शनिवार, 1 अप्रैल 2023

विवाह मंगल स्तोत्र

 विवाह मंगल स्तोत्र 

अद्य विवाहस्य वर्धापनदिनस्य 

श्रीमत् पंकज विष्टरो हरिहरौ वायुर्महेन्द्रोनलश्चन्द्रो भास्कर वित्तपालवरुणाः प्रेताधिपाद्या ग्रहाः ||

प्रद्युम्नो नलकुबरौ सुरगजस् चिंतामणिः कौस्तुभः स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः कुर्वन्तु वो मंगलम् ||

गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा भूमिः प्रपूर्णाशुभासावित्री च सरस्वति च सुरभिः सत्यवृताऽरुंधती ||

स्वाहा जांबवति च रुक्मभगिनी दुःस्वप्न विध्वंसिनी वेला चांबुनिधे समीनमकरा कुर्वन्तु वो मंगलम् ||

गंगा सिंधु सरस्वति च यमुना गोदावरी नर्मदा कावेरी सरयुर्महेन्द्रतनया चर्मण्वती वेदिका ||

क्षिप्रा वेगवती महासुर नदी ख्याता च या गंडक पूण्याः पूण्यजलैः समुद्र सहिता कुर्वन्तु वो मंगलम् ||

लक्ष्मीः कौस्तुभ पारिजातक सुरा धन्वंतरिश्चंद्रमा धेनुः कामदूधा सुरेश्वरगजो रंभादि देवांगना ||

अश्वः सप्तमुखो विषं हरिधेनुः शंखोऽमृतं चाम्बुधे रत्नानीति चतुर्दश प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलम् ||

ब्रह्मा देवपतिः शिवः पशुपतिः सूर्यो ग्रहाणां पतिः शक्रो देवपति र्हविर्हुतपतिः स्कंदश्च सेनापतिः ||

विष्णु र्यज्ञपति र्यमः पितृपतिः शक्ति पतिनां पतिः सर्वे ते पतयः सुमेरु सहिता कुर्वन्तु वो मंगलम् ||

दुर्वासाश्च्यवनोऽथ गौतम मुनिर्व्यासो वसिष्ठोऽसितः कौशल्यः कपिलः कुमार कवषौ कुंभोद्भव काश्यपः ||

गर्गोदेवल आर्ष्टिषेण ऋतवाग् बोध्योभृगुश्चासुरिरमार्कंडेय शुकौ पतंजलि मुनिः कुर्वंतु वो मंगलम् ||

इक्ष्वाकुर्न भगोंऽबरीष पुरुजित् कारुषकः केतुमान्मांधाता पुरुकुत्सरोहितसुतौ चंपोवृको बाहुकः ||

खट्वांगो रघुवंश राजतिलको रामो नलो नाहुषःशांतिः शंतनु भीष्म धर्मतनुजा कुर्वन्तु वो मंगलम् ||

श्रीमान् काश्यप गोत्रजो रविरलम् चंद्रः कठोरच्छवि रात्रेयो पृथिवी शिखिनिभोजो द्वाजेकुले जन्मभाक् ||

सौम्यः पीत उदंगमुखो गुरुरयं शुक्रस्तुलाधीश्वरो मंदो राहुरहो च केतुरपियः कुर्वन्तु वो मंगलम् ||

ब्रह्मबिन्दूपनिषद

 ब्रह्मबिन्दूपनिषद 

मनो हि द्विविधं प्रोक्तं शुद्धं चाशुद्धमेव च | अशुद्धं कामसङ्कल्पं शुद्धं कामविवर्जितम् ||1||

मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः | बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ||2||


यतो निर्विषयस्यास्य मनसो मुक्तिरिष्यते | अतो निर्विषयं नित्यं मनः कार्यं मुमुक्षुणा ||3||

निरस्तनिषयासङ्गं सन्निरुद्धं मनो हृदि | यदाऽऽयात्यात्मनो भावं तदा तत्परमं पदम् ||4||


तावदेव निरोद्धव्यं यावद्धृति गतं क्षयम् | एतज्ज्ञानं च ध्यानं च शेषो न्यायश्च विस्तरः ||5||

नैव चिन्त्यं न चाचिन्त्यं न चिन्त्यं चिन्त्यमेव च | पक्षपातविनिर्मुक्तं ब्रह्म संपद्यते तदा ||6||


स्वरेण सन्धयेद्योगमस्वरं भावयेत्परम् | अस्वरेणानुभावेन नाभावो भाव इष्यते ||7||

तदेव निष्कलं ब्रह्म निर्विकल्पं निरञ्जनम् | तदब्रह्माहमिति ज्ञात्वा ब्रह्म सम्पद्यते ध्रुवम् ||8||


