सोमवार, 26 अगस्त 2013


'जय महाकाल' कई शिवभक्त मित्रों ने हमारी संस्था ''शिवसंकल्पमस्तु''
द्वारा आयोजित महाकाल की नगरी उज्जैन में ०९, १०, ११
सितंबर को ५१ वैदिक विद्वानों द्वारा होने वाले 'महारुद्र यज्ञ'
में सहायता राशि भेजने के लिए बैंक डिटेल मांगा है उन
शिवभक्त मित्रों के लिए संस्था के बैंक खाते का विवरण-
''SHIVASANKALPMASTU'' STATE BANK OF INDIA
BRANCH INDERPRASTHA ESTATE VIKAS BHAVAN
NEW DELHI 110002 CURRENT ACCOUNT NO.
'3316 4919 148' IFSC CODE SBIN 0001187 'जय महाकाल'



शनिवार, 17 अगस्त 2013


  !! रक्षाबंधन निर्विवाद रूप से 20 अगस्त को !!
विष्णु भक्त महात्मा बली एवं विष्णु पत्नी महालक्ष्मी के आपसी स्नेह का पर्व ''राखी'' का पर्व २० अगस्त
को ही मनाया जायेगा ! २० अगस्त को रक्षाबंधन में बाधक सूर्य पुत्री भद्रा का वास स्वर्ग लोक में रहेगा !
''स्वर्गे भद्रा शुभंकरी'' के अनुसार जब भद्रा स्वर्ग लोक में हो तो शुभकारी होती है ! इसलिए २० अगस्त
को सुबह १० बजकर २३ मिनट के बाद किसी भी समय राखी बाँधी जा सकती है किन्तु दोपहर बाद
०३ बजे से ०४ बजकर ३० मिनट के मध्य राहूकाल रहेगा इसलिए इस अवधि के मध्य रक्षासूत्र बाँधने
से परहेज करें !

रविवार, 11 अगस्त 2013


 नाग पंचमी के पावन पर्व पर सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं !
नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वी मनु,
ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः !!

जो नाग, पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग, सूर्य की किरणों,
सरोवरों, कूप तथा तालाब आदि में निवास करते
हैं। वे सब हम पर प्रसन्न हों, हम उनको बार-बार
नमस्कार करते हैं !

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

!! उत्तम संतान की प्राप्ति हेतु करें नाग पूजा !! 'नाग पंचमी ११ अगस्त '
नाग हमारे शरीर में मूलाधार चक्र के आकार में स्थित हैं एवं उनका फन सहस्रासार चक्र है ! पुराणों में नागोत्पत्ति
के कई वर्णन मिलते हैं ! लिंग पुराण के अनुसार श्रृष्टि सृजन हेतु प्रयासरत ब्रह्मा जी उग्र तपस्या करते हुए हताश
होने लगे तो क्रोधवश उनके कुछ अश्रु पृथ्वी पर गिरे वहीँ पर अश्रुबिंदु सर्प के रूप में उत्पन्न हुए ! बाद में यह ध्यान
में रखकर कि इन सर्पों के साथ कोई अन्याय न हो तिथियों का बंटवारा करते समय भगवान सूर्य ने इन्हें पंचमी तिथि
का अधिकारी बनाया तभी से पंचमी तिथि नागों की पूजा के लिए विदित है इसके बाद ब्रह्मा जी ने अष्टनागों अनन्त,
वासुकि, तक्षक, कर्कोटक,पद्म, महापद्म, कुलिक, और शंखपाल की सृष्टि की, और इन नागों को भी ग्रहों के बराबर
शक्तिशाली बनाया ! इनमें अनन्त नाग सूर्य के, वासुकि चंद्रमा के, तक्षक भौम के, कर्कोटक बुध के, पद्म बृहस्पति के,
महापद्म शुक्र के, कुलिक और शंखपाल शनि ग्रह के रूप हैं ! ये सभी नाग भी सृष्टि संचालन में ग्रहों के समान ही
भूमिका निभाते हैं ! इनके सम्मान हेतु गणेश और इन्हें रूद्र यज्ञोपवीत के रूप में, महादेव श्रृंगार के रूप में तथा विष्णु
जी शैय्या रूप में सेवा में लेते हैं ! पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शेषनाग स्वयं पृथ्वी को अपने फन पर धारण करते हैं !
गृह निर्माण, पितृ दोष और कुल की उन्नति के लिए नाग पूजा का और भी अधिक महत्व है ! इनकी पूजा
आराधना से सर्पदंश का भय नहीं रहता ! नाग पंचमी के दिन नाग पूजन और दुग्ध पान करवाने का विशेष महत्व है !
पूजा में ''ॐ सर्पेभ्यो नमः" अथवा ॐ कुरु कुल्ले फट स्वाहा ! कहते हुए अपनी शक्ति-सामर्थ्य के अनुसार गंध, अक्षत,
पुष्प, घी, खीर, दूध, पंचामृत, धुप दीप नैवेद्य आदि से पूजन करना चाहिए ! पूजन के पश्च्यात इस मंत्र से प्रणाम करें 
!! नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वी मनु, ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः !!
जो नाग, पृथ्वी, आकाश, स्वर्ण, सूर्य की किरणों, सरोवरों, कूप तथा तालाब आदि में निवास करते हैं।
वे सब हम पर प्रसन्न हों, हम उनको बार-बार नमस्कार करते हैं इसप्रकार नागपंचमी के दिन सर्पों की पूजा करके
प्राणी सर्प एवं विष के भय से मुक्त हो सकता है पं. जयगोविंद शास्त्री

