शनिवार, 1 अप्रैल 2023

शनि के प्रकोप और यमदंड से बचाती हैं 'माँ' यमुना'

 यमुना छठ 27मार्च को पं. जयगोविंद शास्त्री 

यमदंड एवं शनि के प्रकोप से बचाती हैं 'माँ' यमुना' 

परब्रह्म श्रीकृष्ण की पटरानी यमुना का पृथ्वी पर आगमन का चैत्र शुक्लपक्ष षष्टी को हुआ जिसे 'यमुना छठपर्व' के रूप में भी मनाया जाता है | पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी यमुना सूर्यदेव की पुत्री हैं | यमदेव और शनि इनके सबसे प्रिय भाईयों में


से एक हैं और भद्रा इनकी बहन हैं | 

यमुना की महिमा अपरम्पार-

गोलोकमें जब श्रीहरि ने यमुना जी को पृथ्वी पर जाने की आज्ञा दी और नदियों में श्रेष्ठ यमुना जब परमेश्वर श्रीकृष्ण परिक्रमा करके पृथ्वी पर जाने को उद्यत हुईं, उसी समय विरजा तथा ब्रह्मद्रव से उत्पन्न साक्षात गंगा ये दोनों महाशक्तियाँ नदीस्वरूप में आकर यमुना में लीन हो गईं | इसीलिए परिपूर्णतमा कृष्णा [यमुना] को परिपूर्णतम श्रीकृष्ण की पटरानी के रूप में लोग जानते हैं | तदन्तर सरिताओं में श्रेष्ठ कालिंदी अपने महान वेग से विरजा के वेग का भेदन करके निकुंज द्वार से निकलीं और असंख्य ब्रहमाण्ड समूहों का स्पर्श करती हुई ब्रह्मद्रव में गयीं | फिर उसकी दीर्घ जलराशि का अपने महान वेग से भेदन करती हुई वे महानदी श्रीभगवान् वामन के बाएँ चरण के अँगूठेके नख से विदीर्ण हुए ब्रह्मांड के शिरोंभाग में विद्यमान ब्रह्मद्रवयुक्त विवरमें श्रीगंगाके साथ ही प्रविष्ट हुई और वहां से ये ध्रुवमंडल में स्थित भगवान अजित विष्णुके धाम बैकुंठलोमें होती हुई ब्रह्मलोक को लाँघकर जब ब्रह्मकमंडलसे नीचे गिरीं, तब देवताओं के सैकड़ों लोकोंमें एक-से-दूसरेके क्रम में बिचरती हुई आगे बढीं |

यमुना का 'कालिंदी' नाम कैसे?

जब यमुना जी सुमेरगिरी के शिखरपर बड़े वेग से गिरीं और अनेक शैल-श्रृंगों को लाघकर बड़ी-बड़ी चट्टानों के तटों का भेदन करतीं हुई मेरुपर्वत से दक्षिण दिशा की ओर जाने को उद्यत हुईं, तब यमुना जी गंगा से अलग हो गयीं | महानदी गंगा तो हिमवान पर्वत पर चली गईं किंतु कृष्णा (श्याम सलिला) यमुना 'कलिंद शिखर' पर जा पहुंची | वहाँ जाकर उस कलिंद पर्वत से प्रकट होने के कारण उनका नाम 'कालिंदी' हो गया | कलिंदगिरीके शिखरों से टूटकर जो बड़ी-बड़ी चट्टानें पड़ी थीं, उनके सुदृढ़ तटों को तोड़ती-फोड़ती हुई वेगवती कृष्णा [कालिंदी] अनेक प्रदेशों को पवित्र करती हुई खांडववन (इंद्रप्रस्थ) जा पहूँची |

श्रीकृष्ण को पतिरूपमें पाने की चाह-

यमुना जी साक्षात् परिपूर्णतम भगवान श्रीकृष्ण को अपना पति बनाना चाहती थीं इसीलिए वे परम दिव्यदेह धारण करके खांडव वन में तपस्या करने लगीं | इनके पिता भगवान सूर्यने जलके भीतर ही एक दिव्य घर का निर्माण कर दिया जिसमें आज भी वह रहा करती हैं | खांडववनसे वेग पूर्वक चलकर कालिंदी ब्रजमंडल में श्री वृंदावन और मथुरा के निकट आ पहूँची | यहाँ से श्रीगोकुल आने पर परम सुंदरी यमुना ने विशाखा नाम की सखी के साथ अपने नेतृत्व में गोप किशोरियों का एक यूथ बनाया और श्रीकृष्णचंद्र के रास में सम्मिलित होने के लिए उन्होंने वहीं अपना निवास स्थान निश्चित किया | तदनंतर जब वे ब्रजसे आगे जाने लगीं तो ब्रजभूमि के वियोग से विह्वल हो, प्रेमानंद आँसू बहाती हुईं पश्चिम दिशा की ओर प्रवावित हुई | ब्रजमंडल की भूमि को अपने जलके वेगसे तीन बार प्रणाम करके यमुना अनेक प्रदेशों को पवित्र करती हुई उत्तम तीर्थ प्रयाग जा पहुंची | वहां गंगा जी के साथ उनका संगम हुआ और वे उन्हें साथ लेकर छीरसागरकी चली गयीं | उस समय देवताओं ने उनके ऊपर फूलों की वर्षा की और दिग्विजय सूचक जयघोष किया |

गंगा द्वारा यमुना की प्रशंसा-

एकसाथ छीरसागर पहुँचकर गंगा जी ने यमुना से कहा हे कृष्णे ! सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को पावन बनाने वाली तो तुम हो, अतः तुम्हीं धन्य हो | श्रीकृष्ण के वामांग से तुम्हारा प्रादुर्भाव हुआ है तुम परमानंदस्वरूपिणी हो | साक्षात् परिपूर्णतमा हो | समस्त लोकों के द्वारा वन्दनीया हो | परिपूर्णतम परमात्मा श्रीकृष्ण की पटरानी हो | अतः हे कृष्णे ! तुम सब प्रकार से उत्कृष्ट हो | तुम कृष्णा को मैं प्रणाम करती हूँ | तुम समस्त तीर्थों और देवताओं के लिए भी दुर्लभ हो | यमदंड और शनिपीणा से बचाव-यमुना छठ के दिन अथवा किसी भी शनिवार के दिन प्राणी यदि स्नान आदि करके यमुनातट पर इन मंत्रों | ऊँ नमो भगवत्यै कलिन्दनन्दिन्यै सूर्यकन्यकायै यमभगिन्यै श्रीकृष्णप्रियायै यूथीभूतायै स्वाहा | ऊँ हीं श्रीं, क्लीं कालिन्द्यै देव्यै नम: | मंत्रके द्वारा यमुना का पूजन और आरती आदि करे तो उसके जीवन में अकाल मृत्युका भय, यमदंड और त्रास देनेवाली शनि की शाढ़ेसाती, महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यान्तर दशा तथा मारकग्रह दशा का दोष शांत हो जाता है |



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें