शुक्रवार, 8 मई 2015

अपरा एकादशी व्रत' अधमाधम पापों से मुक्ति
पौराणिक मान्यताओं कें आधार पर सनातम धर्म में एकादशी तिथि के व्रत-पूजन का सर्वाधिक महत्व बताया गया है, 'श्रीमद्भगवद्गीता' में भी परमेश्वर श्रीकृष्ण
ने इस तिथि को अपने समान बलशाली बताया है | एक वर्ष में चौबीस एकादशी होती हैं, किन्तु जब पुरुषोत्तम मास लगता है तो इनकी संख्या छब्बीस हो
जाती है !सभी एकादशियों में अपने ही नाम के अनुसार पुण्यफल देने का सामर्थ्य है | वर्तमान ज्येष्ठ कृष्णपक्ष की एकादशी को 'अपरा' या 'अचला' एकादाशी
के नाम से जाना जाता है पद्मपुराण के 'उत्तरखण्ड' में इस व्रत का विस्तार से वर्णन मिलता है | इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्महत्या, गौहत्या, गोत्रहत्या,
भ्रूण करने से, माप-तोल में धोखा देने से, भू‍त-प्रेतयोनि, परनिंदा का पाप, परस्त्री गमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, चोरी जैसे पाप शीघ्र समाप्त हों जाते हैं !
धर्मराज युधिष्टिर को समझाते हुए भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं कि जो क्षत्रिय युद्ध से भाग जाए वे नरकगामी होते हैं, परंतु 'अपरा' एकादशी का व्रत करने से वे
भी स्वर्ग को प्राप्त होते हैं | जो शिष्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करते हैं फिर उनकी निंदा करते हैं वे अवश्य नरक में पड़ते हैं, किन्तु 'अपरा' एकादशी का व्रत करने से
वे भी इस पाप से मुक्त हो जाते हैं, हे | धर्मराज, जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तटपर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त
होता है, वही 'अपरा' एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। मकर राशि में सूर्य की यात्रा में प्रयाग तीर्थ के स्नान से, महाशिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि
के बृहस्पति में गोदावरी नदी के स्नान से, केदारनाथ के दर्शन तथा बद्रीनाथ के दर्शन करने से, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान और स्वर्णदान करने से, गौदान से
जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है | यह व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए अग्नि,
पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान है | अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना
चाहिए। इस तिथि पूर्णतः व्रत रखकर को षोडशोपचार बिधि से भगवान वामन की पूजा करनी चाहिए पश्च्यात अगले दिन ब्राह्मण एवं भूखे लोगों को भोजन
कराकर व्रत की पारणा करने से प्राणी भौतिक सुखों को भोगता हुआ मरणोपरांत गोलोकवासी होता है | पं जयगोविन्द शास्त्री

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