शनिवार, 30 अगस्त 2014


मंगल का बृश्चिक राशि में प्रवेश बनाया 'रुचकयोग'
अदम्य साहसी एवं पराक्रमी ग्रह अवनेय मंगल लगभग 2 वर्ष बाद पुनः अपनी राशि बृश्चिक में प्रवेश कर रहे हैं इस राशि में ये 18 अक्टूबर तक रहेंगें,
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से ये बड़ी घटना है ! क्योंकि वर्तमान समय में निर्मित शनि-मंगल योग भंग हो जायेगा और पृथ्वी पर फैली अराजकता में कमी आएगी !
मंगल मेटल्स, पावर, पेट्रोरसायन, हैंडीक्राफ्ट, प्रापर्टी, रियलस्टेट, इंफ्रा, सीमेंट, ज्वलनशील पदार्थों, कमोडिटीज के कारक होते हैं अतः स्टॉक मार्केट में इन पदार्थों
के सेक्टर्स में भारी उतार चढ़ाव की आशंका बनती है ! प्राणियों के शरीर में इनका प्रभाव खून में रहता है, अशुभ प्रभावी होने पर रक्तविकार, लो या हाई
ब्लड प्रेशर, ब्लडकैंसर आदि रोग जन्म लेते हैं यही नहीं न्यूरोलोजिकल समस्याएं, एवं विषाणु जनित गुप्त रोगों की समस्याएं देने में भी मंगल पीछे नहीं
रहते ! जन्मकुंडली में इनके द्वारा बनाये गए 'रुचक योग' से प्राणियों में अद्भुत शक्ति, साहस, सामर्थ्य, शारीरिक बल तथा मानसिक क्षमता रहती है जिसके
फलस्वरूप व्यक्ति सेना अथवा पुलिस में, आग्नेयास्त्र बनाने वाले संस्थानों में, अग्निशमन विभागों, अनेकों खेलों में भरपूर कामयाबी मिलती है ये अग्नितत्व
कारक मेष राशि के भी स्वामी हैं मकर इनकी उच्च और कर्क नीचराशि संज्ञक है ! ये प्रत्येक व्यक्ति में शारीरिक ताकत, मानसिक शक्ति एवम मजबूती प्रदान
करते हैं । निर्णय लेने की क्षमता और दृढ निश्चयता के साथ उस निर्णय पर टिके रहना इनकी नियति है ऐसे जातक सामान्यतया किसी भी प्रकार के दबाव के
आगे घुटने नहीं टेकते तथा इनके उपर दबाव डालकर अपनी बात मनवा लेना बहुत कठिन होता है इन्हें दबाव की अपेक्षा तर्क देकर समझा लेना ही उचित
होता है । जन्मकुंडली में यदि मंगल शुभ स्थान में हो अथवा बलवान हो तो जातक को सभी प्रकार के ऐश्वर्य और भौतिक सुख प्रदान करते हैं किन्तु अशुभ,
अकारक एवं बलहीन हों तो ये प्राणियों के शारीरिक तथा मानसिक उर्जा पर विपरीत प्रभाव डालते हैं जिसके परिणाम स्वरूप जातक में बलहीनता, सिरदर्द, थकान,
चिड़चिड़ापन, तथा निर्णय लेने में अक्षमता रहती है । बृश्चिक राशि में इनका आगमन मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, मकर, कुम्भ, और मीन राशि के जातकों
के लिए उत्तम रहेगा जबकि अन्य राशियों के लिए मध्यम रहेगा ! अपने ही घर पहुचे मंगल किसी भी जातक को अधिक परेशान नही करेंगें, यहाँ तक कि इस
अवधि के मध्य किसी भी दिन अथवा किसी भी लग्न में जन्मे नवजात शिशुओं की जन्म कुण्डलियाँ मांगलिक दोष से भी मुक्त रहेंगी ! मंगल मृगशिरा, चित्रा
तथा धनिष्ठा नक्षत्र के स्वामी हैं इसलिए इनके अशुभ प्रभाव से बचने और शुभप्रभाव की प्राप्ति के लिए इन नक्षत्रों से उत्पन्न वृक्षों खैर, बेल और शमीवृक्ष
किसी भी सुरक्षित स्थान जैसे, मंदिर, सरोवर, नदी, तीर्थ, बगीचों, पार्कों तथा सड़कों के समीप लगाने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं ! पं जयगोविन्द शास्त्री

