गुरुवार, 17 सितंबर 2015

सिद्धि विनायक चतुर्थी 17 सितंबर को
सभी प्रकार की विपत्तियों का हरण करके धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करने वाले श्रीसिद्धि विनायक गणेश का जन्मदिन
भौदों शुक्लपक्ष चतुर्थी बृहस्पतिवार को मनाया जायेगा | गणेशभक्तों के लिए सबसे बड़ी खुशखबरी यह है कि इस वर्ष का जन्मदिन स्वयं गणेश के जन्म नक्षत्र स्वाति में ही पड़ रहा है जो अत्यंत दुर्लभ संयोग है, अतः इस वर्ष की विनायक आराधना का फल परम शुभकारी और कर्ज से मुक्ति दिलाने वाला सिद्ध होगा | गणेश सभी गणों, ॠद्धियों और सिद्धियों के स्वामी हैं जो सरल पूजा-पाठ से ही प्रसन्न होकर अपने भक्तों का अभीष्ट फल प्रदान करते हैं | पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पंचभूतों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश में पृथ्वी शिव, जल गणेश, तेज-अग्नि शक्ति, वायु सूर्य और आकाश विष्णु हैं इन पांच तत्वों के वगैर जीव-जगत की कल्पना नहीं की जा सकती | जल तत्व के अधिपति गणेश हर जीव में रक्त रूप में विराजते हुए चारों देवों सहित पंचायतन में पूज्य हैं जैसे श्रृष्टि का कोई भी शुभ-अशुभ कार्य जल के बिना पूर्ण नहीं हो सकता वैसे ही गणेश पूजन के बिना कोई भी जप-तप, अनुष्ठान आदि कर्म पूर्ण नहीं नहीं हो सकते | ज्योतिषशास्त्र में अश्विनी आदि सभी नक्षत्रों के अनुसार देवगण, मनुष्यगण और राक्षसगण इन तीनो गणों के ईश गणेश ही हैं | 'ग' ज्ञानार्थवाचक और 'ण' निर्वाणवाचक है 'ईश' अधिपति हैं अर्थात ज्ञान-निर्वाणवाचक गण के ईश गणेश ही परब्रह्म हैं | योग-शास्त्रीय साधना में शरीर में मेरुदंड के मध्य जो सुषुम्ना नाडी है, वह ब्रह्मरंध्र में प्रवेश करके मष्तिष्क के नाडी समूह से मिलजाती है इसका आरम्भ मूलाधार चक्र ही है इसी 'मूलाधार चक्र' को गणेश स्थान कहते हैं |गणेश्वरो विधिर्विष्णु: शिवो जीवो गुरुस्तथा | षडेते हंसतामेत्य मूलाधारादिषु स्थिताः | आध्यात्मिक भाव से विनायक जगत की आत्मा है सबके स्वामी हैं सबके ह्रदय की बात समझ लेने वाले सर्वज्ञ हैं ! इन्द्रियों के स्वामी होने से भी इन्हें गणेश कहा गया है | इनका सर हाथी का और वाहन मूषक है | ये पाश, अंकुश और वरमुद्रा धारण करते हैं पाश मोह का प्रतीक है जो तमोगुण प्रधान है अंकुश वृत्तियों का प्रतीक है जो रजोगुण प्रधान है वरमुद्रा सत्वगुण का प्रतीक है इनकी उपासना करके प्राणी तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण से ऊपर उठकर इनकी कृपा का पात्र बनता है | हम इस वर्ष की अति शुभफल कारी सिद्धिविनायक चतुर्थी का भक्ति-भाव से पूजन करके अपने सकल मनोरथ सिद्ध करसकते हैं | पं जयगोविन्द शास्त्री 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें