शनिवार, 9 नवंबर 2019


 !! और भी पुन्यफलदाई होता है पितृ विसर्जन के दिन श्राद्ध-तर्पण  !! पं. जयगोविन्द शास्त्री 
पितृपक्ष का पावन पर्व धीरे-धीरे समापन की ओर बढ़ रहा है ! परिवार के किसी भी मृत व्यक्ति/संबंधी की तिथि न 
मालूम हो तो पितृ विसर्जन के दिन ही श्राद्ध करें ! यह तिथि सभी के लिए ग्राह्य मानी गई है अगर सम्बंधित 
परिजन की मृत्यु की तिथि ज्ञात हो तो उस मृत्यु तिथि में ही उनका श्राद्ध करने का विधान है ! 
पितृ विसर्जन की तिथि का इतना अधिक महत्व क्यों ?
इसतिथि के 'सर्वपितृ श्राद्ध' होने के पीछे एक महत्वपूर्ण घटना है कि, देवताओं के पितृगण 'अग्निष्वात्त' जो 
सोमपथ लोक मे निवास करते हैं ! उनकी मानसी कन्या, 'अच्छोदा' नाम की एक नदी के
रूप में अवस्थित हुई ! एकबार अच्छोदा ने एक हज़ार वर्षतक निर्बाध तपस्या की ! उनकी तपस्या से प्रसन्न 
होकर दिव्यशक्ति परायण देवताओं के पितृगण 'अग्निष्वात्त' अच्छोदा को वरदान देने के लिए दिव्य सुदर्शन शरीर 
धारण कर आश्विन अमावस्या के दिन उपस्थित हुए ! उन पितृगणों में 'अमावसु' नाम के एक अत्यंत सुंदर पितर की 
मनोहारी-छवि यौवन और तेज देखकर अच्छोदा कामातुर हो गयीं और उनसे प्रणय निवेदन करने लगीं किन्तु अमावसु 
अच्छोदा की कामप्रार्थना को ठुकराकर अनिच्छा प्रकट की ! इससे अच्छोदा अति लज्जित हुई 
और स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरीं ! उसी पाप के प्रायश्चित हेतु कालान्तर में यही अच्छोदा महर्षि पराशर की 
पत्नी एवं वेदव्यास की माता बनी थी !तत्पश्यात समुद्र के अंशभूत शांतनु की पत्नी हुईं और दो पुत्र चित्रांगद तथा 
विचित्रवीर्य को जन्म दिया था ! इन्ही के नाम से कलयुग में इन्ही के नाम से 'अष्टका श्राद्ध' मनाया जाता है !
अमावसु के ब्रह्मचर्य और धैर्य की सभी पितरों ने सराहना की एवं वरदान दिया कि, यह अमावस्या की तिथि 
'अमावसु' के नाम से जानी जाएगी ! जो प्राणी किसी भी दिन श्राद्ध न करपाए वह केवल अमावस्या के दिन श्राद्ध-तर्पण 
करके सभी बीते चौदह दिनों का पुन्य प्राप्त करते हुए अपने पितरों को तृप्त कर सकतें हैं, 
तभी से यह तिथि 'सर्वपितृ श्राद्ध' के रूप में मानाई जाती है ! धन के अभाव में कैसे करें श्राद्ध ? 
वेद के अनुसार मृत पिता को वसुगण, दादा को रूद्रगण और परदादा को आदित्यगण कहागया है हमारे द्वारा किये 
श्राद्ध ये देव अग्नि, चन्द्र और यम के सहयोग से सम्बंधित लोकों में पहुचा देते हैं ! यदि धन-वस्त्रादि खरीदने के लिए
 रुपये न हों तो निराश होने जैसी कोईबात नहीं है - तस्मात्श्राद्धम नरो भक्त्या शाकैरपि यथाबिधिः ! 
अर्थात केवल श्रद्धा सहित शाक ही अर्पित करें और निवेदन करें की हे ! पितृ आप हमें सामर्थ्य वान बनाएँ ताकि 
भविष्य में और अच्छे ढंग से श्राद्ध-तर्पण कर सकूं ! ऐसा कहने से आप को लाखों गुना फल प्राप्त होगा ! 
गौ माता तो खिलाएं घास - पद्मपुराण के अनुसार सृष्टि सृजन के क्रम में ब्रह्मा जी ने सबसे पहले गौ कि रचना की, 
गौ माता में सभी तैतीस करोंड़ देवी-देवाताओं का वास है अतः 'कुतप काल; यानी दिन के ग्यारह बजकर छत्तीस 
मिनट से बारह बजकर चौबीस मिनट के मध्य गौओं का पंचोपचार बिधि से पूजन करके 
 उन्हें हरी घास (दूब) ही श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध के निमित्त खिलादें तब भी श्राद्ध-तर्पण का पूर्णफल प्राप्त हो जायेगा !
ब्राह्मणों के अभाव में किसे कराएं भोजन ?आज-कल श्राद्ध के दिनों में भोजन कराने हेतु ब्राह्मणों का अकाल पडता 
जा रहा है अधिकतर ब्राह्मण भी अब श्राद्ध का भोजन करने से परहेज करने करने लगे हैं ऐसे में कन्या के पुत्र को
 भोजन कराएँ यदि यह भी संभव न हो तो बैगैर पकाया हुआ अन्न मंदिर में दान करें इसके अतिरिक्त गौ
माता की पूजा-प्रदक्षिणा करके उन्ही को अपने हाथों से भोजन खिलायें तो भी अन्न का भाग सभी लोकों-पितृलोकों 
में पहुँच जायेगा ! 
श्राद्ध करने न करने से लाभ हानि - श्राद्ध करने का लौकिक अर्थ है अपने पूर्वजों और बड़ों के प्रति सम्मान 
प्रकट करना, समर्पण भाव रखना ! इसलिए श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने पर पितृ हमें -
''आयु पुत्रान यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम ! पशून सौख्यं धनं-धान्यं प्राप्नुयात पितृ पूजनात'' 
अर्थात आयु, पुत्र, ख्याति, स्वर्ग, बल-बुद्धि, पशु भौतिक सुखों के साथ-साथ सभी ऐश्वर्य वरदान रूप में प्रदान करते हैं ! 
श्राद्ध न करने पर -श्राद्धं न कुरुते मोहात् तस्य रक्तं पिबन्ति ते ! जैसे शरीर अधिक दिनों तक भूखा रहने पर स्वयं की
 चर्बी को ही खाने लगता है उसी प्रकार पितृ भी इस पक्ष में श्राद्ध-तर्पण न पाने से अपने ही सगे सम्बन्धियों का खून
 पीने लगते हैं तथा अमावस्या के दिन श्राप देकर अपने-अपने लोक चले जाते है अतः श्राद्ध की अनेकों बिधाओं
 में से किसी भी विधा के अनुसार अपने पूर्वजो का सम्मान करें !     '''शिवसंकल्पमस्तु'''

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