मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

मित्रों सुप्रभात ! रुद्राभिषेक करने अथवा वैदिक विद्वानों द्वारा करवाने से क्या लाभ होता है, इस विषय पर मेरा आलेख आज ही हिन्दुस्तान हिंदी समाचार पत्र के धर्मक्षेत्रे
पेज पर पढ़ सकते हैं !
शास्त्र कहते हैं कि शिवः अभिषेक प्रियः ! अर्थात शिव को अभिषेक अति प्रिय है ! ब्रह्म का बिग्रह रूप ही शिव हैं, उन शिव के अंतस्थल में योगियों और आत्माओं का
जो सूक्ष्म तत्व है वही रूद्र हैं ! 'रुतम्-दुःखम्, द्रावयति-नाशयतीति रुद्रः' अर्थात जो सभी प्रकार के 'रुत' दुखों को विनष्ट ही करदेते हैं वै ही रूद्र हैं ! ईश्वर, शिव, रूद्र, शंकर,
महादेव आदि सभी ब्रह्म के ही पर्यायवाची शब्द हैं ! इन शिव की शक्ति शिवा हैं इनमें सतोगुण जगत्पालक विष्णु एवं एवं रजोगुण श्रृष्टिकर्ता ब्रह्मा हैं ! श्वास वेद हैं !
सूर्य चन्द्र नेत्र हैं ! वक्षस्थल तीनों लोक और चौदह भुवन हैं विशाल जटाओं में सभी नदियों पर्वतों और तीर्थों का वास है जहां श्रृष्टि के सभीऋषि, मुनि, योगी आदि तपस्या
रत रहते हैं ! वेद ब्रह्म के विग्रह रूप अपौरुषेय, अनादि, अजन्मा ईश्वर शिव के श्वाँस से विनिर्गत हुए हैं इसीलिए वेद मन्त्रों के द्वारा ही शिव का पूजन, अभिषेक, जप,
यज्ञ आदि करके प्राणी शिव की कृपा सहजता से प्राप्त करलेता है ! रुद्राभिषेक करने या वेदपाठी विद्वानों के द्वारा करवाने के पश्च्यात् प्राणी को फिर किसी भी पूजा की
आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि- ब्रह्मविष्णुमयो रुद्रः, अर्थात- ब्रह्मा विष्णु भी रूद्रमय ही हैं ! शिवपुराण के अनुसार वेदों का सारतत्व, 'रुद्राष्टाध्यायी' है जिसमें आठ अध्यायों
में कुल 176 मंत्र हैं, इन्हीं मंत्रो के द्वारा त्रिगुण स्वरुप रूद्र का पूजनाभिषेक किया जाता है ! रुद्राष्टाध्यायी के प्रथम अध्याय के 'शिवसंकल्पमस्तु' आदि मंत्रों के द्वारा
समस्त कार्य के निर्विघ्नता से संपन्न कराने के लिए विघ्नहरता श्रीगणेश' का स्तवन किया गया है, द्वितीय अध्याय के पुरुषसूक्त मन्त्रों के द्वारा में चराचर जगत के समस्त
प्राणियों का भरण-पोषण करने वाले भगवान विष्णु' के विराटरूप का स्तवन है ! तृतीय अध्याय के वेद मन्त्रों द्वारा पद एवं प्रभुता प्रदान करने वाले देवराज 'इंद्र' का तथा चतुर्थ

अध्याय में दिव्य ज्योति, आत्मज्ञान, यश और ऐश्वर्य प्रदाता भगवान 'सूर्य' का स्तवन है ! पंचम अध्याय तो दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों तापों के विनाशक स्वयं रूद्र ही है !
छठे अध्याय के मन्त्रों द्वारा मन-मष्तिष्क एवं मातृ सुखों के प्रदाता 'सोम' का स्तवन है, इसीप्रकार सातवें अध्याय में उत्तम स्वास्थ्य तथा पाँचों प्रकार की प्राणवायु (प्राण, व्यान,

उदान, समान, अपान )निर्वाध गति से चलती रहे इसके लिए 'मरुत' का स्तवन किया गया है ! जीवों में अग्नितत्व बराबर बना रहे इसके लिए आठवें अध्याय के मन्त्रों द्वारा

'अग्निदेव' का स्तवन किया गया है ! अन्य असंख्य देवी देवताओं के स्तवन भी इन्ही पाठमंत्रों में समाहित है ! तभी 'रुद्राभिषेक' करने से समस्त देवी-देवताओं का भी अभिषेक
करने का फल उसी क्षण मिल जाता है ! रुद्राभिषेक में श्रृष्टि की समस्त मनोकामनायें पूर्ण करने की शक्ति है अतः अपनी आवश्यकता अनुसार अलग-अलग पदार्थों से रुद्राभिषेक
करके प्राणी इच्छित मनोरथ पूर्ण कर सकता है ! इनमें दूध से पुत्र प्राप्ति, गन्ने के रस से यश मनोनुकूल पति/पत्नी की प्राप्ति, शहद से कर्ज मुक्ति, कुश एवं जल से रोग मुक्ति,

पंचामृत से अष्टलक्ष्मी तथा तीर्थों के जल से मोक्ष की प्राप्ति होती है सभी बारह ज्योतिर्लिंगों पर 'रूद्रभिषेक' करने वाले प्राणी जीवन-मरण के बंधन से मुक्त होकर शिवलोक चले
जाते हैं ! रुद्राभिषेक करने ग्रह-गोचर अनुकूल होने लगते हैं बिगड़े काम बनने लगते हैं ! नकारत्मक ऊर्जा हमेशा के लिए घर से बहुत दूर चली जाती है ! पं जयगोविंद शास्त्री