpSnV4UEMla-2oK_9HMpFc7rMiwu1T3-eydYOiGtwlU1SNphjrJhUpZxLiOyJZLvVmifzo2C0IzcWKnBTr5-hLYfvpZySxnC1j_brxWlpcJjIpHA5wmmyk/s794/19-nov2020.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="794" data-original-width="467" height="963" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhyBORe3xxvls6UOCeUjy-kj6FpSnV4UEMla-2oK_9HMpFc7rMiwu1T3-eydYOiGtwlU1SNphjrJhUpZxLiOyJZLvVmifzo2C0IzcWKnBTr5-hLYfvpZySxnC1j_brxWlpcJjIpHA5wmmyk/w591-h963/19-nov2020.jpg" width="591" /></a></div><br />और उसी की साधना करने का संकेत किया गया है | ओंकारोपासना के पश्च्यात पुनः किसी उपासना की आवश्यकता नहीं रहती | वह आत्मा अक्षरदृष्टि से ओंकार ही है | पाद ही मात्रा है और मात्रा ही पाद है, वै मात्रा अकार, उकार और मकार हैं |<p></p><p>मंत्रार्थ- </p><p>ओंकार को एक-एक पाद करके जाने; पाद ही मात्राएँ हैं इसमें संदेह नहीं | इसप्रकार ओंकार को पाद्क्रम से जानकर कुछ भी चिंतन न करें | चित्त को ओंकार में समाहित करे; ओंकार निर्भय ब्रह्मपद है | ओंकारमें नित्य समाहित रहने वाले पुरुषको कहीं भी भय नहीं होता |</p><p>तात्पर्य-</p><p>निर्भयब्रह्म 'ॐ' को ही प्रणव कहते हैं इनमें पाद ही मात्राएँ हैं और मात्राएँ ही पाद हैं | उस परमार्थस्वरूप ओंकार में ही चित्त को समाहित करे, क्योंकि ओंकार ही निर्भय ब्रह्म है | उसमें नित्य समाहित रहने वाले पुरुषको कहीं भी भय नहीं होता, वह परमज्ञानी हो जाता है और ज्ञानी कहीं भी भय को प्राप्त नहीं होता | इसप्रकार ओंकार का ज्ञान हो जाने पर मनुष्य कृतार्थ हो जाता है, वह लौकिक पदार्थों के मोहपाश से भी मुक्त हो जाता है |</p>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-86732187234794614332021-03-18T09:25:00.008+05:302023-04-01T10:03:21.546+05:30श्वेताश्वतरोपनिषद्<p> विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात् |</p><p>सं बाहुभ्यां धमति संपतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन्देव एकः ||</p><p>स्रोत- श्वेताश्वतरोपनिषद्</p><p>संकेत-</p><p>प्रस्तुत मंत्र श्वेताश्वतरोपनिषद् के तृतीय अध्याय से लिया गया है | मंत्र के द्वारा परमेश्वर से जगत् की सृष्टि</p><p>के प्रतिपादन और उनकी विराट रचना के विषय में ध्यानाकर्षण किया गया है |</p><p>मंत्रार्थ-</p><p>वह परब्रह्म परमेश्वर सब ओर नेत्रोंवाला, सब ओर मुखोंवाला सब ओर भुजाओंवाला और सब ओर पैरोंवाला</p><p>है | वह एकमात्र देव प्रकाशमय परमात्मा अंतरिक्षलोक और पृथ्वी की रचना करता हुआ वहां के मनुष्य पक्षी</p><p>आदि प्राणियोंको दो भुजाओं और पैरों तथा पंखों से युक्त करता है |</p><p>तात्पर्य-</p><p>समस्त प्राणियों के चक्षु (नेत्र) परमात्मा के ही हैं | इसीलिए यह विश्वचक्षु है | अतः उनमें अपनी इच्छामात्र से</p><p>ही सर्वत्र चक्षु यानी रुपादि को ग्रहण करने का सामर्थ्य है | वह मनुष्यादिको भुजाओं से युक्त करता है और</p><p>चलने का साधन यानी पैरों से भी युक्त करता है और यही उन्हें पतन से बचाने वाला भी है | यही एकमात्र</p><p>परमेश्वर ने द्युलोक और पृथ्वी की विराट सृष्टि की, तभी उसे जगत रचियता अथवा नियंता भी कहा जाता है |</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQQ7Qi1usxb0vf-9XnPsQeVOVhs-O0oj7ylU4GIhyphenhyphennrEgIUmeiLaFi4qHgKRw4wB9Qsnehdk51thOBmAbpNzupcyuXYRfJaPhu012o2wudTHv8nVL0DE9V-rRerZUZA5960Bv7SqU2G2cN/s778/12nov2020.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="778" data-original-width="473" height="1053" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQQ7Qi1usxb0vf-9XnPsQeVOVhs-O0oj7ylU4GIhyphenhyphennrEgIUmeiLaFi4qHgKRw4wB9Qsnehdk51thOBmAbpNzupcyuXYRfJaPhu012o2wudTHv8nVL0DE9V-rRerZUZA5960Bv7SqU2G2cN/w640-h1053/12nov2020.jpg" width="640" /></a></div><br /><p></p>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-48323243329921795012021-03-18T09:08:00.006+05:302023-04-01T10:04:14.080+05:30मुन्डकोपनिषद्' अथर्व वेद <p> यं यं लोकं मनसा संविभाति विशुद्धसत्त्वः कामयते यांश्च कामान् |</p><p>तं तं लोकं जयते तांश्च कामां-स्तस्मादात्मज्ञं ह्यर्चयेद् भूतिकामः ||</p><p>स्रोत- अर्थववेदीय 'मुन्डकोपनिषद्'</p><p>संकेत-</p><p>प्रस्तुत मंत्र अथर्ववेद के अंतर्गत आने वाले 'मुन्डकोपनिषद्' के तृतीय 'मुण्डक' से लिया गया है | मंत्र के द्वारा आत्मा की असीमित शक्ति</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQxvAGwml_irfGTWqD8hPIPmNXm4CqSgm-MzIbEXp-_-HJBQJ6fo7yczgmW6-8xGJyVfchGvGT3mqdKHR34UUO38V-FzXQLH5eOgxO8YrVAjPWeUb4zwUkprZ2zFjzgvbGn4bWYE2EuWhk/s874/img_5fa36597241fb.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="874" data-original-width="496" height="1134" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQxvAGwml_irfGTWqD8hPIPmNXm4CqSgm-MzIbEXp-_-HJBQJ6fo7yczgmW6-8xGJyVfchGvGT3mqdKHR34UUO38V-FzXQLH5eOgxO8YrVAjPWeUb4zwUkprZ2zFjzgvbGn4bWYE2EuWhk/w651-h1134/img_5fa36597241fb.jpg" width="651" /></a></div><br />और वैभव तथा उसकी उपयोगिता के विषय में बताया गया है | मंत्र में ऐसा दिव्यपुरुष जिसके लिए 'आत्मवत सर्वभूतेषु' अर्थात- जो सभीजीवों में स्वयं को देखता हो उसी की आराधना करने का संकेत किया गया है |<p></p><p>मंत्रार्थ-</p><p>जिस मनुष्य का अंतर्मन से विशुद्ध हो चुका हो, वह जिस जिस लोक की भी कामना करता है उसे जीत लेता है | जिन जिन भोगों को भीचाहता है उसे प्राप्त कर लेता है | जिस लोक में भी जाने की इच्छा करता है उसी लोक को जाता है | इसलिए सांसारिक भोगों तथा ऐश्वर्यकी इच्छा करने वाले पुरुष ऐसे आत्मज्ञानी की ही पूजा करे |</p><p>तात्पर्य-</p><p>जिसके पाँचों मनोविकारक्लेश अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अहंकार क्षीण हो गये हैं अर्थात जो विशुद्धसत्व हो गया है वह निर्मलचित्तवाला आत्मवेत्ता जिस लोक का मन से संकल्प करता है उसे प्राप्त कर लेता है | जिस