रविवार, 4 अगस्त 2013


 !! परमब्रह्म शिव की अनेकता के रूपों का कीर्तन-आराधन !!
जिन ओंकारस्वरुप परब्रह्म का हम चिंतन करते हैं, श्रुति ने भी जिन्हें सत्य, ज्ञानस्वरुप, अनंत, परमानन्दमय, परम
ज्योतिःस्वरूप, निराकार, निर्विकार, निर्गुण, सर्वव्यापी, योगिगम्य, आधाररहित, मायातीत, अनादि, अनंत, अजन्मा,
जराजन्म से परे कहा है जो नाम तथा रूप-रंग से भी शून्य हैं न स्थूल हैं न कृष्, न ह्रस्व हैं न दीर्घ, न लघु हैं न गुरु,
जिनमें न वृद्धि होती है न ह्रास, जो आत्मारूपी प्रकाश हैं, जो पिंड और ब्रह्मांड दोनों में एकाकार रूप में स्थित
हैं वेद भी जिनके विषय में अधिक जानते श्रृष्टि का सृजन, पालन और प्रलय जिनकी चेष्ठा हैं ब्रह्मलोक जिनके शीश,
पाताल जिनके चरण, ब्रह्मा जिनकी बुद्धि, वेद जिनकी वाणी, प्रलयंकारी मेघ जिनके काले केश, रूद्र जिनके अहंकार,
जिनके बाएं अंग में विष्णु, दाहिये अंग में ब्रह्मा और वक्षस्थल में रूद्र का वास है जिनके अंतर्मन में शक्ति निवास करती हैं
वे ज्योतिस्वरूप अविनाशी परमब्रह्म निराकार ईश्वर भगवान शिव ही हैं ! श्रृष्टिलय के पश्च्यात ब्रह्मांड में अनंतकाल
तक घोर अन्धकार ही रहता है ! ऐसे में परमब्रह्म जब नई श्रृष्टि सृजन हेतु कुछ मायाकौतुक करना चाहते हैं
तो अपने ही तत्सदरूप ब्रह्म में से एक से अनेक करने का संकल्प करते हैं जिनके विग्रह रूप को सदाशिव कहागया है
इन्हीं सदाशिव में संसारी तत्व के रूप में विष्णु जी विद्यमान रहते हैं जो शिवाज्ञा से जीवजगत का भरण पोषण
करते हैं ! इन्हीं शिव में ही शुक्रतत्व के रूप में ब्रह्मा जी भी विद्यमान रहते हैं जो शिवाज्ञा से मैथुनी क्रिया के द्वारा
श्रृष्टि का सृजन करते हैं तथा इन्हीं अनंतशिव का जो अंश कालरूप है जिनके पास जीवों को कर्मानुसार जन्म-मरण
के द्वारा जीवन-मृत्यु देने का अधिकार है वे भी काल के भी काल अर्थात महाकाल भगवानरूद्र सदाशिव ही हैं
भक्तवत्सल महादेव अपने भक्तों की रक्षा के लिए, उनके कष्टों को दूर करने हेतु अपने एक और मृत्युंजय रूप में
भी प्रकट होकर जीवों का कल्याण करते हैं इनका महामृत्युंजय स्वरूप जनमानस को ही नहीं, देवाताओं को भी
अन्यन्त प्रिय है देवता भी इनकी कृपा का आश्रय पाने के लिए निरंतर इन्हीं ईश्वर सदाशिव का ही ध्यान करते रहते हैं
