शुक्रवार, 8 अगस्त 2014


भादों में करें गणपति को प्रसन्न
श्रीगणेश आराधना का पावन माह भादौं 11 अगस्त सोमवार से आरम्भ हो रहा है, जिस तरह श्रावणमाह में शिव की आराधना का फल अमोघ है उसी प्रकार
भादौंमाह भगवान गणेश की आराधना के लिए सर्वोपरि है ! शास्त्रों के अनुसार भादौं माह में गणेश की आराधना प्राणियों का संकल्पित मनोरथ पूर्ण करती है !
इसवर्ष भादौं माह में अपने घर में गणेश की मूर्ति बिठाना, उनकी पूजा आराधना करना विशेष फलदायी रहेगा क्योंकि वर्तमान संवत्सर के राजा और मंत्री दोनों
का अधिकार चन्द्रमा के पास है जो मन, माता, मित्र, मकान, मानसिक सुख-तनाव आदि के स्वामी हैं चन्द्र एवं गणेश सर्वदा साथ-साथ ही रहते हैं इसलिए
इसवर्ष विद्यार्थियों अथवा अन्य प्रतियोगिताओं में बैठने वाले युवकों के लिए 'गणेश' पूजा का फल अक्षुण रहेगा !
शास्त्र कहते हैं,'गणानां जीवजातानां य ईशः स गणेशः' अर्थात जो समस्त गणों तथा जीव-जाति के स्वामी हैं वही गणेश हैं ! इनका जन्म वर्तमान श्रीश्वेतवाराहकल्प
के सातवें वैवस्वत मनवंतर में भादौं माह की शुक्लपक्ष चतुर्थी तिथि सोमवार को स्वाति नक्षत्र की सिंह लग्न एवं अभिजित मुहूर्त में हुआ ! जन्म के समय
सभी शुभग्रह कुंडली में पंचग्रही योग बनाए हुए थे तथा पाप ग्रह अपने-अपने कारक भाव में बैठे थे ! पंचभूतों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश में,
पृथ्वी 'शिव', 'जल' 'गणेश', अग्नि 'शक्ति', वायु 'सूर्य' और आकाश 'श्रीविष्णु' हैं इन पांच तत्वों के वगैर जीव-जगत की कल्पना भी नहीं की जा सकती !
जल तत्व के स्वामी गणेश का स्वाति नक्षत्र में जन्म होने के फलस्वरूप इस नक्षत्र में बारिस की एक-एक बूँद अमृततुल्य मानी गई है जो वृक्षों, वनस्पतियों
औषधियों, और फसलों को रोग रहित बनाती है गाँवों में किसान इस नक्षत्र पर सूर्य की यात्रा के मध्य वर्षा की अत्यधिक कामना करते हैं ऐसा माना गया है
कि यह नक्षत्र धान की फसलों के लिए तो अमृत तुल्य है ही, इसके बाद की गेहूं की फसल भी रोग रहित होती है जिससे पैदावार में भी बृद्धि होती है ! सभी
प्राणियों में गणेश 'रक्त' रूप में विराजते हुए चारों देवों सहित पंचायतन में पूज्य हैं जैसे श्रृष्टि का कोई भी शुभ-अशुभ कार्य जल के बिना पूर्ण नहीं होता
वैसे ही गणेश पूजन के बिना कोई भी जप-तप, अनुष्ठान आदि कर्म पूर्ण नहीं होता !
वेदांग ज्योतिष में अश्विनी आदि नक्षत्रों के अनुसार देवगण, मनुष्यगण और राक्षसगण इन तीनों गणों के 'ईश' गणेश ही हैं ! जिनमे 'ग' ज्ञानार्थवाचक और 'ण'
निर्वाणवाचक है 'ईश' अधिपति हैं ! अर्थात ज्ञान-निर्वाणवाचक गण के 'ईश' गणेश ही 'परब्रह्म' हैं ! प्राणियों के शरीर में मेरुदंड के मध्य सुषुम्ना नाडी जो ब्रह्मरंध्र
में प्रवेश करके मष्तिष्क के नाडी समूह से मिलजाती है इसका आरम्भ 'मूलाधार चक्र' है जिसे 'गणेश' स्थान कहते हैं ! आध्यात्मिक भाव से ये चराचर जगत की
आत्मा है सबके स्वामी हैं सबके ह्रदय की बात समझ लेने वाले 'सर्वज्ञ' हैं !इनका सिर हाथी का और वाहन मूषक है ! मूषक प्राणियों के भीतर छुपे हुए काम, क्रोध
मद, लोभादि पापकर्म की वृत्तियों का प्रतीक है ! अतः गणेश पूजन से ये विनाशक पापकर्म वृत्तियाँ दबी रहती हैं, जिसके फलस्वरूप जीवात्मा की चिंतन-स्मरण
की शक्ति तीक्ष्ण बनी रहती है ! जनकल्याण हेतु गणेश पाश, अंकुश और वरमुद्रा धारण करते हैं ! पाश मोह का प्रतीक है जो तमोगुण प्रधान है, अंकुश वृत्तियों
का प्रतीक है जो रजोगुण प्रधान है, वरमुद्रा सत्वगुण का प्रतीक है जो आत्मसाक्षात्कार कराकर परम पद दिलाते हुए परमेश्वर का दर्शन भी कराता है इनका पूजन
करके प्राणी तमोगुण, रजोगुण से मुक्त होकर सतोगुणी हो जाता है ! पं जयगोविन्द शास्त्री

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