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014


  'गृहस्थों के लिए वरदान पाने का दिन सोमवती अमावस्या 25 अगस्त '
वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को सोमरुपी पितृ, सभी प्रकार की औषधियों का स्वामी तथा जीव-जगत के मन का अधिकारी कहा गया है ! प्राणियों के जीवन
में रोग-आरोग्य, हानि-लाभ, जीवन-मरण के प्रकार, यश-अपयश, मानसिक मजबूती एवं कमजोरी और निर्णय लेने की क्षमता का सीधा सम्बन्ध जातकों
की जन्मकुंडलियों में चंद्रमा की स्थिति से है ! वर्तमान श्रीश्वेतवाराहकल्प के आरम्भ में सभी तिथियों के अधिपति सूर्यदेव थे ! कालान्तर में उन्होंने इन
तिथियों को अन्य देवताओं में बँटवारा कर दिया ! जिनमे अमावस्या के अधिपति अमावसु नामक पितृ को बनाया गया ! इन पितृों में सोम एवं अग्निष्वात
सर्वोपरि कहे गए हैं इन्हीं सोम के दिन जब अमावस्या तिथि पड़ती है तो उसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है ! जो प्रत्येक वर्ष में एक या दोबार पड़ती है,
वर्ष के किसी भी अमावस्या के दिन मन-चिंतन स्वामी चंद्रमा आकाश से ओझल रहते हैं ! चूँकि चंद्रमा का जल के प्रति चुम्बकीय प्रभाव रहता है जिसका
सम्बन्ध जीवों में उपस्थित द्रव पदार्थ रूपी रक्त से है अतः इसदिन मनुष्य को अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक वैराग्य का भाव रहता है !
इस दृष्टि से भी यह दिन मानसिक दोषों से मुक्ति पाने के लिए उत्तम माना गया है ! इसदिन पितृदोष से मुक्ति के निमित्त किया गया पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध,
दान-पुण्य आदि का विशेष महत्व रहता है ! मौनव्रत करने तथा पीपल वृक्ष की पूजा व १०८ बार परिक्रमा करने से समस्त प्रकार की दैहिक, दैविक और भौतिक
कष्टों से भी मुक्ति मिलती है ! द्वापर युग में पितामह भीष्म ने धर्मराज युधिष्ठिर को इसदिन के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि हे ! कुंती नंदन
इसदिन जो मनुष्य किसी भी नदी, तीर्थ, समुद्र में स्नान करेगा उसे समस्त कष्टों के साथ-साथ पितृशाप से भी मुक्ति मिलेगी ! सोमवती अमावस्या के सम्बन्ध
में मुहूर्त ज्योतिष के महान ग्रन्थ 'निर्णयसिन्धु' में कहा गया है कि इसदिन 'पीपल' के वृक्ष की पूजा करने से पति के स्वास्थ्य में सुधार, न्यायिक समस्याओं
से मुक्ति, आर्थिक परेशानियों का समाधान होता है । पीपल को विष्णु स्वरूप माना जाता है जिनमे सभी पितृों, देवों सहित ब्रह्मा, विष्णु और शिव का वास
रहता है ! पुराणों के अनुसार इसदिन पितृशाप से मुक्ति के लिए पीपल, उत्तम दाम्पत्य सुख अथवा मनोनुकूल पति/पत्नी प्राप्ति के लिए पाकड़, शनि कृपा एवं
पुण्य वृद्धि के लिए शमी वृक्ष, अन्न भण्डार के लिए महुआ, धन वृद्धि के लिए जामुन, कामना पूर्ति के लिए आम, सूर्य की कृपा तथा यश प्राप्ति के लिए बेल
का वृक्ष, बृहस्पति की कृपा और ज्ञान वृद्धि के लिए अनार, लो ब्लड प्रेशर से मुक्ति के लिए अशोक आदि का वृक्ष किसी भी मंदिर, सरोवर, नदी अथवा सड़क
के किनारे लगाने से उपरोक्त कही गई बातों के अतिरिक्त जन्मकुंडली के छठें, आठवें एवं बारहवें भाव से सम्बंधित दोष नष्ट हो जाते हैं ! किसी भी स्त्री या
पुरुष के विवाह में अड़चन आरही हो, बार-बार रिश्ता टूट रहा हो तो वृक्षारोपण करने से इन समस्त विषमताओं से मुक्ति तो मिलेगी ही साथ ही स्वास्थ्य, शिक्षा,
कानूनी विवाद, आर्थिक परेशानियों और पति-पत्नी सम्बन्धी विवादों में कमी आएगी ! सोमवार भगवान रूद्र को भी अति प्रिय है अत: सोमवती अमावस्या
के दिन रुद्राभिषेक करने से शिव की अति कृपा मिलती है । पं जयगोविन्द शास्त्री