किसी अन्य को भी वह लोक प्राप्त कराना चाहता हैउसे प्राप्त करा देता है | वह जिन जिन भोगों को भी चाहता है अथवा किसी अन्य को यह भोग प्राप्त हो, ऐसी अभिलाषा करता है उसे भीसंकल्पित उन भोगों को प्राप्त करा देता है | इसलिए समस्त भोगों एवं ऐश्वर्यों की कामना करने वाले पुरुष को उस विशुद्धचित्त आत्मज्ञानीका ह्रदयभाव से पूजन-सत्कार करना चाहिए क्योंकि, ऐसे दिव्यात्मा सत्यसंकल्प होते हैं पूजनीय होते हैं </p>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-13403012858570364482021-03-18T09:02:00.004+05:302023-04-01T10:05:04.231+05:30ईशावास्योपनिषद् <p> ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् | </p><p></p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEicE3SK8aKpZ17NUpvQakTui9iFlLr2tl5kK2-pGNgImxA0TPjHnhZVEZzEhnSIOaO5qv47UHCpNejFNKDFKRgl2y2WkJCEZNeO8Gs5kAUhHEOQLJ67FCL8epry0opaysBKEvLa60BHizR3/s889/Upnisad+Ganga.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="889" data-original-width="498" height="925" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEicE3SK8aKpZ17NUpvQakTui9iFlLr2tl5kK2-pGNgImxA0TPjHnhZVEZzEhnSIOaO5qv47UHCpNejFNKDFKRgl2y2WkJCEZNeO8Gs5kAUhHEOQLJ67FCL8epry0opaysBKEvLa60BHizR3/w587-h925/Upnisad+Ganga.jpg" width="587" /></a><br />तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ||<p></p><p>स्रोत- ईशावास्योपनिषद् </p><p>ब्रह्मविद्या प्राप्ति के आदिस्रोत को उपनिषद् कहते हैं जो हमें ब्रह्म अथवा आत्मा के यथार्थस्वरूप का बोध कराने में सहायक सिद्ध होती हैं | प्रस्तुतमंत्र ईशावास्योपनिषद् से लियागया है जिसमें सर्वत्र भगवतदृष्टि का उपदेश दिया गयाहै | इसी उपनिषद् में ईश द्वारा आत्मा के स्वरूप का दिव्य वर्णन तथा भक्ति के सोपान ज्ञानमार्ग और कर्ममार्ग कागूढ़ज्ञान है |</p><p>संकेत-</p><p>यह मंत्र परमेश्वर के अनंत आकार का बोध कराता है | चराचर जगत में जो कुछ भी है वह सब परमेश्वर द्वारा आच्छादानीय है, उन्हीं के द्वारा निर्मित हुआ है | सूक्ष्म से लेकर विशालतम, जो कुछ भी है वह सब ईश्वर के द्वारादिया गया, ईश्वर का ही और ईश्वर स्वरूप ही है | इसलिए जो कुछ भी दृश्य-अदृश्य है सब उन्हीं परमेश्वर का ही है उन्हीं की कृपा से तुम्हें मिला हुआ है अतः तुम उन पदार्थों पर 'जो कि तुम्हारा नहीं है' अपना अधिकार न जताते हुए त्यागभावसे उसका उपभोग करते हुए नियमों का पालन करो | लालच के वशीभूत होकर किसी और के धन की इच्छा न करो |</p><p>तात्पर्य-</p><p>सबपर शासन करने वाला ईश परमेश्वर परमात्मा है वही सब जीवों का आत्मा होकर अंतर्यामीरूप से ही सबपर शासन करताहै | ईश्वर तुममे है तुम ईश्वर में हो, यही परमसत्य है | वासनाओं से रहित होकर व्यर्थ की आकांक्षा न करो | किसी के भी धन की इच्छा न करो क्योंकि, धन किसी एक का नहीं सब परमेश्वर का है | सब आत्मा से उत्पन्न हुआ,आत्मरूप ही होने के कारण मिथ्यापदार्थविषयक आकांक्षा अर्थहीन है | जो ईश्वर का है अतः तुम्हारा नहीं परन्तु, तुम उसका अनाधिकारभाव से उपभोग कर सकते हो क्योंकि, ईश्वर का अंश आत्मा तुम्हारे भीतर विद्यमान है | जो ऐसा मान लेता है उसका त्याग पर अधिकार हो जाता है | परमेश्वर भी आत्मा ही है इस प्रकार की ईश्वरीय भावना से आसक्तिभाव समाप्त हो जाता है और सभी विषय परित्यक्त हो जाते हैं |</p><div><br /></div>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-13774893698610281562020-08-20T14:22:00.004+05:302020-08-20T14:25:07.112+05:30JAIGOVIND SHASTRI PROFILE<p> PROFILE PT JAIGOVIND SHASTRI</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhdX6t8RChhM3yJNBFQNXkrEsnkkkjXN6wP5gNQp-ONXEjPtoxWKig7vLXDqNUby1_hW7WifLEThodnUvlkn0oMUru_7TwM39CWtZOsq-BaPV3JAyWh9LqjGC6SWy3pA9DHp_oSfT3OCw4c/s1280/MUMBAI+PIC.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="991" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhdX6t8RChhM3yJNBFQNXkrEsnkkkjXN6wP5gNQp-ONXEjPtoxWKig7vLXDqNUby1_hW7WifLEThodnUvlkn0oMUru_7TwM39CWtZOsq-BaPV3JAyWh9LqjGC6SWy3pA9DHp_oSfT3OCw4c/s640/MUMBAI+PIC.jpg" /></a></div><p></p><p>Renowned astrologist Pt. Jayagovind Shastri has been involved in the welfare work of people through Vedic astrology, yoga, meditation and devotional rituals for more than three decades. Pt. Jaigovind Shastri's primary education was initiated from Sultanpur. Whereas he did special studies of Vedadhyayana-yoga from Maharishi Ved Vigyan Vidyapeeth, located in Sehore district of Madhya Pradesh and Maharishi Vedic Vishwaprashasan Peeth located in Rishikesh, Uttarakhand .Known for his astrological prediction, </p><p>Pt. Jayagovind Shastri has been writing since 1988 for various well-known newspapers, magazines and websites of the country. In which 'Dhaai din Zara Bachke', ' Sitaaro ke Sitaare' , 'Ye Saat Din' , etc. all these astrological columns were very famous. Pt. Jaigovind has been doing special work of annual horoscope, articles related to planet and transit, astrology related questions and answers etc. through all the media.For the past several years, </p><p>Pt. Jayagovind has been working to spread the knowledge of astrology not only through print media but also through electronic media. He has done the task of showing the right direction to people by conducting daily astrological horoscope, astrological analysis of stock market daily through live telecast on all the prestigious TV channels of the country. He was awarded the title of 'Stock Guru' in view of all the accurate predictions and analysis he had done in the Financial Market Sector . Pt. Jaigovind Shastri is involved in discussion on national and international topics and astronomical events from time to time on all the Indian radio channels .