मृत्युलोक के प्राणी इनके रूद्र रूप की सर्वाधिक पूजा करते हैं जो 'रुद्राभिषेक' के रूप में जाना जाता है !
रूद्र अभिषेक अकाल मृत्यु नाशक, त्रिबिधतापों दैहिक, दैविक एवं भौतिक दुखों से मुक्ति दिलाकर शिवत्व प्राप्त कराता है
इनका जल से अभिषेक करने से सूखा-अकाल का संकट दूर होता है, कुश और जल से अभिषेक करने मात्र से मानव शरीर
 की समस्त व्याधियाँ दूर हो जाती हैं, शहद अथवा घी से रूद्र का भक्तिभाव से अभिषेक किया जाय तो भगवान रुद्रदेव
 प्राणियों को कर्जमुक्ति दिलाते हुए सफल उद्यमी बनाते हैं दूध से योग्य संतान प्राप्ति, दूध एवं मिश्री
से ज्ञान एवं गंगाजल से मुक्ति प्रदान करते हैं ! सभी रसों में श्रेष्ठ गन्ने के रस से अभिषेक करने मात्र से ही प्राणियों को
 सुंदर मनोकूल पति/पत्नी तथा ख्याति प्राप्त कराते हैं व्यक्ति देश-विदेश में खूब मान-सम्मान प्राप्त करता है !
त्रिलोकवासी इनके रूद्र एवं मृत्युंजय  दोनों रूपों की सर्वाधिक पूजा करते हैं जहां इनका रूद्ररूप दैहिक, दैविक और भौतिक
तीनों तापों से मुक्ति दिलाकर जीवन मरण के बंधन से मुक्त करके मोक्ष प्रदान करता है वहीँ मृत्युंजय स्वरूप अकाल मृत्यु
का हरण करके आयु-आरोग्य की वृद्धि करता है इन्हीं की कृपा से प्राणी मरणासन्न अवस्था में भी म्रत्यु पर विजय
प्राप्त करलेता है जन्मकुंडली में अशुभ गोचर, मारकेश की महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यांतरदशा, सूक्ष्म एवं प्राणदशा,
शनिदेव की शाढेसाती, ढैया अथवा छठें, आंठवें और बारहवें भाव के स्वामी तथा अकारक ग्रहों का दोष भी नष्ट हो जाते हैं !
इनकी कृपा प्राप्ति के पश्च्यात कुछ भी पाना शेष नही रहजाता ! इनकी आठों मूर्तियों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश
 सूर्य, चन्द्रमा तथा यजमान की पूजाकरके प्राणी संसार के सभी ऐश्वर्य भोगता है ! यदि भक्ति भाव से इनके परिवार के
सभी दस सदस्यों ईशान, नंदी, चंड, महाकाल, भृंगी, बृषभ, स्कन्द, कपर्दीश्वर, सोम, तथा शुक्र की रुद्र्पूजा के समय आराधना
की जाय तो परमब्रह्म शिव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है प्राणी में शिवोऽहं का भाव ही स्वतः आ जाता है और व्यक्ति में
जीवों के कल्याण की भावना जागृत होती है !इन परमब्रह्म सदाशिव ने जब अपने विग्रहरूप से श्रृष्टि की रचना आरम्भ की तो