शुक्रवार, 15 अगस्त 2014


       'अनेकों उपलब्धियों भरा रहेगा भारत का 68वाँ वर्ष'
आज हम स्वाधीनता दिवस का 68वाँ जन्मदिन मना रहें हैं ! आज़ादी के 67 वर्ष व्यतीत हो जाने के बावजूद अभी भी गरीब भूँखे मर रहें है, किसान
आत्म हत्या कर रहा है ! देश आज जिन विषमताओं से जूझ रहा है, क्या इन विपत्तियों का कुहासा कभी छटेगा..? इसका ज्योतिषीय विश्लेषण
करते हैं ! स्वतंत्र भारत की जन्मकुंडली बृषभ लग्न की है कुंडली के लग्न में ही राहू, द्वीतीय धनभाव में मारकेश मंगल, तीसरे पराक्रम भाव में
चन्द्र, सूर्य, बुध, शुक्र और शनि, छठे शत्रु भाव में बृहस्पति और सातवें भाव में केतु बैठे हैं ! कुंडली में 'अनंत' नामक कालसर्प योग बना हुआ है
जिसके स्वामी स्वयं भगवान् सूर्य हैं, मेदिनी ज्योतिष में किसी भी राष्ट्र की जन्मकुंडली का लग्न, द्वीतीय, चतुर्थ, छठा और नवम् भाव अति
महत्वपूर्ण होता है ! कारण यह है, कि लग्न से उस देश की प्रगति और शासनसत्ता की ईमानदारी आदि, द्वीतीय भाव से धन और पडोसी राष्ट्रों से
सम्बन्ध, चतुर्थ भाव से देश की जनता की मानसिक स्थिति और छठे भाव से ऋण, रोग और शत्रु के बारे में ज्ञात किया जाता है ! भारत की जन्मकुंडली
के द्वितीयभाव में बैठा मारकेश मंगल हमेशा अपने ही लोंगों से भीतरघात तथा आपसी कलह कराएगा जो देशहित में कदापि नहीं रहेगा ! देश को खतरा
उन गद्दारों से होगा जो भारत माँ की ही छाती का अन्न खाते हैं और इन्हीं की छाती पर भ्रष्टाचार, आतंकवाद, जातिवाद और सम्प्रदायवाद जसे संगीन
अपराधों को जन्म देते हैं ! ख़ुशी की बात यह है कि भगवान् सूर्य और शनि ने अकेले ही राजयोग बनाया है इसलिए देश तरक्की में पीछे नहीं रहेगा !
वर्तामान समय में भारत की कुंडली के अनुसार अनंत कालसर्प योग के बनाए राहु की महादशा 06 जुलाई 2011 चल रही है उसमे भी 18 मार्च 2014 से
अगस्त 2016 तक के लिए बृहस्पति की अंतर्दशा आरम्भ हो चुकी है ! बृहस्पति वर्तमान समय में अपनी उच्चराशि कर्क में संचार कर रहे हैं जो भारतवर्ष
की जन्म राशि भी है इस वर्ष का वर्ष लग्न भी कर्क राशि का है जिनमें भाग्येश होकर गुरु लग्न में ही सूर्य और शुक्र के साथ बैठे हैं ! शुक्र जन्मकुंडली
में लग्न के स्वामी हैं और सूर्य चतुर्थ भाव के स्वामी हैं ! इन सभी अच्छे योंगों के परिणाम स्वरूप 15 अगस्त के बाद देश में मँहगाई में कमी होनी
आरम्भ हो जायेगी  ! 7 नवंबर से शनि बृश्चिक राशि में जा रहे हैं जो लग्न को पूर्ण दृष्टी से देखेगें ! शनि भारत की जन्मकुंडली में अकेले ही राजयोग
कारक हैं अतः आने वाला वर्ष भारत की एकता अखंडता एवं संप्रभुता के लिए गौरवपूर्ण तथा वरदान की तरह रहेगा ! दशाओं और शुभ गोचर के फलस्वरूप
वर्तमान शासनसत्ता देश का गौरव बढाने में कहीं पीछे नहीं रहेगी ! पं जयगोविन्द शास्त्री