</p><p>Pt. Jayagovind Shastri has accurately analyzed the horoscopes of well- known politicians and industrialists, Hollywood and Bollywood actresses and actors . Pt. Jayagovind has done special research on all the big personalities of the country in the horoscopes, Bhairon Singh Shekhawat, Sonia Gandhi, Rahul Gandhi, Mayawati, Sonia Gandhi, Maneka Gandhi, Sharad Pawar, P. Chidambaram, Lalu Yadav, Mulayam Singh Yadav , Kalyan Singh, Vidyacharan Shukla etc. While foreign politicians have done a full astrological analysis of George Bush, Janakeri, Bill Clinton, Kofi Annan, Yasser Arafat, Mikhail Gorvachyokh, Pervez Musharraf.</p><p>Pt. Jayagovind has also made accurate predictions for the film stars. These include Swara Empress Lata Mangeshkar, Dilip Kumar, Devanand, Rajesh Khanna, Amitabh Bachchan, Dharmendra, Jitendra, Shatrughan Sinha, Yash Chopra, Subhash Ghai, Mahesh Bhatt, Maqbool Fida Hussain, Muzaffar Ali, O.P. From Nayyar to actors like Salman Khan, Shah Rukh Khan, Aamir Khan, there are famous actresses like Hema Malini, Saira Banu, Rekha, Shabana Azmi, Sridevi, Madhuri Dixit,Jaya Bachchan.</p><p>Pt. Jayagovind has done an accurate analysis in horoscopes of Internationl Film Stars and players as well. These include Michael Jackson, Halle Berry, John Lennon, Sharon Stone, Andre Agassi, Eliza Beth Taylor, David Cassidy, Peter Hook, Fats Domino, Tony Denza, Jennifer Lopez, Rob Thomas, Gary Owens, Renee Zellweger, David Byrne, Lee Majors, Smokey Robinson, George Lucas, Tony Hawk, Cameron Diaz, including many big personalities.</p><p>Pt. Jayagovind Shastri has a deep affection for the cricket world, so he has done a thorough analysis of all the famous players associated with Indian cricket by doing thorough research on their Horoscopes. The players of the cricket world, for whom he has done an accurate astrological analysis include Vijay Amrit Raj, Sunil Gavaskar, Kapil Dev, Mohinder Amarnath, Ravi Shastri, Dilip Vengsarkar, Krishnachari Srikkanth, Javagal Srinath, Kiran More, Sachin Tendulkar, Mohammad Azharuddin, Saurabh Ganguly, V.V.S. Laxman, Anil Kumble, Virender Sehwag, Mahendra Singh Dhoni, Brian Lara, Jashan Gillespie, Michael Jordan, David Wackham, Jim Kurier, Shane Warne, Steve Wa, Nasir Hussain, Andy Flower, Ian Bishop, etc.</p><p>Pt. Jayagovind Shastri has made many big predictions at national and international level, which proved to be true literally. Some of the most famous predictions made by him are as follows - </p><p>1. With regard to the politician Atal Vihari Bajpayee becoming Prime Minister.</p><p>2. Regarding Sonia Gandhi becoming Congress President.</p><p>3. Regarding the disintegration of the Janata Dal and never being tied together into a thread.</p><p>4. Regarding the selection of APJ Kalam for the post of President of India.</p><p>5. Regarding Narendra Modi's election victory and becoming the Chief Minister of Gujarat.</p><p>6. Regarding Bush's defeat in the Battle of George Bush and Laden and achieving nothing.</p><p>7. In relation to Ajit Jogi's election defeat</p><p>8. With regard to the defeat of Vasundhara Raje in Rajasthan and the victory of Ashok Gehlot.</p><p>9. With regard to Sadhvi Uma Bharti becoming the Chief Minister of Madhya Pradesh.</p><p>10. In relation to Sheila Dixit's election victory and Madanlal Khurana's defeat.</p><p>11. With regard to the presidency of Pranab Mukherjee as President of India.</p><p>12. With regard to Narendra Modi as the Prime Minister of India.</p><p>13. With respect to Asharam Bapu going to jail.</p><p>14. With regard to the offer of Chief Minister by Kejriwal.</p><p>15. Regarding LK Advani not to become Prime Minister again.</p><p>Awards and Honors - </p><p>In the field of religion, yoga and astrology, Pt. Jayagovind Shastri has been awarded with many great honors. </p><p>Some of the accolades that he earned ,cannot be forgotten in the country and abroad are as follows - </p><p>1.April 2004 Simhastha - Respect for Astrology in Ujjain.</p><p>2. Honored by the Prime Minister, Government of India on 12 May 2004.</p><p>3. Honored by the Chief Minister of Delhi Government Smt. Sheela Dixit on 11 April 2007.</p><p>4. Astrology Guru Honors on 11 June 2011 in Port Louis, Mauritius.</p><p>5. Honored by the Government of Canada on 11 May 2013 in Mississauga.</p><p>6. The title of 'Falit Vetta' in the International Astrology Conference.</p><p>7. Pt. Jaygovind Shastri, a prominent Jyothishacharya awardee, was presented by Amar Ujala group in Jyotish Mahakumbh, Dehradun, Governor of Uttarakhand Mrs. Baby Rani Maurya in may 2018contact- MB.9811046153,9868535099 jaigovindshastri@gmail.com</p><div><br /></div>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-91801615400611134632020-08-04T11:33:00.002+05:302020-08-04T11:33:27.564+05:30<a href="https://books.google.co.in/books?id=mtv3AgAAQBAJ&pg=PT153&lpg=PT153&dq=jaigovind+shastri+astrologer&source=bl&ots=Ks1SABB1D_&sig=ACfU3U2tKhcnilG74yEfVnP9Me-2E3ZmnA&hl=hi&sa=X&ved=2ahUKEwib65a37oDrAhXNXCsKHeSsBU04FBDoATAOegQIChAB#v=onepage&q=jaigovind%20shastri%20astrologer&f=false">https://books.google.co.in/books?id=mtv3AgAAQBAJ&pg=PT153&lpg=PT153&dq=jaigovind+shastri+astrologer&source=bl&ots=Ks1SABB1D_&sig=ACfU3U2tKhcnilG74yEfVnP9Me-2E3ZmnA&hl=hi&sa=X&ved=2ahUKEwib65a37oDrAhXNXCsKHeSsBU04FBDoATAOegQIChAB#v=onepage&q=jaigovind%20shastri%20astrologer&f=false</a>jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-64925431243886652282020-06-03T13:21:00.001+05:302020-06-03T13:24:48.505+05:305 जून को चंद्रग्रहण नहीं, अफवाहों से रहें सावधान !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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5 जून को चंद्रग्रहण नहीं, अफवाहों से रहें सावधान !</div>