निर्विकल्पमनन्तं च हेतुद्याष्टान्तवर्जितम् । अप्रमेयमनादिं च यज्ञात्वा मुच्यते बुधः ||9||

न निरोधो न चोत्पत्तिर्न बद्धो न च साधकः । न मुमुक्षुर्न वै मुक्त इत्येषा परमार्थता ||10||


एक एवाऽऽत्मा मन्तव्यो जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तिषु । स्थानत्रयव्यतीतस्य पुनर्जन्म न विद्यते ||11||

एक एव हि भूतात्मा भूते भूते व्यवस्थितः । एकधा बहुधा चैव दृष्यते जलचन्द्रवत् ||12||


घटसंवृतमाकाशं नीयमानो घटे यथा । घटो नीयेत नाऽकाशः तद्धाज्जीवो नभोपमः ||13||

घटवद्विविधाकारं भिद्यमानं पुनः पुनः ।तद्भेदे न च जानाति स जानाति च नित्यशः ||14||


शब्दमायावृतो नैव तमसा याति पुष्करे । भिन्नो तमसि चैकत्वमेक एवानुपश्यति ||15||

शब्दाक्षरं परं ब्रह्म तस्मिन्क्षीणे यदक्षरम् । तद्विद्वानक्षरं ध्यायेच्द्यदीच्छेछान्तिमात्मनः ||16||

द्वे विद्ये वेदितव्ये तु शब्दब्रह्म परं च यत् । शब्दब्रह्माणि निष्णातः परं ब्रह्माधिगच्छति ||17||

ग्रन्थमभ्यस्य मेधावी ज्ञानवीज्ञानतत्परः । पलालमिव धान्यार्यी त्यजेद्ग्रन्थमशेषतः ||18||


गवामनेकवर्णानां क्षीरस्याप्येकवर्णता । क्षीरवत्पष्यते ज्ञानं लिङ्गिनस्तु गवां यथा ||19||

घृतमिव पयसि निगूढं भूते भूते च वसति विज्ञानम् । सततं मनसि मन्थयितव्यं मनु मन्थानभूतेन  ||20||


ज्ञाननेत्रं समाधाय चोद्धरेद्वह्निवत्परम् । निष्कलं निश्चलं शान्तं तद्ब्रह्माहमिति स्मृतम् ||21||

सर्वभूताधिवासं यद्भूतेषु च वसत्यपि ।सर्वानुग्राहकत्वेन तदस्म्यहं वासुदेवः तदस्म्यहं वासुदेव इति ||22||


शनि के प्रकोप और यमदंड से बचाती हैं 'माँ' यमुना'

 यमुना छठ 27मार्च को पं. जयगोविंद शास्त्री 

यमदंड एवं शनि के प्रकोप से बचाती हैं 'माँ' यमुना' 

परब्रह्म श्रीकृष्ण की पटरानी यमुना का पृथ्वी पर आगमन का चैत्र शुक्लपक्ष षष्टी को हुआ जिसे 'यमुना छठपर्व' के रूप में भी मनाया जाता है | पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी यमुना सूर्यदेव की पुत्री हैं | यमदेव और शनि इनके सबसे प्रिय भाईयों में


से एक हैं और भद्रा इनकी बहन हैं | 

यमुना की महिमा अपरम्पार-

गोलोकमें जब श्रीहरि ने यमुना जी को पृथ्वी पर जाने की आज्ञा दी और नदियों में श्रेष्ठ यमुना जब परमेश्वर श्रीकृष्ण परिक्रमा करके पृथ्वी पर जाने को उद्यत हुईं, उसी समय विरजा तथा ब्रह्मद्रव से उत्पन्न साक्षात गंगा ये दोनों महाशक्तियाँ नदीस्वरूप में आकर यमुना में लीन हो गईं | इसीलिए परिपूर्णतमा कृष्णा [यमुना] को परिपूर्णतम श्रीकृष्ण की पटरानी के रूप में लोग जानते हैं | तदन्तर सरिताओं में श्रेष्ठ कालिंदी अपने महान वेग से विरजा के वेग का भेदन करके निकुंज द्वार से निकलीं और असंख्य ब्रहमाण्ड समूहों का स्पर्श करती हुई ब्रह्मद्रव में गयीं | फिर उसकी दीर्घ जलराशि का अपने महान वेग से भेदन करती हुई वे महानदी श्रीभगवान् वामन के बाएँ चरण के अँगूठेके नख से विदीर्ण हुए ब्रह्मांड के शिरोंभाग में विद्यमान ब्रह्मद्रवयुक्त विवरमें श्रीगंगाके साथ ही प्रविष्ट हुई और वहां से ये ध्रुवमंडल में स्थित भगवान अजित विष्णुके धाम बैकुंठलोमें होती हुई ब्रह्मलोक को लाँघकर जब ब्रह्मकमंडलसे नीचे गिरीं, तब देवताओं के सैकड़ों लोकोंमें एक-से-दूसरेके क्रम में बिचरती हुई आगे बढीं |

यमुना का 'कालिंदी' नाम कैसे?