शुक्रवार, 8 अगस्त 2014


भादों में करें गणपति को प्रसन्न
श्रीगणेश आराधना का पावन माह भादौं 11 अगस्त सोमवार से आरम्भ हो रहा है, जिस तरह श्रावणमाह में शिव की आराधना का फल अमोघ है उसी प्रकार
भादौंमाह भगवान गणेश की आराधना के लिए सर्वोपरि है ! शास्त्रों के अनुसार भादौं माह में गणेश की आराधना प्राणियों का संकल्पित मनोरथ पूर्ण करती है !
इसवर्ष भादौं माह में अपने घर में गणेश की मूर्ति बिठाना, उनकी पूजा आराधना करना विशेष फलदायी रहेगा क्योंकि वर्तमान संवत्सर के राजा और मंत्री दोनों
का अधिकार चन्द्रमा के पास है जो मन, माता, मित्र, मकान, मानसिक सुख-तनाव आदि के स्वामी हैं चन्द्र एवं गणेश सर्वदा साथ-साथ ही रहते हैं इसलिए
इसवर्ष विद्यार्थियों अथवा अन्य प्रतियोगिताओं में बैठने वाले युवकों के लिए 'गणेश' पूजा का फल अक्षुण रहेगा !
शास्त्र कहते हैं,'गणानां जीवजातानां य ईशः स गणेशः' अर्थात जो समस्त गणों तथा जीव-जाति के स्वामी हैं वही गणेश हैं ! इनका जन्म वर्तमान श्रीश्वेतवाराहकल्प
के सातवें वैवस्वत मनवंतर में भादौं माह की शुक्लपक्ष चतुर्थी तिथि सोमवार को स्वाति नक्षत्र की सिंह लग्न एवं अभिजित मुहूर्त में हुआ ! जन्म के समय
सभी शुभग्रह कुंडली में पंचग्रही योग बनाए हुए थे तथा पाप ग्रह अपने-अपने कारक भाव में बैठे थे ! पंचभूतों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश में,
पृथ्वी 'शिव', 'जल' 'गणेश', अग्नि 'शक्ति', वायु 'सूर्य' और आकाश 'श्रीविष्णु' हैं इन पांच तत्वों के वगैर जीव-जगत की कल्पना भी नहीं की जा सकती !
जल तत्व के स्वामी गणेश का स्वाति नक्षत्र में जन्म होने के फलस्वरूप इस नक्षत्र में बारिस की एक-एक बूँद अमृततुल्य मानी गई है जो वृक्षों, वनस्पतियों
औषधियों, और फसलों को रोग रहित बनाती है गाँवों में किसान इस नक्षत्र पर सूर्य की यात्रा के मध्य वर्षा की अत्यधिक कामना करते हैं ऐसा माना गया है
कि यह नक्षत्र धान की फसलों के लिए तो अमृत तुल्य है ही, इसके बाद की गेहूं की फसल भी रोग रहित होती है जिससे पैदावार में भी बृद्धि होती है ! सभी
प्राणियों में गणेश 'रक्त' रूप में विराजते हुए चारों देवों सहित पंचायतन में पूज्य हैं जैसे श्रृष्टि का कोई भी शुभ-अशुभ कार्य जल के बिना पूर्ण नहीं होता
वैसे ही गणेश पूजन के बिना कोई भी जप-तप, अनुष्ठान आदि कर्म पूर्ण नहीं होता !
वेदांग ज्योतिष में अश्विनी आदि नक्षत्रों के अनुसार देवगण, मनुष्यगण और राक्षसगण इन तीनों गणों के 'ईश' गणेश ही हैं ! जिनमे 'ग' ज्ञानार्थवाचक और 'ण'
निर्वाणवाचक है 'ईश' अधिपति हैं ! अर्थात ज्ञान-निर्वाणवाचक गण के 'ईश' गणेश ही 'परब्रह्म' हैं ! प्राणियों के शरीर में मेरुदंड के मध्य सुषुम्ना नाडी जो ब्रह्मरंध्र
में प्रवेश करके मष्तिष्क के नाडी समूह से मिलजाती है इसका आरम्भ 'मूलाधार चक्र' है जिसे 'गणेश' स्थान कहते हैं ! आध्यात्मिक भाव से ये चराचर जगत की
आत्मा है सबके स्वामी हैं सबके ह्रदय की बात समझ लेने वाले 'सर्वज्ञ' हैं !इनका सिर हाथी का और वाहन मूषक है ! मूषक प्राणियों के भीतर छुपे हुए काम, क्रोध
मद, लोभादि पापकर्म की वृत्तियों का प्रतीक है ! अतः गणेश पूजन से ये विनाशक पापकर्म वृत्तियाँ दबी रहती हैं, जिसके फलस्वरूप जीवात्मा की चिंतन-स्मरण
की शक्ति तीक्ष्ण बनी रहती है ! जनकल्याण हेतु गणेश पाश, अंकुश और वरमुद्रा धारण करते हैं ! पाश मोह का प्रतीक है जो तमोगुण प्रधान है, अंकुश वृत्तियों
का प्रतीक है जो रजोगुण प्रधान है, वरमुद्रा सत्वगुण का प्रतीक है जो आत्मसाक्षात्कार कराकर परम पद दिलाते हुए परमेश्वर का दर्शन भी कराता है इनका पूजन
करके प्राणी तमोगुण, रजोगुण से मुक्त होकर सतोगुणी हो जाता है ! पं जयगोविन्द शास्त्री

