सोमवार, 18 जून 2012


त्वं दूर्वे अमृतनामासि सर्वदेवैस्तु वन्दिता !
वन्दिता दह तत्सर्वं दुरितं यन्मया कृतम !!

मित्रों - समुद्र मंथन के दौरान एक समय जब देव-दानव थकने लगे तो भगवान् विष्णु
ने मंदराचल पर्वत को अपनी जंघा पर रखकर समुद्र मंथन करने लगे उस मंदराचल
पर्वत के घर्षण से जो रोम टूट कर समुद्र में गिरे थे वही जब किनारे लगे तो दूब
के रूप में परिणित होगये ! अमृत निकलने के बाद अमृत कलश को सर्व प्रथम इसी
दूब पर रखागया था जिसके फलस्वरूप यह दूब भी अम्रत तुल्य होकर अमर हो गयी !
यह दूब-घास विष्णु का ही रोम है अतः सभी देवताओं में पूजित हुई और अग्र पूजा के
अधिकारी गणेश को अति प्रिय हुईं तभी से पूजा में दूर्वा का प्रयोग अनिवार्य होगया !
आयुर्वेद में इसे अति बलिष्ट तथा मेधा शक्ति के लिए उत्तम औषधि बताया गया है !!

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