जब यमुना जी सुमेरगिरी के शिखरपर बड़े वेग से गिरीं और अनेक शैल-श्रृंगों को लाघकर बड़ी-बड़ी चट्टानों के तटों का भेदन करतीं हुई मेरुपर्वत से दक्षिण दिशा की ओर जाने को उद्यत हुईं, तब यमुना जी गंगा से अलग हो गयीं | महानदी गंगा तो हिमवान पर्वत पर चली गईं किंतु कृष्णा (श्याम सलिला) यमुना 'कलिंद शिखर' पर जा पहुंची | वहाँ जाकर उस कलिंद पर्वत से प्रकट होने के कारण उनका नाम 'कालिंदी' हो गया | कलिंदगिरीके शिखरों से टूटकर जो बड़ी-बड़ी चट्टानें पड़ी थीं, उनके सुदृढ़ तटों को तोड़ती-फोड़ती हुई वेगवती कृष्णा [कालिंदी] अनेक प्रदेशों को पवित्र करती हुई खांडववन (इंद्रप्रस्थ) जा पहूँची |

श्रीकृष्ण को पतिरूपमें पाने की चाह-

यमुना जी साक्षात् परिपूर्णतम भगवान श्रीकृष्ण को अपना पति बनाना चाहती थीं इसीलिए वे परम दिव्यदेह धारण करके खांडव वन में तपस्या करने लगीं | इनके पिता भगवान सूर्यने जलके भीतर ही एक दिव्य घर का निर्माण कर दिया जिसमें आज भी वह रहा करती हैं | खांडववनसे वेग पूर्वक चलकर कालिंदी ब्रजमंडल में श्री वृंदावन और मथुरा के निकट आ पहूँची | यहाँ से श्रीगोकुल आने पर परम सुंदरी यमुना ने विशाखा नाम की सखी के साथ अपने नेतृत्व में गोप किशोरियों का एक यूथ बनाया और श्रीकृष्णचंद्र के रास में सम्मिलित होने के लिए उन्होंने वहीं अपना निवास स्थान निश्चित किया | तदनंतर जब वे ब्रजसे आगे जाने लगीं तो ब्रजभूमि के वियोग से विह्वल हो, प्रेमानंद आँसू बहाती हुईं पश्चिम दिशा की ओर प्रवावित हुई | ब्रजमंडल की भूमि को अपने जलके वेगसे तीन बार प्रणाम करके यमुना अनेक प्रदेशों को पवित्र करती हुई उत्तम तीर्थ प्रयाग जा पहुंची | वहां गंगा जी के साथ उनका संगम हुआ और वे उन्हें साथ लेकर छीरसागरकी चली गयीं | उस समय देवताओं ने उनके ऊपर फूलों की वर्षा की और दिग्विजय सूचक जयघोष किया |

गंगा द्वारा यमुना की प्रशंसा-

एकसाथ छीरसागर पहुँचकर गंगा जी ने यमुना से कहा हे कृष्णे ! सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को पावन बनाने वाली तो तुम हो, अतः तुम्हीं धन्य हो | श्रीकृष्ण के वामांग से तुम्हारा प्रादुर्भाव हुआ है तुम परमानंदस्वरूपिणी हो | साक्षात् परिपूर्णतमा हो | समस्त लोकों के द्वारा वन्दनीया हो | परिपूर्णतम परमात्मा श्रीकृष्ण की पटरानी हो | अतः हे कृष्णे ! तुम सब प्रकार से उत्कृष्ट हो | तुम कृष्णा को मैं प्रणाम करती हूँ | तुम समस्त तीर्थों और देवताओं के लिए भी दुर्लभ हो | यमदंड और शनिपीणा से बचाव-यमुना छठ के दिन अथवा किसी भी शनिवार के दिन प्राणी यदि स्नान आदि करके यमुनातट पर इन मंत्रों | ऊँ नमो भगवत्यै कलिन्दनन्दिन्यै सूर्यकन्यकायै यमभगिन्यै श्रीकृष्णप्रियायै यूथीभूतायै स्वाहा | ऊँ हीं श्रीं, क्लीं कालिन्द्यै देव्यै नम: | मंत्रके द्वारा यमुना का पूजन और आरती आदि करे तो उसके जीवन में अकाल मृत्युका भय, यमदंड और त्रास देनेवाली शनि की शाढ़ेसाती, महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यान्तर दशा तथा मारकग्रह दशा का दोष शांत हो जाता है |