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ज्येष्ठ शुक्लपक्ष पूर्णिमा शुक्रवार 5 जून को चंद्र ग्रहण को लेकर अफवाहों का बाजार गर्म है | कई लोग जनता को डराने की दुकान खोलकर बैठ भी गए हैं | टीवी, अखबार पत्र पत्रिकाओं में डरावने कालम भी खूब लिखे जा रहे हैं जो समाज के लिए गलत सन्देश देने अथवा जनता को गुमराह करने से अधिक कुछ भी नहीं है | सोसल नेटवर्किंग पर भी इससे सम्बंधित भ्रमित करने वाले विडिओ की भरमार है, किन्तु जनमानस के लिए सबसे बड़ी खुशखबरी यह है कि इसदिन चंद्रग्रहण के रूप में प्रचार-प्रसार की जाने वाली वालीघटना चंद्रग्रहण है ही नहीं | इस तरह का योग जब भी बनता है उसे चंद्रमालिन्य योग कहते हैं इसे ग्रहण नहीं कहा जाता | इस घटना में पृथ्वी की उपच्छाया में प्रवेश करने से चंद्रमा की छवि धूमिल दिखाई देती है | कोई भी चन्द्रग्रहण जब भी आरंभ होता है तो ग्रहण से पहले चंद्रमा पृथ्वी की परछाई में प्रवेश करता है जिससे उसकी छवि कुछ मंद पड़ जाती है तथा चंद्रमा का प्रभाव मलीन पड़ जाता है |जिसे उपच्छाया कहते हैं | इसदिन चंद्रमा पृथ्वी की वास्तविक कक्षा में प्रवेश नहीं करेंगे अतः इसे ग्रहण नहीं कहा जाएगा | ये पृथ्वी की परछाई से ही बाहर आ जाएंगे इसलिए ग्रहण से संबंधित किसी भी तरह का दोष अथवा दुष्प्रभाव पृथ्वी वासियों पर लागू नहीं होगा | सभी बारह राशियों पर भी किसी तरह को कोई प्रभाव-दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा | आपसभी को अपनी राशि और उससे घटने वाली फलित घटनाओं को लेकर किसी भी तरह से परेशान होने की आवश्यकता नहीं है | सूतक और खान-पान तथा गर्भवती महिलाओं को लेकर भी किसी तरह का कोई भेद अथवा दोष विचारणीय नहीं होगा | इसदिन खगोलीय घटना के अनुसार चंद्रमा पृथ्वी की परछाई में प्रवेश करके वहीं से वापस निकल जाएंगे जिसके परिणामस्वरूप चंद्रमा का बिम्ब केवल धुंधला दिखाई देगा काला नहीं होगा, न ही किसी तरह का ग्रास होगा | इसलिए इसदिन पूर्णिमा तिथि से सम्बंधित किये जाने वाले जप-तप, पूजा पाठ, श्री सत्यनारायण कथा, तीर्थ क्षेत्रों में तथा गंगा, यमुना नर्वदा आदि पवित्र नदियों में स्नान दान-पुण्य का महत्व यथावत रहेगा | अतः आप जो भी कार्य करें उसे पूर्णिमा तिथि समझकर करें, चन्द्रग्रहण समझकर नहीं | इस चंद्रमालिन्य संयोग को भारतवर्ष के साथ-साथ अफ्रीका दक्षिण, पश्चिम अमेरिका, यूरोप, एशिया, ब्राजील, प्रशांत महासागर तथा हिंद महासागर आदि के क्षेत्रों से भी देखा जा सकता है |</div>
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jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-892006081453995172020-05-14T11:32:00.001+05:302020-05-26T12:09:36.204+05:30बृहस्पति हुए वक्री आपकी राशि पर कैसा रहेगा प्रभाव<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
आजकल अतिचारी होकर उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के द्वितीय चरण तथा मकर राशि में गोचर करते हुए देवगुरु बृहस्पति 14 मई की की शाम 07 बजकर<br />
56 मिनट पर 4 माह के लिए वक्री हो रहे हैं, ये पुनः 13 सितंबर की सुबह 06 बजकर 10 मिनट पर मार्गी होंगे | धनु तथा मीन राशि के स्वामी<br />
गुरु का वक्री होना पृथ्वी वासियों विशेष करके केंद्र एवं राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्रियों, साधु-संतो और अन्य आध्यात्मिक गुरुओं के साथ-साथ<br />
प्राकृतिक आपदाओं, आंधी तूफानों के अधिक से अधिक आने के संकेत है |<br />
फलित ज्योतिष में वक्री गुरु से तात्पर्य-<br />
संहिता ज्योतिष के अनुसार किसी भी ग्रह के वक्री होने का अर्थ है, उस ग्रह का अपने ही गंतव्य मार्ग से पुनः वापस लौटना अथवा मार्ग से मुह फेर<br />
लेना प्राणियों को उसग्रह के मार्गी होने से मिल रही सकारात्मक ऊर्जा का बाधित होना-रुकजाना | गुरु को सृष्टि का आध्यात्मिक ज्ञान प्रदाता कहा<br />
गया है, ये ब्रह्मज्ञान, शिक्षण संस्थाओं, भारी उद्योगों, बैंकों, जीवन बीमा निगम जैसी संस्थाओं, गैस के भंडारों, धार्मिक कार्यों, धर्माचार्यों एवं शासन<br />
सत्ता के सलाहकारों के कारक हैं | इनके वक्री होने की घटना को व्याहारिक दृष्टि से देखें तो महत्व समझ में आयेगा कि जो व्यक्ति आप को<br />
सद्बुद्धि-सन्मार्ग पर ले जाता है वही आप से मुहफेर ले तो कैसा लगेगा, आप पर क्या गुजरेगी ! बस वक्री का अर्थ यही होता है | इनके वक्री होने का<br />
सर्वाधिक असर संत-महात्माओं पर होता है | उनके चाल-चलन पर आरोप प्रत्यारोप लगने आरम्भ हो जाते हैं, कहीं न कहीं उनकी सामाजिक गरिमा का<br />
ह्रास होने लगता है यहाँतक कि, उनपर हमले होते हुए भी देखा गया है प्राचीन काल में इसी गुरु की वक्री अवस्था में असुर राजाओं द्वारा संत महात्माओं<br />
और यज्ञकर्ता वैदिक ब्राह्मणों पर अत्याचार होता रहा है इसलिए इनका वक्री होना इन सबके लिए बेहद अशुभ संकेत है |<br />
गुरु द्वारा आत्मबोध का ज्ञान-<br />
प्राणियों की जन्मकुंडली में बृहस्पति की शुभ स्थानों की स्थिति उन्हें आत्मबोध की ज्योति प्रदान करती है अतः इनका वक्री होना, उच्च राशि अथवा<br />
नीचराशिगत होना, स्वगृही, मित्रगृही, दिग्बली, दृष्टि सम्बन्ध आदि सब जीवन के अति महत्व पूर्ण अंग हैं | ये जब मार्गी रहते हैं तो बुद्धि को सुचारू<br />
