बुधवार, 6 मई 2020

भगवान सूर्य का मेष राशि में प्रवेश, वैशाख संक्रांति वृक्षारोपण में श्रेष्ठ

भगवान सूर्य का मेष राशि में प्रवेश, वैशाख संक्रांति वृक्षारोपण में श्रेष्ठ
जगातात्मा के रूप में अवस्थित भगवान सूर्य मीन राशि की यात्रा समाप्त करके 13 अप्रैल को रात्रि 08 बजकर 21 मिनट पर उच्चराशि मेष में
प्रवेश कर रहे हैं | सूर्य जब अपने मित्र मंगल की राशि मेष में आते हैं तो सभी ग्रहों का अशुभ फल क्षीण कर देते हैं किन्तु इनकी दक्षिणायन
की यात्रा के समय देवप्राण भी क्षीण पडने लगते हैं और आसुरी शक्तियों का वर्चस्व बढ़ जाता है इसीलिए इस अवधि के मध्य सूखा-बाढ़, फसलों
के रोग, पशुओं की बीमारी और अन्य नानाप्रकार के रोग प्राणियों के सताने लगते हैं | इनके उत्तरायण को देवातावों का दिन और दक्षिणायन को
दैत्यों का दिन माना गया है | यात्रा के समय इनके रथ पर महीने-महीने के अनुसार देवतागण आरोहित होते हैं | चैत्र और बैशाख माह में सूर्य के
पर धाता, अर्यमा दो देव, पुलस्त्य तथा पुलह नामक दो ऋषि प्रजापति, वासुकी तथा संकीर्ण नामक दो सर्प, गायन विद्या के विशारद तुम्बुक तथा
नारद नामक दो गन्धर्व, कृतस्थला तथा पुन्जिकस्थली नामक दो अप्सराएं, रथकृत तथा रथौजा नामक दो सारथी, हेती तथा प्रहेति नामक दो राक्षस
सूर्य मंडल में निवास करते हैं | ये चराचर जगत की आत्मा हैं, इनके वगैर सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जासकती | इनकी पत्नी का नाम संज्ञा
और दूसरी पत्नी का नाम छाया है | इनके अनेकों पुत्रों में यम और शनि तथा कन्याओं में यमुना और भद्रा श्रेठ और तपस्वी हैं जिनमें यम को
मरणोंप्रांत जीव को दंड देने का अधिकार और शनि तथा भद्रा को जीवलोक में दंड देने का अधिकार प्राप्त हैं | इनका श्रेष्ठतम मंत्र ॐ नमो
खखोल्काय शीघ्र प्रभावकारी है | किसी भी जातक की जन्मकुंडली में अकेले सूर्य ही बलवान हों तो सभी ग्रहों का का दोष शमन कर देते हैं |
भगवान कृष्ण ने एक हजार वर्ष तपस्या करके सूर्य से सूर्यचक्र वरदान स्वरुप प्राप्त किया था | भगवान राम नित्य-प्रति सूर्य की उपासना करते थे |
महर्षि अगस्त ने उन्हें सूर्य का प्रभावी मंत्र आदित्य ह्रदयस्तोत्र की दीक्षा दी थी | ब्रह्मा जी इन्हीं के सहयोग से श्रृष्टि का सृजन करते हैं | मत्स्य पुराण
के अनुसार शिव का त्रिशूल, नारायण का चक्रसुदर्शन और इंद्र का बज्र भी सूर्य के तेज से ही बना | इनकी पूजा सभी देवी देवाताओं से सरल है, आप
कहीं भी रहें केवल एक अंजलि जल का अर्घ्य देने से भी सूर्य कृपा प्राप्त कर सकते है | प्रतिदिन उदय होते ही इंद्र पूजा करते हैं, दोपहर के समय
यमराज, अस्त के समय वरुण और अर्धरात्रि में चन्द्रमा पूजन करते हैं | विष्णु, शिव, रूद्र, ब्रह्मा, अग्नि, वायु, ईशान आदि सभी देवगण रात्रि की
समाप्ति पर ब्रह्मवेला में कल्याण के लिए सदा सूर्य की ही आराधना करते हैं | इन सभी देवों में सूर्य का ही तेज व्याप्त है, किसी भी जातक की
जन्मकुंडली में उच्चराशिगत सूर्य जातक को धनी और राजयोगी
बनाते हैं | ये सिंह राशि के स्वामी हैं तुला राशि की यात्रा के समय ये नीचराशिगत संज्ञक होते हैं और मेष राशि की यात्रा पर उच्च के होते हैं |
मंदार पुष्प की माला इन्हें सबसे अधिक प्रिय है, इसके अतिरिक्त इन्हें कनेर, गुडहल, बकुल, मल्लिका, के पुष्प ताबे के पात्र में जल के साथ अर्घ्य देने
से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं | वैशाख संक्रांति की यात्रा के मध्य वृक्षारोपण से संसार के सभी भोंगो को प्राप्त किया जा सकता है अतः सूर्य की
आराधना और वृक्षारोपण जीवन में कर्ज से मुक्ति उत्तम विद्या और सन्तान प्रप्ति के लिए सहायक सिद्ध होते हैं  वास्तु जन्य दोष की शान्ति के लिए
अपने दरवाजे पर अथवा घर के सामने श्वेत अर्क (सफ़ेद मंदार) का वृक्ष लगाने से वंश वृद्धि होती है और घर नकारात्मक ऊर्जा भी दूर होती है |

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