मंगलवार, 15 मई 2012


स वृक्षकालाकृतिभिः परोन्यो यस्मात्प्रपंचः  परिवर्ततेयम  !
धर्मावहं पापनुदं भगेशं ज्ञात्वात्मस्थममृतं विश्वधाम   !!

अर्थात- जिससे यह जगत प्रपंच प्रवृत होता है जो इस संसार वृक्ष से अतीत है, काल से परे है उस
धर्म की प्राप्ति करने वाले पाप का उच्छेद करने वाले समस्त सद्गुणों के अधीश आत्मा में अवस्थित
अमृतस्वरुप तथा समस्त विश्व के आधारभूत परमात्मा की शरण में चलें !!

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