रूप से सही दिशा में चलाते है किन्तु वक्री होने पर मन-मस्तिस्क में भय-भ्रम और विषाद<br />
पैदा कर देतें हैं | जिनकी कुंडली में गुरु अशुभ भाव में हों अथवा अशुभ राशि में गोचर कर रहे हों वे इस अवधि में अधिक परेशान होंगें, क्योंकि<br />
अशुभ गुरु के समय व्यक्ति भावावेश में कई ऐसे निर्णय ले लेता है जो स्वयं उसी के लिए आत्मघाती सिद्ध होते हैं | यहाँतक कि सरकारें भी न्याय<br />
और नितिपरक निर्णय लेने में असमर्थ हो जाती हैं मंत्रिमंडल में अधिकतर फेरबदल अथवा विस्तार ऐसी ही अवधि में होते हैं | सभी राशि वालों के<br />
लिए यह समय अति सूझ-बूझ और सावधानी बरतने का है, अतः संयम से काम और निर्णय लें |<br />
गुरु के अशुभ प्रभावों से बचने के उपाय-<br />
अशुभ गुरु की शांति के लिए ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः, मंत्र का जप करना तथा गुरुवार के दिन पीले वस्त्र धारण करना उत्तम रहेगा | बृहस्पति<br />
का ही गायत्री मंत्र ॐ अंगिरो जाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नो गुरु प्रचोदयात् | का जप हर तरह की गुरुजन्य परेशानियों से मुक्ति देगा |<br />
पञ्चपल्लव जिनमें आप, पाकड़, पीपल, गूलर तथा बरगद के वृक्षों का आरोपण करने के साथ साथ गुरु के प्रिय वृक्ष नीम, अनार और कनेर के<br />
वृक्षों का रोपण करना भी आपके संकल्प सिद्धि में सहायता करेगा |<br />
वक्री बृहस्पति का आपकी राशि कैसा रहेगा प्रभाव-<br />
मेष राशि- राशि से दशमभाव में गुरु कार्यक्षेत्र में अनिश्चितता का माहौल बनाएंगे किंतु, शुभ ग्रह होने के फलस्वरूप यह नौकरी<br />
में पदोन्नति और स्थान परिवर्तन का भी योग बनाएंगे | नई सर्विस के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर करना चाहें तो अवसर अच्छा रहेगा |<br />
विदेश यात्रा अथवा विदेशी नागरिकता के लिए आवेदन आदि करना शुभ रहेगा |<br />
वृषभ राशि- राशि से धर्मभाव में बृहस्पति का गोचर आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा तो बढ़ाएगा किन्तु धर्म-कर्म के मामलों में अधिक<br />
खर्च होगा | संतान संबंधी चिंता से कुछ मानसिक अशांति रहेगी | नवदंपति के लिए संतान प्राप्ति एवं प्रादुर्भाव के योग बन<br />
रहे हैं | मकान वाहन से संबंधित क्रय का संकल्प पूर्ण होने के योग |<br />
मिथुन राशि- राशि से अष्टमभाव में बृहस्पति मिले-जुले फल देंगे | स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव रहेगा | कार्य क्षेत्र में भी षड्यंत्र का<br />
शिकार होने से बचे | अचल संपत्ति के साथ वाहन खरीदने का संकल्प पूर्ण होगा | परिवार के वरिष्ठ सदस्यों से मतभेद ना पैदा<br />
होने दें | आपके अपने ही लोग नीचा दिखाने की कोशिश करेंगे, सावधान रहें |<br />
कर्क राशि- राशि से सप्तमभाव में बृहस्पति का गोचर करना दैनिक व्यापारियों के लिए शुभ रहेगा किंतु, शादी विवाह से संबंधित<br />
वार्ता में थोड़ा विलंब हो सकता है | ससुराल पक्ष से रिश्ते बिगड़ने न दें, इस अवधि के मध्य साझा व्यापार आरंभ करने से बचें |<br />
उच्चाधिकारियों से भी मधुर संबंध बनाए रखें, शासन सत्ता का सदुपयोग करें |<br />
सिंह राशि- राशि से छठें शत्रुभाव में बृहस्पति का वक्री होना गुप्त शत्रुओं से परेशान करेगा | इस अवधि के मध्य अधिक कर्ज के<br />
लेन-देन से और फिजूलखर्ची से भी बचें | कोर्ट कचहरी के मामले बाहर ही सुलझा लें तो बेहतर रहेगा | कष्टकर यात्रा भी<br />
करनी पड़ सकती है, किसी अप्रिय समाचार से मन अशांत होगा |<br />
कन्या राशि- राशि से पंचमभाव में गुरु के वक्री होने से प्रेम संबंधी मामलों में तो नुकसान हो सकता है किंतु शिक्षा प्रतियोगिता में<br />
अच्छी सफलता मिलेगी संतान के दायित्व की पूर्ति होगी नव दंपति के लिए संतान प्राप्ति एवं प्रभाव कभी योग बन रहा है | परिवार<br />
के सदस्यों से लाभ होगा और बड़े भाइयों से मतभेद पैदा होने दें |<br />
तुला राशि- राशि से चतुर्थ भाव में गुरु का वक्री होना पारिवारिक एवं मानसिक अशांति लाएगा | यात्रा के समय सामान चोरी होने<br />
से बचाएं | माता पिता के स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें फिर भी, मकान वाहन से संबंधित क्रय का संकल्प पूर्ण होगा | कार्यक्षेत्र<br />
का विस्तार होगा और सामाजिक जिम्मेदारियां बढ़ेंगी |<br />
वृश्चिक राशि- तृतीय पराक्रमभाव में गुरु का वक्री होना आपके स्वभाव में उग्रता ला सकता है इसलिए संयम बरकरार रखें |<br />
सामाजिक कार्यों के प्रति जिम्मेदारियों का निर्वहन करेंगे | संतान संबंधी चिंता से मुक्ति मिलेगी | शादी विवाह से संबंधित<br />
वार्ता भी सफल रहेगी दैनिक व्यापारियों के लिए विशेष शुभ |<br />
धनु राशि- राशि से द्वितीय धनभाव में बृहस्पति का वक्री होना मिलाजुला फल देगा किसी महंगी वस्तु का क्रय करेंगे | आकस्मिक<br />
धन प्राप्ति के योग भी बनेंगे | परिवार में आपसी मेलजोल बनाकर रखें, टकराव की स्थिति उत्पन्न होने दें | कार्यक्षेत्र में षड्यंत्र का<br />
शिकार होने से बचें | उच्चाधिकारियों से मधुर संबंध बनाकर रखें<br />
मकर राशि- आपकी राशि में ही वृहस्पति का वक्री होना मानसिक तनाव देगा और कहीं ना कहीं आप में अहंकार का भाव पैदा होगा<br />
इससे बचें | अपनी जिद एवं आवेश पर नियंत्रण रखते हुए कार्य करेंगे तो सफलता मिलती रहेगी | शिक्षा प्रतियोगिता में सफलता<br />
एवं शादी विवाह संबंधित वार्ता सफल रहेगी | दैनिक व्यापारियों के लिए विशेष लाभ |<br />
कुंभ राशि- राशि से हानिभाव में बृहस्पति का वक्री होना कुछ अप्रिय सूचना दे सकता है | भागदौड़ की अधिकता रहेगी कष्टकर यात्रा<br />
भी करनी पड़ सकती है | अधिक व्यय के परिणामस्वरूप आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ सकता है | गुप्त शत्रुओं के साथ ही <br />
इस अवधि के मध्य उधार देने से भी बचें अन्यथा दिया गया धन वापस आने में संदेह |<br />
मीन राशि- राशि से लाभभाव में बृहस्पति का वक्री होना परिवार के बड़े सदस्यों से मतभेद तो पैदा कर सकता है किंतु लाभ मार्ग प्रशस्त<br />
होगा, रुका हुआ धन आएगा | विद्यार्थियों के लिए यह समय किसी वरदान से कम नहीं है, इसलिए परीक्षा में अच्छी सफलता के लिए<br />
