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शनिवार, 27 सितंबर 2014
मंगलवार, 16 सितंबर 2014
'सूर्य और राहु की युति'
सूर्यदेव 17 सितंबर की प्रातः कन्या राशि में प्रवेश कर रहे हैं, वहाँ ये पहले से ही विराजमान राहु से युति करेंगें जिसके परिणामस्वरूप 'ग्रहणयोग'
बनेगा ! कन्या राशि के अधिपति बुध हैं किन्तु यह राहु की भी प्रिय राशि है कारण यह है कि, यह स्त्री राशि है और राहु, केतु अथवा कोई भी
अन्य पाप या क्रूर ग्रह जब किसी भी स्त्री राशि के प्रवेश करते हैं तो उनके स्वाभाव में सौम्यता आ जाती है, कारण यह है कि आसुरी शक्तियां
सर्वाधिक स्त्रियों के ही वशीभूत रहती हैं अतः कन्याराशि के जातकों का एक माह मानसिक तनाव वाला तो रहेगा परन्तु कार्य व्यापार की दृष्टि से
अधिक नुकसान नहीं होगा ! उससे भी बड़ी खुशखबरी इसराशि वालों के लिए यह है कि अब कामयाबियों के मार्ग में आनेवाली सभी बाधाएं धीरे-धीरे
दूर होती जायेगी ! इसराशि वालों पर शनि की शाढेसाती के बचे हुए अंतिम 50 दिनों का कुप्रभाव अभी भी जातकों के शरीर में कमर से नीचे रहेगा
जो थोडा कष्टकारक तो है किन्तु अब इससे भी मुक्ति मिलाने वाली है इसलिए इस युति से किसी प्रकार के घबराहट या वहम् में पड़ें ! राहु-सूर्य के
एक साथ आ जाने से सूर्य, राहु का कुप्रभाव और भी कम कर देंगें क्योंकि, जन्मकुंडली में यदि सूर्य बलवान हों तो अकेले ही सात ग्रहों का दोष
शमन कर देते हैं, 'सप्त दोषं रबिर्र हन्ति, शेषादि उत्तरायने ! अगर उत्तरायण सूर्य के समय आपका जन्म हुआ हो तो सूर्य सभी आठ ग्रहों चन्द्र,
मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहू और केतु का दोष शमन कर देते हैं ! अतः सूर्य को प्रसन्न करने से राजपद, श्रेष्ठ पुरस्कार, उत्तम स्वास्थय, संतान
प्राप्तिं, पाप शमन, शत्रु विनाश, खोई हुई प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्ति होती है !
शिव-पार्वती संवादशास्त्र, कर्मविपाक संहिता में सूर्य के महत्व का वर्णन करते हुए कहा गया है कि "ब्रह्मा विष्णुः शिवः शक्तिः देव देवो मुनीश्वराः !
ध्यायन्ति भास्करं देवं शाक्षी भूतं जगत्त्रये ! अर्थात- तीनों प्रकार श्रेष्ट, मध्यम और अधम जगत के शाक्षी ब्रह्मा, विष्णु, शिव, देवी, देव, श्रेष्ट इंद्र और
मुनीश्वर भी भगवान् भास्कर ही ध्यान करते हैं ! आप ही ब्रह्मा, विष्णु ,शिव, प्रजापति अग्नि तथा वषट्कार स्वरुप कहे जाते है आप समस्त संसार के
शुभ-अशुभ कर्मों के दृष्टा हैं ! यह चराचर जगत आपके ही प्रकाश से दीप्यमान होता है, आप जगत की आत्मा हैं आपकी तेजस्वी किरणों के प्रभाव से
ही जीव की उतपत्ति होती है ! सूर्य रश्मितो जीवोभि जायते ! जन्मकुंडली में अथवा ग्रह गोचर देखते समय सूर्य की भावस्थिति का ध्यानपूर्वक विवेचन
करना चाहिए ! इनका राशि परिवर्तन मेष, बृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, बृश्चिक, धनु, और मकर, राशि वालों के लिए उत्तम फलदायी रहेगा जबकि, मिथुन,
तुला,कुम्भ और मीन राशि वाले जातकों के लिए मध्यम रहेगा ! पं जयगोविन्द शास्त्री
शुक्रवार, 5 सितंबर 2014
त्रिबिध तापों से मुक्ति दिलाता है, श्रावण माह पं जयगोविन्द शास्त्री
वैसे तो सनातन धर्म में प्रत्येक माह,तिथि और वार का अपना अलग अलग महत्व है,किन्तु श्रावण का माह आते ही हर जीवात्मा चाहे वह ॐ रूपी परमात्मा
के किसी भी रूप का पूजक हो, इस माह में शिवमय हो जाता है ! श्रावण का माह शिव पूजा,रुद्राभिषेक,दरिद्रता निवारक अनुष्ठान, मोक्ष प्राप्ति , आसुरी
शक्तियों से निवृत्ति,भक्ति प्राप्ति तथा दैहिक, दैविक,और भौतिक, तीनो तापों से मुक्ति दिलाने के लिए श्रेष्ट माना गया है !इस माह में एक बेल पत्र भी
अगर शिव जी को अर्पित किया जाए तो वह अमोघ फलदायी होता है !
