सोमवार, 9 नवंबर 2015

आरोग्य शरीर के लिए करें धन्वंतरी की पूजा 'धनतेरस'
भगवान् विष्णु के अंशावतार एवं देवताओं के वैद्य भगवान धन्वन्तरि का प्राकट्य पर्व कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी को मनाया जाता है | पूर्वकाल में देवराज इंद्र के अभद्र आचरण के परिणामस्वरूप महर्षि दुर्वासा ने तीनों लोकों को श्रीहीन होने का श्राप दे दिया था जिसके कारण अष्टलक्ष्मी पृथ्वी से अपने लोक
चलीं गयीं | पुनः तीनोलोकों में श्री की स्थापना के लिए व्याकुल देवता त्रिदेवों के पास गए और इस संकट से उबरने का उपाय पूछा, महादेव ने समुद्रमंथन का सुझाव दिया जिसे देवताओं और दैत्यों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया | समुद्र मंथन की भूमिका में मंदराचल पर्वत को मथानी और नागों के राजा वासुकी को मथानी के लिए रस्सी बनाया गया | वासुकी के मुख की ओर दैत्य और पूंछ की ओर देवताओं को किया गया मंथन आरम्भ हुआ, समुद्रमंथन से चौदह प्रमुख रत्नों की उत्पत्ति हुई जिनमें चौदहवें रत्न के रूप में स्वयं भगवान् धन्वन्तरि प्रकट हुए जो अपने हाथों में अमृतकलश लिए हुए थे | भगवान् विष्णु ने इन्हें देवताओं का वैद्य एवं वनस्पतियों और औषधियों का स्वामी नियुक्त किया | इन्हीं के वरदान स्वरूप सभी वृक्षों-वनस्पतियों में रोगनाशक शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ | आजकल व्यापारियों ने धनतेरस का भी बाजारीकरण हो गया है और इसदिन को विलासिता पूर्ण वस्तुओं के क्रय का दिन घोषित कर रखा है जो सही नहीं है इसका कोई भी सम्बन्ध धन्वन्तरि से नहीं है ये आरोग्य और औषधियों के देव हैं न कि हीरे-जवाहरात या अन्य भौतिक वस्तुओं के |अतः इसदिन इनकी पूजा-आराधना अपने और परिवार के स्वस्थ शरीर के लिए करें क्योंकि संसार का सबसे बड़ा धन आरोग्य शरीर है | आयुर्वेद के अनुसार भी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति स्वस्थ शरीर और दीर्घायु से ही संभव है, शास्त्र भी कहते हैं कि 'शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम्' अर्थात धर्म का साधन भी निरोगी शरीर ही है तभी आरोग्य रुपी धन के लिए ही भगवान् धन्वन्तरि की पूजा आराधना की जाती है | ऐसा माना जाता है की इस दिन की आराधना प्राणियों को वर्षपर्यंत निरोगी रखती है | समुंद मंथन की अवधि के मध्य शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरी और अमावस्याको महालक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ | धन्वंतरी ने ही जनकल्याण के लिए अमृतमय औषधियों की खोज की थी | इन्हीं के वंश में शल्य चिकित्सा के जनक दिवोदास हुए महर्षि विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत उनके शिष्य हुए जिन्होंने आयुर्वेद का महानतम ग्रन्थ सुश्रुत संहिता की रचना की | पं जयगोविन्द शास्त्री

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