बुधवार, 16 मई 2012


मैंने मांगा फूल, लेकिन आप ने पत्थर दिया, एक सीधे प्रश्न का कितना कठिन उत्तर दिया !
घर के मालिक ने न जाने किस व्यस्था के तहत, लेटने को बैठकें दी बैठने को घर दिया !
अब भी हम आदिम गुफाओं से लिकल पाए नहीं, हम उसे ही खा गए जिसने हमें अवसर दिया !
होंठ आँखे कान तो पहले ही उनके गुलाम, एक अपना दिल बचा था वो भी हाज़िर कर दिया !
आप क्या देंगें जो हम दामन पसारे आप से, आप ने तो ज़हर भी औकात से गिरकर दिया !

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