शीर्षक- बृहस्पति कवच से सौख्य प्राप्ति
अभीष्टफलदं देवं सर्वज्ञं सुर पूजितम् | अक्षमालाधरं शान्तं प्रणमामि बृहस्पतिम् ||
बृहस्पति: शिर: पातु ललाटं पातु में गुरु: | कर्णौ सुरुगुरु: पातु नेत्रे मेऽभीष्टदायक: ||
जिह्वां पातु सुराचार्यो नासां में वेदपारग: | मुखं मे पातु सर्वज्ञो कण्ठं मे देवतागुरु: ||
भुजावाङ्गिरस: पातु करौ पातु शुभप्रद: | स्तनौ मे पातु वागीश: कुक्षिं मे शुभलक्षण: ||
नाभिं देवगुरु: पातु मध्यं पातु सुखप्रद: | कटिं पातु जगद्वन्द्य: ऊरू मे पातु वाक्पति: ||
जानु-जङ्गे सुराचार्यो पादौ विश्वात्मकस्तथा | अन्यानि यानि चाङ्गानि रक्षेन् मे सर्वतोगुरु: ||
इत्येतत्कवचं दिव्यं त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर: | सर्वान् कामान्वाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत् ||
स्रोत- ब्रह्मयामलतंत्र
संकेत-
प्रस्तुत मंत्र ब्रह्मयामलतंत्र से लिया गया बृहस्पति कवच है, जिसका प्रतिदिन पाठ करने से प्राणी समस्त सांसारिक सौख्य तो प्राप्त करता ही है अपितु अपने सभी कार्यों में सफल होकर सब प्रकार से विजयी होता है |
मंत्रार्थ-
मैं उन बृहस्पतिदेव को नमस्कार करता हूँ जो हमारी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं, जो सब कुछ जानते हैं, जिनकी पूजा सभी देवता करते हैं, जो मणियों की माला पहनते हैं और जो शान्त हैं | बृहस्पति मेरे सिर की रक्षा करें, गुरु मेरे माथे की रक्षा करें, देवों के गुरु मेरे कानों की रक्षा करें और मेरी आँखों की रक्षा वह करें जो कामनाओं को पूर्ण करतें है | मेरी जिह्वा की रक्षा देवों के आचार्य करें, मेरी नाक की रक्षा वेदों के ज्ञाता करें, मेरे मुख की रक्षा सर्वज्ञ करें तथा मेरी गर्दन की रक्षा देवताओं के गुरु करें | मेरी भुजाओं की रक्षा आंगिरस करें, मेरे हाथों की रक्षा शुभ कर्म करने वाले करें, वाणी के स्वामी मेरे वक्षस्थल की रक्षा करें और शुभ लक्षणों से युक्त मेरे उदर की रक्षा करें | मेरी नाभि की रक्षा देवगुरु करें, सम्पूर्ण सुख देने वाले मेरे मध्य की रक्षा करें | जगत् में वन्दनीय मेरे कमर की रक्षा करें, और शब्दों के स्वामी मेरे उरु की रक्षा करें | देवों के आचार्य मेरी जांघों और घुटनों की रक्षा करें, मेरे पैरों की रक्षा विश्वात्मा करें और मेरे शरीर के अन्य सभी अंगों की रक्षा सदैव गुरुदेव करें | कोई भी प्राणी इस दिव्य कवच का पाठ प्रातः, मध्यान और शायंकाल में करता है तो वह सभी कार्यों में सफल होकर सब प्रकार से विजयी होगा |
तात्पर्य-
भगवान् विष्णु ही देवगुरु बृहस्पति के रूप में सर्वपूज्य हैं, इसलिए इनके कवच पाठ को स्वयं नारायण कवच जैसा ही समझना चाहिए |