सर्व प्रथम अपने ही शरीर से स्त्रीतत्व शक्तिस्वरूपा प्रकृति को प्रकट किया जो पराम्बा अंबिका के रूप जानी जाती हैं
जिन्हें प्रकृति, सर्वेश्वरी, गुणवती, माया, श्रद्धा, योनिरुपा, और नित्या कहागया है सदाशिव द्वारा प्रकट की गयी इन
पराशक्ति की आठ भुजाएँ है वे विचित्र मुखवाली नित्यस्वरूपा परमसत्य शिव की ही शक्ति हैं ! इनके मुख की
कान्ति हज़ारों चन्द्रमा को भी लज्जित करदेने वाली थी ! ये नाना प्रकार के आभुषणों एवं
सभी अस्त्र-शस्त्रों को धारण करती हैं इन्हें ही शिवशक्ति कहागया है तत्पश्च्यात कुछ काल के पश्च्यात शिवशक्ति ने
एक त्रैलोक्य सुंदर पुरुष उत्पन्न किया जो शांत सर्वगुण संपन्न और गंभीरता में सागर के समान थे उनके शरीर का वर्ण
इन्द्रनील मणि के समान था नेत्र कमल के समान शोभा पा रहे थे ये विशाल भुजावों वाले युद्ध में अजेय थे !
इन्होने सदाशिव को प्रणाम किया और अपनानाम पूछा तो ईश्वर ने कहाकि वत्स सर्वत्र व्याप्त होने के कारण तुम इस
संसार में 'विष्णु' नाम से जाने जाओगे भक्तों के कल्याण में लगे रहने एवं भक्तों के वश में रहने के फलस्वरूप तुम्हारें
और भी असंख्य नाम होंगे जिनके स्मरण मात्र से भक्तों की सभी कठिनाइयां दूर हो जाएंगी !
इस प्रकार विष्णु को अनेकों वरदान एवं श्रृष्टि के सभी अधिकार देकर शिव शक्ति के साथ अविमुक्त क्षेत्र काशी चले गए !
भगवान शिव के संसारी रूप विष्णु ने सर्व प्रथम प्रकृति को उत्पन्न किया फिर महतत्व और उसके पश्च्यात सतोगुण,
तमोगुण और रजोगुण को उत्पन्न किया ! इन्हीं गुणों के भेद से अहंकार, अहंकार से पांच तन्मात्रायें और इनसे पंचभूतों
सहित चौबीस तत्वों को उत्पन्न किया ! महादेव के अंतस्थल में ही वैरागी स्वरूप शमशान का भी वास रहता है !
इनकी पूजा राक्षस, दैत्य-दानव, देव, नाग, गन्धर्व, यक्ष, किन्नर, ऋषि, मुनि, योगी, यति, हठयोगी आदि सामान रूप
 करते हुए यही प्रार्थना करते हैं कि, शिवे भक्तिः शिवे भक्तिः शिवेभक्तिः भवे भवे !
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम !! अर्थात- प्रत्येक जन्म में मेरी शिव में भक्ति हो, शिव में भक्ति हो,
शक्ति में भक्ति हो ! शिव के शिवा दूसरा कोई मुझे शरणं देने वाला नहीं ! महादेव आप ही मेरेलिए शरण दाता हैं !
इस तरह अपने-अपने श्रद्धा-भाव के अनुसार आराधना करके प्राणी शिव का सानिध्य प्राप्त करते हैं ! पं जय गोविन्द शास्त्री