शुक्रवार, 1 अगस्त 2014


 नागपूजा का पावन पर्व, 'नाग पंचमी'
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी के रूप में मनाया जाता है इसदिन देश के अलग-अलग राज्यों में अनेकों प्रकार से नाग देवता
की पूजा-आराधना की जाती है ! पौराणिक मान्यता के अनुसार वर्तमान श्रीश्वेतवाराह कल्प में सृष्टि सृजन के आरम्भ में ही एकबार किसी कारणवश
ब्रह्मा जी को बड़ा क्रोध आया जिनके परिणामस्वरूप उनके आँशुओं की कुछ बूँदें पृथ्वी पर गिरीं और उनकी परिणति नागों के रूप में हुई, इन नागों में
प्रमुख रूप से अनन्त, कुलिक, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, और शंखपाल आदि प्रमुख हैं, अपना पुत्र मानते हुए ब्रह्मा जी ने इन्हें ग्रहों के
बराबर ही शक्तिशाली बनाया ! इनमें अनन्तनाग सूर्य के, वासुकि चंद्रमा के, तक्षक मंगल के, कर्कोटक बुध के, पद्म बृहस्पति के, महापद्म शुक्र के, कुलिक
और शंखपाल शनि ग्रह के रूप हैं ! ये सभी नाग भी सृष्टि संचालन में ग्रहों के समान ही भूमिका निभाते हैं ! इनसे गणेश और रूद्र यज्ञोपवीत के रूप में,
महादेव श्रृंगार के रूप में तथा विष्णु जी शैय्या रूप में सेवा लेते हैं ! ये शेषनाग रूप में स्वयं पृथ्वी को अपने फन पर धारण करते हैं !
वैदिक ज्योतिष में राहु को काल और केतु को सर्प माना गया है ! अतः नागों की पूजा करने से मनुष्य की जन्म कुंडली में राहू-केतु जन्य सभी दोष तो
शांत होते ही हैं इनकी पूजा से कालसर्प दोष और विषधारी जीवो के दंश का भय नहीं रहता ! नए घर का निर्माण करते समय इन बातों का ध्यान रखते
हुए कि परिवार में वंश वृद्धि हो सुख-शांति के साथ-साथ लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहे, इसके लिए नींव में चाँदी का बना नाग-नागिन का जोड़ा रखा जाता है !
ग्रामीण अंचलों में आज के ही दिन गावों में लोग अपने-अपने दरवाजे पर गाय के गोबर से सर्पों की आकृति बनाते हैं और नागों की पूजा करते हैं !
नाग लक्ष्मी के अनुचर के रूप में जाने जाते हैं ! इसीलिए कहाजाता है कि जहाँ नागदेवता का वास रहता है वहां लक्ष्मी जरुर रहतीं हैं ! इनकी पूजा अर्चना
से आर्थिक तंगी और वंश बृद्धि में आ रही रुकावट से छुटकारा मिलता है ! आज नाग पंचमी को आप इस मंत्र को-
! नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वी मनु ! ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः पढते हुए नाग-सर्प पूजन करें ! भावार्थ ! जो नाग, पृथ्वी, आकाश,
स्वर्ग,सूर्य की किरणों, सरोवरों, कूप तथा तालाब आदि में निवास करते हैं । वे सब हम पर प्रसन्न हों, हम उनको बार-बार नमस्कार करते हैं इसप्रकार
नागपंचमी के दिन सर्पों की पूजा करके प्राणी सर्प एवं विष के भय से मुक्त हो सकता है ! यदि नाग उपलब्ध न हों तो शिवमंदिर में प्राणप्रतिष्ठित
शिवलिंग पर स्थापित नाग की पूजा भी कर सकते हैं ! पं जयगोविन्द शास्त्री