पढ़ाई में भी अधिक समय लगाएं | प्रेम संबंधों में समय नष्ट न करें |<br />
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<br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;" /></div>
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jaigovindshastri.blogspot.comhttp://www.blogger.com/profile/01339073508125460917noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2079628909144625333.post-81167415696824726682020-05-14T11:31:00.001+05:302020-05-26T12:08:44.320+05:30सूर्य के बृषभ राशि में प्रवेश के साथ ही गर्मी का युवाकाल आरम्भ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सूर्यदेव अपनी उच्चराशि मेष की यात्रा समाप्त करके 14 मई को शायं 05 बजकर 14 बृषभ राशि में प्रवेश कर रहे हैं | इनके बृषभ राशि में प्रवेश के साथ ही<br />
ग्रीष्मऋतु की युवावस्था आरम्भ हो जायेगी और 24 मई की मध्य रात्रि पश्च्यात इनके रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश के साथ ही<br />
गर्मी का चरम 'नौतपा' भी आरम्भ हो जायेगा | इनकी तपिश के परिणामस्वरुप मानसून बनने की प्रक्रिया का शुभारम्भ भी हो जाएगा |<br />
शास्त्र कहते है कि केवल सूर्य की ही आराधना से सभी ग्रहदोषों से मुक्ति मिलती है | प्रत्यक्ष देवता सूर्य और चन्द्र में दोनों में ही पूर्व के<br />
जन्मों के पाप शमन करने शक्ति रहती है | 'पूर्व जन्म कृतं पापं व्याधि रूपेण जायते' अर्थात पूर्व के जन्मों में किया गया पाप रोग के रूप में<br />
उत्पन्न होता है | इन्हें अर्घ्य देकर और प्रणाम करके ही प्राणी भवसागर से मुक्त हो जाता है | जैसे रत्नों का आश्रय मेरुपर्वत, आश्चर्यों का<br />
आश्रय आकाश, तीर्थों का आश्रय गंगा हैं उसी प्रकार सभी देवाताओं के आश्रय भगवान सूर्य हैं | देवगण भी भगवान सूर्य की ही आराधना<br />
करते हैं | इस चराचर जगत में सभी प्राणियों के ह्रदय के ही सूर्य का निवास है यही जगतात्मा हैं | इनके बृषभ राशि में प्रवेश का सभी बारह<br />
राशियों पर कैसा प्रभाव पड़ेगा इसका ज्योतिषीय विश्लेषण करते हैं |<br />
<br />
मेष राशि- राशि से द्वितीयभाव में सूर्य का गोचर स्वास्थ्य की दृष्टि से कुछ प्रतिकूल रहेगा, विशेषकर के दाहिनी आंख से संबंधित समस्या से सावधान<br />
रहना पड़ेगा, अग्नि, विष तथा दवाओं के रिएक्शन से भी बचना पड़ेगा कार्यक्षेत्र में षड्यंत्र का शिकार होने से बचें | परिवार में विघटन न पैदा होने दें |<br />
कठोर वाणी का प्रयोग करने से बचें, ज़िद और आवेश पर नियंत्रण रखें | किसी महंगी वस्तु का क्रय करेंगे |<br />
वृषभ राशि- आपकी राशि पर सूर्य, बुध और शुक्र का गोचर मिलाजुला फल देगा, हो सकता है शारीरिक पीड़ा से आपको परेशानी भी हो, शरीर में कैल्शियम<br />
की कमी ना होने दें | दैनिक व्यापारियों के लिए समय अपेक्षाकृत अनुकूल है | विद्यार्थियों के लिए शिक्षा-प्रतियोगिता में अच्छी सफलता हासिल करने के<br />
योग | शोधपरक एवं रचनात्मक कार्यों में अच्छी सफलता के साथ-साथ सम्मान भी हासिल होगा |<br />
मिथुन राशि- राशि से बारहवें भाव में सूर्य का गोचर अत्यधिक व्यय करवाएगा, बाई आंख से संबंधित समस्या आ सकती है इसका ध्यान रखें | यात्रा<br />
सावधानी पूर्वक करें | किसी अप्रिय समाचार से मन दुखी रहेगा, परिवार के बड़े सदस्यों से मतभेद ना पैदा होने दें | सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर<br />
हिस्सा लेंगे और दान पुण्य भी करेंगे | विदेशी कंपनियों में सर्विस हेतु आवेदन करना लाभदायक रहेगा |<br />
कर्क राशि- राशि से लाभभाव में सूर्य का गोचर सभी विषम परिस्थितियों से छुटकारा दिलाएगा | कोर्ट कचहरी के मामलों में भी निर्णय आपके पक्ष में<br />
आने के संकेत | परिवार के वरिष्ठ सदस्यों विशेषकर के बड़े भाइयों से मतभेद ना पैदा होने दें | उच्चाधिकारियों से भी मधुर संबंध बनाकर रखेंगे, तो<br />
कार्य बाधाओं से मुक्ति मिलेगी | आपके द्वारा लिए गए निर्णय एवं किए गए कार्यों की सराहना भी होगी |<br />
सिंह राशि- राशि से दशमभाव में सूर्य का गोचर आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है, कार्य व्यापार में उन्नति के साथ-साथ पद और गरिमा की<br />
भी वृद्धि होगी सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी | आपके कुशल नेतृत्व को देखते हुए कार्यभार में भी बढ़ोतरी की जाएगी | नौकरी में स्थान परिवर्तन अथवा<br />
नए अनुबंध पर हस्ताक्षर करने का उपयुक्त समय | मकान वाहन के क्रय से संबंधित संकल्प पूर्ण होंगे |<br />
कन्या राशि- राशि से भाग्यभाव में सूर्य, बुध और शुक्र का रहना किसी वरदान से कम नहीं है किंतु, कई बार आपका कार्य होते होते भी रुक जाया करेगा<br />
इसलिए कोई भी कार्य या योजना जब तक पूर्ण न कर लें उसे सार्वजनिक ना करें | लोग आप को नीचा दिखाने की अथवा आपके खिलाफ षड्यंत्र रचने की<br />
पूरी कोशिश करेंगे, सावधान रहें | विदेशी कंपनियों में नौकरी के लिए आवेदन करने का अच्छा समय |<br />
तुला राशि- राशि से अष्टमभाव में तीन ग्रहों का होना आपको महाप्रतापी बनाएगा, अपने कठिन परिश्रम एवं कठोर निर्णय लेने के कारण आपका मान<br />
सम्मान और यश बढ़ेगा किंतु इसी से आपके गुप्त शत्रु ही पैदा होंगे | प्रयास करें कि कार्य संपन्न करें और विवादों से दूर रहते हुए सीधे अपने निवास<br />
स्थान पर आएं | स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहे अग्नि, विष तथा दवाओं के रिएक्शन से बचें |<br />
वृश्चिक राशि- राशि से सप्तम भाव में सूर्य का गोचर दैनिक व्यापारियों के लिए तो उत्तम रहेगा किंतु, ससुराल पक्ष से रिश्तो में कुछ कड़वाहट आने<br />
के संकेत | विवाह संबंधित वार्ता सफल रहेगी | केंद्र अथवा राज्य सरकार के प्रमुख प्रतिष्ठानों से संबंधित कोई कार्य रुका हो तो उसे संपन्न कराएं,<br />
सफलता मिलेगी |माता पिता के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दें, अधिकारियों से मतभेद न पनपने दें |<br />
धनु राशि- राशि से शत्रुभाव में सूर्य का गोचर आपको विषम परिस्थितियों से लड़ने में मदद करेगा, शत्रु परास्त होंगे और कोर्ट कचहरी के मामले में<br />
निर्णय आपके पक्ष में आने के संकेत | ननिहाल पक्ष से रिश्तो में कड़वाहट आ सकती है इसे बढ़ने दें | अत्यधिक भागदौड़ और खर्च के कारण कुछ<br />
मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ेगा अपने इष्ट बंधुओं अथवा मित्रों से अशुभ समाचार के योग |<br />
मकर राशि- राशि से पंचमभाव में सूर्य का गोचर और साथ ही बुध तथा शुक्र की उपस्थिति संतान संबंधी चिंता से मुक्ति दिलाएगी यहांतक कि,<br />
नव दंपत्ति के लिए संतान प्राप्ति एवं प्रादुर्भाव के भी योग हैं | प्रेम संबंधी मामलों में मतभेद के संकेत | शोधपरक कार्यों में लगे प्रतियोगी छात्रों<br />
के लिए यह समय और बेहतर है | व्यापारिक वर्ग के लिए समय अनुकूल है रुका हुआ धन आएगा आय के स्रोत बढ़ेंगे |<br />
कुंभ राशि- राशि से चतुर्थभाव में सूर्य का गोचर मिलाजुला फल देगा | पारिवारिक कलह के कारण मानसिक अशांति का सामना करना पड़ सकता है |<br />
माता पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें | वाहन क्रय करने के सपने में भी कुछ बाधा आ सकती है इसे ग्रह योग समझकर परेशान ना हो | मित्रों से<br />
कुछ निराशा हाथ लगेगी इस अवधि के मध्य अधिक कर्ज के लेन-देन से बचें, अन्यथा दिये गए धन की वापसी में संदेह |<br />
मीन राशि- राशि से पराक्रम भाव में सूर्य का गोचर आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है | साहस और पराक्रम की वृद्धि तो होगी ही ऊर्जा शक्ति<br />
की भी अधिकता रहेगी जिसके कारण विषम हालात पर भी नियंत्रण पा लेंगे | आपके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना होगी किंतु परिवार के सदस्यों<br />
से मतभेद न पैदा होने दें | विदेशी कंपनियों में सर्विस हेतु आवेदन अथवा विदेशी नागरिकता के लिए वीजा आवेदन करना शुभ रहेगा |<br />
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कहीं शनि आपकी राशि के लिए घातक तो नहीं !<br />
शनिदेव की साढ़ेसाती का नाम आते ही प्राणी किसी न किसी कारण से बेचैन होने लगते हैं कि ये साढ़ेसाती उनके लिए शुभ रहेगी याअशुभ | सत्य ये है कि इनकी साढ़ेसाती, ढैया और मारकेश दशा के रूप में गोचरकाल प्राणियों के अच्छे बुरे कर्मों के अनुसार उन्हेंपुरस्कार तथा दंड देने के लिए ही आता है | प्राणी के कर्म अच्छे हैं तो अशुभ प्रभाव कम होगा और उसे अच्छे फल मिलेंगे किंतु,प्राणियों के कर्म ज्यादा बुरे हैं तो अशुभ प्रभाव अतिशय पीड़ादाई होगा | जाने शनि की साढ़ेसाती और उनके गोचर काल के प्रभावके बारे में |क्या है शनि की साढ़ेसाती-अपने गोचरकाल में शनिदेव एक राशि पर ढाई वर्ष रहते हैं | जब यह आपकी जन्म राशि से पहले, दूसरे और बारहवें स्थानों मेंभ्रमण करते हैं तो यह काल शाढ़े सात वर्ष का रहता है और इसे ही साढ़ेसाती कहते हैं | ज्योतिष सूत्र के अनुसारद्वादशे जन्मगे राशौ द्वितीये च चनैश्चरः | सार्द्धानि सप्तवर्षाणि तदा दुःखैर्युतो भवेत् |शनि गोचर से बारहवें स्थान पर हों तो सिर पर, जन्म राशि पर हों तो हृदय पर और जन्म राशि से द्वितीय स्थान में हों तोपैर पर उतरती साढ़ेसाती के रूप में अपना प्रभाव डालते हैं | जन्म राशि से चतुर्थ और अष्टम स्थानों पर गोचर करते हुए शनिकी ढैया रहती है, जो ढ़ाई वर्षतक चलती है यह भी जातक के लिए अति कष्टकारी रहती है | शनि का पाया विचार-शनि के राशि परिवर्तन के समय यदि चंद्रमा पहले, छठे और ग्यारहवें स्थान में हों तो सोने का पाया, दूसरे, पांचवें में तथा नवमस्थान में हो तो चांदी के पाये पर गोचर करते कहलाते हैं | जब शनिदेव तीसरे, सातवें एवं दसवें स्थान में हों तो तांबे का पायाऔर चौथे, आठवें तथा बारहवें स्थान में हो तो लोहे के पाए पर गोचर करते हुए माने गए हैं | सोने के पाए पर हों तो सुखों कोदेने वाले, चांदी के पाये पर गोचर करते हुए सौभाग्य बढ़ाने वाले और ताबे के पाए पर गोचर करते हुए शनि मध्यम फल देते हैंजबकि लोहे के पाए पर गोचर करते हुए शनि अनेक प्रकार के कष्ट एवं धन हानि करते हैं | राशियों पर इनका प्रभाव-यदि शनि जातक के जन्म के समय मिथुन, कर्क, कन्या, धनु अथवा मीन राशि पर गोचर कर रहे हों तो मध्यम फलदाई होतेहैं | मेष, सिंह और वृश्चिक पर गोचर करते हुए शनिदेव प्रतिकूल प्रभाव देने के लिए तत्पर रहते हैं | वृषभ तुला मकर औरकुंभ राशि वालों के लिए शनि हमेशा लाभदायक रहते हैं इन राशियों में इनके गोचर करते समय जो जातक जन्म लेते हैं उनकेजीवन में एक समय ऐसा अवश्य आता है जब ये जातक को रंक से राजा बना देते हैं | ऐसे व्यक्तियों के जीवन में आकस्मिकताका प्रभाव सर्वाधिक रहता है | लोग जनप्रिय होते हैं और छोटे स्तर से कार्य करके कामयाबी की बुलंदी तक पहुंचते हैं |शनि की शाढ़े साती अथवा मारकेश में सर्वाधिक पीड़ा पाने वाले कौन-शनिदेव अपनी साढ़ेसाती या ढैय्या या मारकेश दशा में ऐसे लोगों को अत्यधिक कष्ट पहुंचाते हैं जो, विश्वासघाती, गुरुजनों सेधोखा करने वाले, अति झूठ बोलने वाले, मित्रों से झूठ बोलकर उनको हानि पहुंचाने वाले, कृतघ्न, न्यायालय में झूठी गवाहीदेने वाले, भिखारियों को अपमानित करने वाले, अति स्वार्थी, धूर्तता या चालाकी से धन हड़पने वाले, बुजुर्गों को अपमानितकरने वाले, रिश्वत लेने वाले, व्यभिचार में लिप्त तथा नशा करने वाले, चींटी, कुत्ते या कौवे को मारने वाले होते हैं |<br />
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मंगल का मकर में प्रवेश और शनि के साथ उनकी युति<br />
महान ग्रह मंगल 22 मार्च की रात्रि 10 बजकर 06 मिनट पर धनु राशि की यात्रा संपन्न करके अपनी उच्चराशि मकर में प्रवेश करेंगे, जहां ये पहले<br />
से ही विराजमान शनिदेव के साथ युति करेंगे | मकर राशि में ये 04 मई की की रात्रि 08 बजकर बजकर 37 मिनट तक रहने के पश्च्यात कुंभ राशि<br />
में प्रवेश करेंगे | मकर राशि शनिदेव की अपनी राशि है और मंगल की उच्चराशि है अतः यह संयोग कम विनाशक सिद्ध होगा फिर भी शनि-मंगल की<br />
इस युति का सभी बारह राशियों पर कैसा प्रभाव रहेगा इसका ज्योतिषीय विश्लेषण करते हैं |<br />
