शुक्रवार, 30 जून 2023

एकादशी, हरिशयनी एकादशी

 सप्ताह का मंत्र 128 

सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् | स भूमिँसर्वं तस्पृत्वाऽत्यतिष्ठद्दशाङगुलम् ||


पुरुषऽएवेदँ सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम् | उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ||

एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पुरुषः | पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ||

त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः | ततो विष्वङ् व्यक्रामत्साशनानशनेऽअभि ||

ततो विराडजायत विराजोऽअधि पूरुषः | स जातोऽअत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः ||

तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः सम्भृतं पृषदाज्यम् | पशूँस्ताँश्चक्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये || 

स्रोत- ऋग्वेद संहिता/यजुर्वेद

संकेत-

प्रस्तुत मंत्र 'ऋग्वेद' संहिता के दशम मण्डल से लिया गया है, यही दिव्य मंत्र यजुर्वेद में भी आया है जिसे महर्षियों ने 'पुरुषसूक्त' नाम से अलंकृत किया है | मंत्र के द्वारा ऐसे विराट पुरुष के विषय में बतलाया गया है जो परब्रह्म का विग्रहरूप हैं तथा जिनके हजारों सिर, हजारों नेत्र और हजारों पैर हैं | यह चराचर सृष्टि उन्हीं परमपुरुष की परिकल्पना मात्र है |  

मंत्रार्थ- 

जो सहस्रों सिरवाले, सहस्रों नेत्रवाले और सहस्रों चरणवाले विराट पुरुष हैं, वे सारे ब्रह्माँड को आवृत करके भी दस अंगुल शेष रहते हैं | जो सृष्टि बन चुकी और जो बनने वाली है, यह सब विराट पुरुष ही हैं | इस अमर जीव-जगत के भी वे ही स्वामी हैं और जो अन्न द्वारा वृद्धि को प्राप्त करते हैं, उनके भी वे ही स्वामी हैं | विराट पुरुष की महत्ता अति विस्तृत है | इस श्रेष्ठ पुरुष के एक भाग में सभी प्राणी हैं और तीन भाग में अनंत अंतरिक्ष स्थित हैं | चार भागों वाले विराट पुरुष के एक भाग में यह सारा संसार, जड़ और चेतन विविध रूपों में समाहित है | उसी विराट पुरुष से यह ब्रह्मांड उत्पन्न हुआ तथा उसी विराट पुरुष से समस्त जीव भी उत्पन्न हुए | वही देहधारी रूप में सबसे श्रेष्ठ हुआ, जिसने सबसे पहले पृथ्वी को, फिर शरीर धारियों को उत्पन्न किया | उस सर्वश्रेष्ठ विराट प्रकृति यज्ञ से दधियुक्त घृत प्राप्त हुआ जिससे विराट पुरुष की पूजा होती है | वायुदेव से संबंधित पशु, हिरण, गौ, अश्वादि की उत्पत्ति भी उसी विराट पुरुष के द्वारा ही हुई |

तात्पर्य-

ऋग्वेद के दशम मण्डल का नब्बेवाँ सूक्त जिसे 'पुरुषसूक्त' कहा गया है, उनमें दिए गए मंत्रों के द्वारा उन चराचरपति जगत नियंता, अच्युत, अनंत, अनादि श्रीहरि विष्णु का स्तवन किया गया है जिनमें अखिल ब्रह्मांड समाया हुआ है | उनके विराटरूप  का वर्णन करते हुए वेद कहते हैं कि, ब्रह्मलोक जिनका शीश, पाताल जिनके चरण, शिव जिनका अहंकार, ब्रह्मा जिनकी बुद्धि, सूर्य-चन्द्र जिनके नेत्र, वेद जिनकी वाणी, घने मेघमण्डल जिनके काले केश, भयंकर काल भी जिनकी भृकुटी संचालन से गतिमान होता है | उत्पत्ति, पालन और प्रलय जिनकी चेष्ठा है तथा जो सृष्टि का आदि और अन्त हैं उन्हीं श्रीहरि विष्णु का 'पुरुषसूक्त' मंत्रों द्वारा स्तवन किया गया है | इन मंत्रों की महत्ता का बोध इसी से होता है कि इनके ऋषि स्वयं 'नारायण' ही हैं | सूक्त में कुल सोलह मंत्र हैं जिनमें प्रथम पंद्रह मंत्र 'अनुष्टुप' छंद में हैं और सोलहवां मंत्र [यज्ञेन यज्ञमयजन्त..] त्रिष्टुप छंद में है | यह सूक्त आध्यात्मिक, कर्मकांड तथा पूजा-पाठ की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है | किसी भी पूजा-आराधना के समय वैदिक विद्वान् 'पुरुषसूक्त' के मंत्रों का पाठ करके ही पूजन-अनुष्ठानादि संपन्न करते हैं |


गुरुवार, 15 जून 2023

प्राणायाम की साधना से नष्ट होते हैं पाप

 आज 'अमर उजाला' समाचार पत्र के 'कल्पवृक्ष' पेजपर


प्रकाशित मेरा आलेख- 'प्राणायाम की साधना से नष्ट होते हैं पाप' आपके लिए. पं. जयगोविंद शास्त्री