जिस प्रकार मकर राशि पर सूर्य के पहुचने पर सभी देवी-देवता,यक्ष आदि पृथ्वी पर आते हैं,उसी प्रकार कर्क राशिगत सूर्य में भी सभी देवी देवता पृथ्वी पर
आते हैं ! और ये सभी भगवान् शिव की आराधना पृथ्वी पर करके अपना पुन्य बढाते हैं, स्वयं भगवान् बिष्णु,ब्रह्मा इंद्र शिवगण आदि सभी श्रावण में पृथ्वी
पर ही वास करते हैं और सभी अलग-अलग रूपों में अनेकों प्रक्रार से शिव आराधना करते हैं ! ऐसा माना जाता है की इस माह में की गयी शिव पूजा तत्काल
शुभ फलदायी होती है ! इसके पीछे स्वयम शिव का ही वरदान ही है !
समुद्र मंथन के समय जब कालकूट नामक विष निकला तो उसके ताप से सभी देवी- देवता भयभीत हो गए ! तीनो लोकों में त्राहि -त्राहि मच गयी ! किसी
के पास भी इसका निदान नहीं था,उस कालकूट विष से वायु मंडल प्रदूषित होने लगा, जिससे पर जीवन पर घोर संकट आ गया ! तभी सभी देवता भगवान
शिव की शरण में गए, और इस विष से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की ! लोक कल्याण के लिए भोलेनाथ ने इस विष का पान कर लिया,और उसे अपने गले
में ही रोक लिया जिसके प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया और वे नील कंठ कहलाये ! विष के ताप-गर्मी से व्याकुल शिव तीनो लोको में भ्रमर करने लगे
पर कहीं भी उन्हें शांति नहीं मिली,अंत में वे पृथ्वी पर आकर पीपल के वृक्ष के पत्तों को चलता हुआ देख उसके नीचे बैठगए जहां कुछ शांति मिली, शिव
के साथ ही सभी तैतींस करोड़ देवी-देवता उस पीपल वृक्ष में अपनी शक्ति समाहित कर शिव को सुंदर छाया और जीवन दायीनी वायु प्रदान करने लगे !
चन्द्रमा ने अपनी पूर्ण शीतल शक्ति से शिव को शांति पहुचाई तो शेषनाग ने गले में लिपटकर उस कालकूट विष के दाहकत्व को कम करने में लग गए !
देवराज इन्द्र और गंगा माँ देव निरंतर शिव शीश पर जलवर्षा करने लगे ! यह जानकर की विष ही विष के असर को कम करसकता है, शभी शिवगण
भांग,धतूर ,बेलपत्र आदि शिव को खीलाने लगे,जिससे भोलेनाथ को शांति मिली ! श्रावण माह कि समाप्ति तक भगवान शिव पृथ्वी पर ही रहे,उन्होंने चन्द्रमाँ,
पीपल वृक्ष शेषनाग आदि सभी को वरदान दिया,कि इस माह में जो भी जीव मुझे पत्र,पुष्प, भांग,धतूर और बेल पत्र आदि चढ़ाए गा! उसे संसार के तीनो
\ कष्टों दैहिक,यानी स्वास्थय से सम्बंधित , दैविक यानी दैवीय आपदा से सम्बंधित और भौतिक यानी दरिद्रता से सम्बंधित तीनों कष्टों से मुक्ति मिलेगी,
साथ ही उसे मेरे लोक की प्राप्ति भी होगी ! चंद्रमा और शेष नाग पर विशेष अनुग्रह करते हुए शिव ने कहा की जो तुम्हारे दिन सोमवार को मेरी आराधना
करेगा वह मानसिक कष्टों से मुक्त हो जायेगा उसे किसी प्रकार की दरिद्रता नहीं सताएगी ! शेष नाग को शिव ने आशीर्वाद देते हुए कहा की जो इस माह में
नागों को दूध पिलाएगा,उसे काल कभी नहीं सताएगा और उसकी वंश बृद्धि में कोए रुकावट नहीं आएगी ! साथ ही उसे सर्प दंश का भय नहीं रहेगा !गंगा माँ
को भगवान् शिव ने कहा की जो इस माह में गंगा जल मुझे अर्पित करेगा वह जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जायेगा ! पीपल वृक्ष को आशीर्वाद देते हुए
भोले ने कहा कि तुम्हारी शीतल छाया में बैठकर मुझे असीम शांति मिली इस लिए मेरा अंश तुम्हारे अंदर हमेशा विद्यमान रहेगा,जो तुम्हारी पूजा करेगा उसे
मेरी पूजा का फल प्राप्त होगा ! शिव के इस वचन को सुनकर सभी देवों ने उन्हें भांग धतूर,बेलपत्र और गंगा जल अर्पित किया ! इसी लिए जो इस माह में
शिव पर गंगाजल चढाते हैं, वे देव तुल्य हो जाते हैं,साथ ही जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं ! मानशिक परेशानी ,कुंडली में अशुभ चन्द्र का दोष
मकान- वाहन का सुख और संतान से संबधित चिंता सोमवार को शिव आराधना से दूर हो जाती है ! इस माह में सर्पों को दूध पिलाने कालसर्प-दोष ,से मुक्ति
मिलती है, और उसके वंश का विस्तार होता है ! "ॐ नमः शिवाय करालं महाकाल कालं कृपालं ॐ नमः शिवाय" का जप करते हुए शिव आराधना करें !
अथवा "काल हरो हर,कष्ट हरो हर, दुःख हरो दारिद्र्य हरो ! नमामि शंकर,भजामि शंकर, शंकर शम्भो तव शरणम् !! का भजन जीवन के सारे दुःख दूर कर
देगा ॐ नमः शिवाय ! पं.जय गोविन्द शास्त्री "वरिष्ठ ज्योतिर्विद"
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