मेष राशि- राशि से दशम भाव में मंगल का उच्चराशिगत होना आपके लिए तरह-तरह की कामयाबी दिलाएगा विशेष करके नौकरी में पदोन्नति एवं<br />
नए अनुबंध की प्राप्ति के भी योग बनाएगा किंतु स्वभाव पर इन की नीच दृष्टि के प्रभाव स्वरूप पारिवारिक कलह से मानसिक पीड़ा बढ़ सकती है |<br />
माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें, भूमि भवन एवं अचल संपत्ति का योग, सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी एवं कार्यक्षेत्र का विस्तार भी होगा |<br />
वृषभ राशि- राशि से भाग्यभाव में उच्चराशिगत मंगल कई तरह के अप्रत्याशित परिणाम दिलाएगा, विदेश यात्रा अथवा विदेशी व्यक्तियों से संपर्क बढ़ेगा<br />
किंतु ध्यान रहे आपकी राशि के लिए मंगल नुकसानदेय भी हो सकते हैं | इस अवधि के मध्य सभी निर्णय दिल की बजाए दिमाग से लें | पराक्रम<br />
की वृद्धि तो होगी किंतु, परिवार के बड़े सदस्यों अथवा बड़े भाइयों से मतभेद न पैदा होने दें | झगड़े विवाद से बचें, यात्रा सावधानीपूर्वक करें |<br />
मिथुन राशि- राशि से अष्टमभाव में उच्चराशिगत मंगल आपको प्रतापी एवं आक्रामक बनाएंगे फिर भी, कार्यक्षेत्र में झगड़े विवाद से बचें | स्वास्थ्य<br />
का ध्यान रखें वाहन सावधानी पूर्वक चलाएं दुर्घटना से बचें | कोर्ट कचहरी के मामले बाहर ही सुलझा लें तो बेहतर रहेगा | इनकी नीच दृष्टि धनभाव<br />
पर पड़ रही है जिसके परिणामस्वरूप अप्रत्याशित रुप से धन हानि की संभावना भी बनती है अतः लेन-देन के मामलों में भी सावधानी बरतें |<br />
कर्क राशि- राशि से सप्तमभाव में उच्चराशिगत मंगल आपके लिए कई मायनों में किसी वरदान से कम नहीं है किंतु यह भी संभावना बनती है कि<br />
शादी- विवाह से संबंधित मामलों में विलंब हो | दैनिक व्यापार से अधिक लाभ होगा | इनका शुभ प्रभाव आपके कार्य क्षेत्र का विकास करेगा सामाजिक<br />
प्रतिष्ठा बढ़ेगी नौकरी में पदोन्नति एवं नए अनुबंध की प्राप्ति के भी योग बनेंगे, आपको चाहिए कि मंगल के इस गोचर का भरपूर लाभ उठाएं |<br />
सिंह राशि- राशि से छठे शत्रुभाव में उच्चराशिगत मंगल आपके विरोधियों का पूर्णतः शमन कर देंगे | कोर्ट कचहरी के मामले भी आपके पक्ष में आने<br />
के संकेत | इस अवधि के मध्य केंद्र अथवा राज्य सरकार से संबंधित रुके हुए आपके कार्यों का निपटारा होगा | नौकरी में उन्नति एवं नए अनुबंध की<br />
प्राप्ति के भी योग, उच्चाधिकारियों से मधुर संबंध बनाकर रखें और जबतक अपनी योजनाएं पूर्ण न हो जाए उसे सार्वजनिक न करें |<br />
कन्या राशि- राशि से पंचमभाव में मंगल शिक्षा प्रतियोगिता में अच्छी सफलता देंगे, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विद्यार्थियों के लिए तो यह गोचर किसी<br />
वरदान से कम नहीं है, शिक्षा प्रतियोगिता में अच्छी सफलता हासिल होगी | संतान संबंधी चिंता से मुक्ति मिलेगी, नव दंपति के लिए संतान प्राप्ति एवं<br />
प्रादुर्भाव के योग बन रहे हैं | सरकारी सर्विस हेतु आवेदन करने का बेहतर अवसर, अपनी जिद और आवेश पर नियंत्रण रखते हुए आगे बढ़ें |<br />
तुला राशि- राशि से चतुर्थ भाव में मारकेश मंगल का गोचर आपके लिए मिलाजुला फल देने वाला सिद्ध होगा | कार्य व्यापार में भी स्थितियां सामान्य रहेंगी पारिवारिक कलह एवं मानसिक अशांति से आप कहीं न कहीं अपने आपको परेशान महसूस करेंगे | माता पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए परिवार में<br />
विघटन न होने दें | इन सबके बावजूद भूमि भवन एवं वाहन के सुख प्राप्ति का योग बन रहा है यात्रा के समय सामान चोरी होने से बचाएं |<br />
वृश्चिक राशि- राशि से पराक्रम भाव में उच्चराशिगत मंगल आपके लिए बेहतरीन सफलता लेकर आ रहे हैं साहस एवं पराक्रम की वृद्धि होगी और इसी के<br />
बलपर आप विषम हालात को भी सामान्य कर लेंगे | मान सम्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा तो बढ़ेगी ही विदेश यात्रा एवं देशाटन का लाभ मिलेगा, यहांतक<br />
कि किसी अन्य देश की नागरिकता के लिए वीजा आदि के लिए आवेदन करना चाह रहे हों तो गोचर अच्छी सफलता के संकेत दे रहा है |<br />
धनु राशि- राशि से धनभाव में मंगल का गोचर कुछ पारिवारिक कलह तो दे सकता है किंतु आर्थिक पक्ष बहुत मजबूत करेगा कहीं से रुका हुआ धन आएगा,<br />
और आकस्मिक धन प्राप्ति के योग भी बनेंगे | नए अनुबंध पर हस्ताक्षर करना हो अथवा स्थान परिवर्तन हेतु प्रयास करना हो तो यह अवसर अच्छा रहेगा स्वास्थ्य का ध्यान रखें और यात्रा सावधानीपूर्वक करें | बेहतर रहेगा कि कार्य क्षेत्र से कार्य निपटाए और सीधे घर आएं |<br />
मकर राशि- आपकी राशि में पहले से ही विद्यमान शनिदेव के साथ मंगल का आगमन कई अप्रत्याशित परिणाम देगा | आप कोई भी बड़े से बड़ा निर्णय भावनाओं में बहकर न लें झगड़े विवाद से बचें | कार्यव्यापार की दृष्टि से यह युति बेहतरीन सिद्ध होगी | स्वास्थ्य के प्रति हमेशा सतर्क रहें, वाहन सावधानी<br />
पूर्वक चलाएं | जमीन जायदाद से जुड़े हुए मामलों का निपटारा होगा और कोर्ट कचहरी के मामले आपके पक्ष में आने के संकेत |<br />
कुंभ राशि- राशि से व्ययभाव में उच्च राशि का मंगल का जाना अत्यधिक यात्राएं तो कराएगा ही, साथ ही आर्थिक तंगी भी ला सकता है इसलिए अपव्यय<br />
से बचें | कोर्ट कचहरी के मामले भी बाहर ही सुलझा लें तो बेहतर रहेगा | अपनी जिद एवं आवेश पर नियंत्रण रखते हुए कार्य करेंगे तो सफलता वृद्धि होगी<br />
अन्यथा तनाव अधिक रहेगा जिसके फलस्वरूप आपका स्वास्थ्य प्रभावित होगा | अधिक के कर्ज़ के लेन-देन से बचें |<br />
मीन राशि- राशि से लाभभाव में उच्चराशि गत मंगल आपके सभी अरिष्टों का शमन करेंगे, इसलिए यदि आप अपनी योजनाओं को सही रूप से चलाएंगे<br />
तो पिछले दिनों के हुए नुकसान की भरपाई हो जाएगी इन सबके बावजूद बड़े भाइयों से मतभेद बढ़ सकता है इसे ग्रह योग समझकर तूल न दें | व्यापारिक<br />
वर्ग के लिए यह गोचर और भी बेहतर रहेगा विद्यार्थियों को शिक्षा प्रतियोगिता में अच्छी सफलता के योग, नौकरी के लिए आवेदन करें |</div>
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