शुक्रवार, 25 मई 2012

नीतिवाक्य - वह व्यक्ति मूर्ख होता है जो दूसरों को धोखा
देता है, और वह व्यक्ति उससे भी बड़ा यानी महामूर्ख होता है 
जो दूसरीबार धोखा खाता है !!

बुधवार, 23 मई 2012


कृष्ण, कृष्णेति कृष्णेति कलौ वक्ष्यति प्रत्यहं  ! नित्यं  यज्ञायुतं  पुण्यं  तीर्थ  कोटि  समुद्भवं !!
कृष्ण, कृष्णेति कृष्णेति नित्यं जपति यो जनः ! तस्य प्रीतिः कलौ नित्यं कृष्णस्योपरि वर्ध्यते !!

अर्थात - जो जीवात्मा कलियुग में नित्यप्रति "कृष्ण,कृष्ण, कृष्ण करेगा उसे प्रतिदिन
हज़ारों यज्ञों और करोडो तीर्थों का पुण्यफल प्राप्त होगा ! जो मनुष्य नित्य कृष्ण,
कृष्ण,कृष्ण, का जप करता है कलियुग में श्रीकृष्ण के ऊपर उसका निरंतर प्रेम
बढ़ता है !!

गुरुवार, 17 मई 2012


ईश्वर ने अपना महत्वपूर्ण ज्ञान मनुष्य को दे दिया किन्तु मनुष्य उससे संतुष्ट नहीं है !
इसका एक मात्र इलाज धर्म है जो अहंकार की परत चढ़े होने से आगे नहीं आपाता !
प्राणी अंहकार साहस व शौर्य दिखा सकता है तपस्या कर सकता है, भूखा रह सकता है,
राजनेता बन सकता है, अमीर भी बन सकता है, किन्तु वह धर्म का भक्त नहीं बन सकता !
इसलिए सबकुछ होते हुए भी वह अशांत रहता है, प्यासा रहता है इसी के चलते
वह अपना नैतिक पतन रोक नहीं पाता !!

बुधवार, 16 मई 2012


मैंने मांगा फूल, लेकिन आप ने पत्थर दिया, एक सीधे प्रश्न का कितना कठिन उत्तर दिया !
घर के मालिक ने न जाने किस व्यस्था के तहत, लेटने को बैठकें दी बैठने को घर दिया !
अब भी हम आदिम गुफाओं से लिकल पाए नहीं, हम उसे ही खा गए जिसने हमें अवसर दिया !
होंठ आँखे कान तो पहले ही उनके गुलाम, एक अपना दिल बचा था वो भी हाज़िर कर दिया !
आप क्या देंगें जो हम दामन पसारे आप से, आप ने तो ज़हर भी औकात से गिरकर दिया !

मंगलवार, 15 मई 2012


स वृक्षकालाकृतिभिः परोन्यो यस्मात्प्रपंचः  परिवर्ततेयम  !
धर्मावहं पापनुदं भगेशं ज्ञात्वात्मस्थममृतं विश्वधाम   !!

अर्थात- जिससे यह जगत प्रपंच प्रवृत होता है जो इस संसार वृक्ष से अतीत है, काल से परे है उस
धर्म की प्राप्ति करने वाले पाप का उच्छेद करने वाले समस्त सद्गुणों के अधीश आत्मा में अवस्थित
अमृतस्वरुप तथा समस्त विश्व के आधारभूत परमात्मा की शरण में चलें !!

सोमवार, 14 मई 2012

या निशा सर्व भूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ! 
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने !!

अर्थात- ज्ञानी तत्वदर्शन में जागता है जिसमे सारे प्राणी सोते हैं, 
और सारे प्राणी जिस माया में जागते हैं तत्व ज्ञानी के लिए वही
रात है वह उसमे सोता है ! माया अनादि है, परन्तु शांत है
क्योंकि तत्वज्ञान होने पर इसका अंत हो जाता है !
किन्तु जब माया अनादि है तो इससे पार कैसे पाया जासकता है ?
इसपर कृष्ण कहते है की यह त्रिगुणमयी मेरी देवी माया है
इसका पार पाना कठिन है किन्तु जो मुझमे अनुराग रखता है
वह इस माया से पार पा सकता है !
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय"