शुक्रवार, 27 जून 2014


शक्ति आराधना का पर्व 'गुप्त नवरात्र'
पुरुषार्थ चतुष्टय धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करने वाली दस महाविद्याओं की आराधना का पर्व 'गुप्त नवरात्र' कल से आरंभ हो रहे हैं पालनहार
श्री विष्णु के शयन काल की अवधि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी के मध्य जब देव प्राण क्षीण हो जायेंगें और पृथ्वी पर रूद्र, वरुण, यम
आदि के द्वारा नाना प्रकार के रोग, बाढ़ सुखा आदि का प्रकोप रहेगा तो इन संभावित विपत्तियों से बचाव के लिए गुप्त नवरात्र में माँ दुर्गा की उपासना की जाती
है शास्त्रों के अनुसार सतयुग में चैत्र शुक्लपक्षीय नवरात्र, त्रेता में आषाढ़ शुक्लपक्षीय नवरात्र, द्वापर में माघ शुक्लपक्षीय और कलयुग में आश्विन शुक्लपक्षीय
यानी शारदीय नवरात्र में माँ शक्ति की साधना-उपासना का विशेष महत्व रहता है, यह नवरात्र आषाढ़ शुक्लपक्ष प्रतिपदा से नवमी तक रहता है दशमी के दिन
पारणा होती है और एकादशी को यज्ञदेव श्री विष्णु चार माह के लिए क्षीरसागर में शयन के लिए जाते हैं ! मार्कंडेय पुराण में उक्त चारों नवरात्रों में
शक्ति की आराधना के साथ-साथ अपने ईष्ट आराधना का भी विशेष महत्व बताया गया है ! घर में वास्तुदोष हो, पारिवारिक कलह हो, वंशवृद्धि अथवा संतान
प्राप्ति में बाधा आ रही हो शत्रुओं द्वारा प्रताणना हो रही हो, कोर्ट कचहरी के मामलों का भय हो या किसी भी तरह की नकारात्मक ऊर्जा का भय सता रहा हो
तो ऐसे समय माँ दुर्गा की आराधना गुप्तरूप से की जाती है इस नवरात्र में साधक को अपनी समस्त योजनाएं एवं पूजा संबंधी बिधि तथा मंत्र आदि गुप्त रखने
चाहिये ! विद्यार्थी वर्ग के लिए इसकाल में मां सरस्वती की आराधना भी विशेष फलदायी रहती है ।
शिवपुराण के अनुसार पूर्वकाल में 'रुरु' नामक महाबली दैत्य के पुत्र दुर्ग ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करके वरदान स्वरुप चारों वेद प्राप्त किया जिसके
परिणाम स्वरुप वह अजेय होकर उपद्रव करने लगा ! उस समय वेदों के नष्ट हो जाने से देवता एवं ब्राह्मण पथभ्रष्ट होगये और जप-तप, दान, यज्ञ का भाव होने
लगा जिससे पृथ्वी पर वर्षों तक अनावृष्टि रही ! सभी देवता माँ पराम्बा की शरण में गए और माँ से पृथ्वी की सारी विपत्तियों के निदान का निवेदन किया कि,
माँ उस 'दुर्ग' नामक महादैत्य का वध करो ! देवताओं के स्तवन से माँ प्रसन्न होकर उस दुर्ग नामक महादैत्य के वध का संकल्प लिया और अपने शरीर से काली,
तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बागला, धूमावती, त्रिपुरसुंदरी और मातंगी नाम वाली दस महाविद्याओं को प्रकट किया और महादैत्य दुर्ग की
सौ अक्षौहिणी सेना नष्ट करके अपने त्रिशूल द्वारा उस दुर्ग नामक महादैत्य का विनाश कर देवताओ को भय मुक्त किया जिसने फलस्वरूप  इनका
नाम 'दुर्गा' पड़ा |तभी से उपरोक्त दस महाविद्याओं की साधना का पर्व 'गुप्त नवरात्र' के रूप में मनाया जाने लगा ! 28 जून से 07 जुलाई तक चलने वाले इस
नवरात्र में यदि आप स्नान ध्यान करके एकांत में शुद्ध आसन पर विराजते हुए केवल ॐ दुं दुर्गायै नमः मंत्र का जप करेंगें तो मंत्र के प्रभाव से आपकी समस्त
परेशानियाँ नष्ट हो जायेंगी ! पं जयगोविंद शास्त्री

शुक्रवार, 20 जून 2014

!! शिव के तांडव के बाद भी छाया रहेगा यात्रियों का उत्साह केदारनाथ यात्रा !!

मंगलवार, 17 जून 2014


 '12वर्षों बाद बृहस्पति पहुचे उच्चराशि में, बनाया 'परमहंस' योग'
अग्नि के अंशावतार देवगुरु बृहस्पति 12वर्षों बाद पुनः 19 जून को अपनी उच्चराशि कर्क में प्रवेश कर रहे हैं, गुरु एक सदी में लगभग आठ बार उच्चराशिगत
रहते हैं ! इसके पहले ये जुलाई 2002 से जुलाई 2003 के मध्य कर्कराशि की यात्रा पर थे, जब-जब गुरु कर्क राशि में गोचर करते हैं तब-तब 'परमहंस'
योग बनता है और जब ये अपनी स्वयं की राशि धनु एवं मीन में गोचर करते हैं तबतब 'हंस' योग का निर्माण होता है ! जिन जातकों की जन्मकुंडली में
गुरु कर्क राशि में होकर केन्द्र या त्रिकोण में होंगें उनके लिए इनका उच्चराशिगत होना श्रेष्ठतम फलदाई रहेगा उपरोक्त अंकित वर्षों के अनुसार आप स्वयं
की कुंडली में भी गुरु के राशि परिवर्तन के प्रभाव का मिलाप करसकते हैं !
वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति को सर्वाधिक शुभ एवं शीघ्र फलदाई ग्रह माना गया है शुक्ल यजुर्वेद में तो इन्हें आत्मा की शक्ति कहा गया है जो प्राणियों को
आत्मबोध की ज्योति प्राप्त कराकर अज्ञान के अन्धकार को दूर करते हुए जीव को सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते है वेदों में भी कहा गया है
कि, 'बृहस्पतिः प्रथमं जायमानो महो ज्योतिषः परमे व्योम्..अर्थात - बृहस्पति जो सबसे महान है अपनी स्थिति से आकाश के उच्चतम स्तर से
सभी दिशाओं से, सात किरणों से, अपनेकानेक जन्मों से, अपनी ध्वनि से हमें आच्छादन करने वाले अन्धकार को पूर्णतया दूर करते हैं ! सृजन में
प्रजापिता ब्रह्मा का सहयोगी होने के फलस्वरूप इन्हें 'जीव' भी कहा गया है ! सुंदर पीतवर्ण वाले गुरु अपने याचक को वांछित फल प्रदान कर उसे संपत्ति
तथा बुद्धि से संपन्न कर देते हैं ! पुनर्वसु, विशाखा एवं पूर्वाभाद्रपद नक्षत्रों के स्वामी गुरु मकर राशि में नीचराशिगत रहते हैं ! जन्मकुंडली में द्वितीय, पंचम,
नवम तथा एकादश भाव के कारक होते हैं !
शिक्षा और व्यापार में होगा भारी सुधार - इसवर्ष शिक्षा के अधिपति गुरु के उच्चराशिगत होने से शिक्षा के क्षेत्र सरकार द्वारा नई नई योजनाएं घोषित की
जो पूर्णतः कारगर सिद्ध होंगी आप कह सकते हैं कि यह वर्ष शिक्षा को समर्पित रहेगा ! इसी के साथ शेयर बाज़ार के टॉप फिफ्टी शेयर्स जैसे बैंक, बीमा
भारी उद्योग, फार्मा इंफ्रा आदि में सकारात्मक खरीदारी से बाज़ार भारी उछाल आएगा ! बृहस्पति का कर्क राशि में गोचर सभी राशियों के लिए कैसा रहेगा
इसका ज्योतिशीय विश्लेषण करते हैं !
मेष - मकान वाहन का सुख किन्तु माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें, कार्य व्यापार में उन्नति, स्थान परिवर्तन एवं विदेश यात्रा के योग !
बृषभ - साहस पराक्रम की वृद्धि-भाग्योन्नति किन्तु भाइयों में अहं का टकराव, धार्मिक एक मांगलिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेंगे, आर्थिक उन्नति !
मिथुन - यात्रा तीर्थाटन का लाभ, अधिक खर्च से उलझने बढेंगी किन्तु किसी बड़े समाचार से मन प्रसन्न होगा, रोजगार के अवसर उपलब्ध रहेंगे !
कर्क - वर्ष का बेहतरीन समय शिक्षा प्रतियोगिता में सफलता, मंजिल तक आसानी से पहुचेंगे, नौकरी में पदोन्नति एवं पुरस्कार प्राप्ति !
सिंह - अधिक खर्च से परिवार में तनाव रहेगा, किन्तु आपके द्वारा लिए गए निर्णय एवं कार्यों की सराहना होगी, मातापिता के स्वास्थय का रखें
कन्या - आय के साधन बढेंगे, शिक्षा एवं संतान संबंधी चिंता दूर होगी, परिश्रम का पूर्ण फल एवं उच्चाधिकारियों से सहयोग मिलेगा!
तुला - मान-सम्मान में वृद्धि, विद्यार्थी वर्ग के लिए यह परिवर्तन वरदान की तरह, निर्णय लेने में शीघ्रता दिखाएँ, कर्ज से मुक्ति मिलेगी !
बृश्चिक - आकस्मिक बड़े अनुबंध प्राप्ति के अवसर, शासन सत्ता का भरपूर सहयोग, विद्यार्थी वर्ग को भी मिलेगी शिक्षा-प्रतियोगिता में बड़ी सफलता !
धनु - नए प्रेमप्रसंग से हो सकती है बदनामी, स्थान परिवर्तन के योग, उच्च अधिकारियों से मधुर सम्बन्ध बनाएँ, यात्रा सावधानी पूर्वक करें !
मकर - शादी विवाह की वार्ता सफल रहेगी, व्यापार में उन्नति, आपके द्वारा किये गए कार्यों की सराहना होगी, विद्यार्थियों के लिए सफलतादायक वर्ष !
कुंभ - गुप्त शत्रुओं से बचें, कोर्टकचहरी के मामले बाहर ही निपटा लें तो बेहतर रहेगा, यात्रा के समय सामान चोरी होने से बचाएं, नई नौकरी मिलने के योग !
मीन - संतान तथा शिक्षा संबंधी चिंता दूर होगी, आयके साधन बढेंगें नए अनुबंध के सुअवसर, सरकारी अथवा अदालती निर्णय आपके पक्ष में आयेंगें !
बृहस्पति को अधिक प्रसन्न करने उपाय - गुरुवार का व्रत करें. पीले वस्त्र धारण करें, गौओं की सेवा करें झूँठ कम से कम बोलें, आम, पीपल, अनार का
वृक्ष लगाएं प्रतिदिन ॐ बृं बृहस्पतये नमः मन्त्र का ११ बार जप करें ! --- पं जयगोविंद शास्त्री

शनिवार, 14 जून 2014


अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् |
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ||

जो मनुष्य अन्तकाल में मुझ को ही स्मरण करता हुआ
शरीर को छोडकर जाता है, वह मेरे साक्षात् स्वरुप को
प्राप्त होता है इसमें कुछ भी संशय नहीं है |

शुक्रवार, 6 जून 2014


                 'त्रिबिध तापों से मुक्ति देने वाली निर्जला एकादशी 09 जून को'
चौबीस एकादशियों में श्रेष्ठ एवं अक्षुणफल प्रदान करने वाली भीमसेनी एकादशी 09 जून सोमवार को है, ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष की इस एकादशी
को 'अपरा' और 'निर्जला' एकादशी नामों से भी जाना जाता है | पद्म पुराण के अनुसार इस एकादशी को निर्जल व्रत रखते हुए परमेश्वर विष्णु की
भक्तिभाव से पूजा-आराधना करने से प्राणी समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को प्राप्त होता है श्रीश्वेतवाराह कल्प के आरंभ में देवर्षि
नारद की 'श्रीविष्णु' भक्ति देख ब्रह्मा जी बहुत प्रसन्न हुए | नारद ने आग्रह किया कि हे ! परम पिता मुझे ऐसा कोई मार्ग बतायें जिससे मै
श्री विष्णुके चरणकमलों में स्थान पा सकूं ! पुत्र नारद का नारायण प्रेम देख ब्रह्मा जी श्रीविष्णु की प्रिया 'अपरा' की तिथि,'एकादशी' को निर्जल
व्रत करने का सुझाव दिया, नारद जी प्रसन्नचित्त होकर एक हजार वर्षतक 'निर्जल' रहकर यह कठोर व्रत किया !
कुछ वर्षों बाद तपस्या के मध्य ही उन्हें अपने चारों तरफ उन्हें नारायण ही नारायण दिखने लगे, परमेश्वर की इस माया से वै भ्रम में पड़ गए कि
कहीं यही विष्णुलोक तो नहीं तभी उन्हें भगवान श्रीविष्णु का दर्शन हुआ, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर नारायण ने उन्हें अपनी निश्छल भक्ति
का वरदान देते हुए अपने श्रेष्ठ भक्तों में स्थान दिया ! तभी से इस निर्जल व्रत का प्रचलन आरम्भ हुआ ! एकादशी स्वयं विष्णु प्रिया है इसलिए
इसदिन जप-तप पूजा पाठ करने से प्राणी श्रीविष्णु का सानिध्य प्राप्त कर जीवन-मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है ! इस व्रत को देव 'व्रत'
भी कहा जाता है क्योंकि सभी देवता, दानव, नाग, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, नवग्रह आदि अपनी रक्षा और श्रीविष्णु की कृपा पाने के लिए एकादशी
का व्रत रखते हैं पौराणिक मान्यता है कि एकादशी में ब्रह्महत्या सहित समस्त पापों को शमन करने की शक्ति होती है ! इसदिन किसी भी तरह
का पापकर्म करने से बचने का प्रयास करें ही साथ ही मासं, मदिरा, तथा अन्य तामसी पादार्थों के सेवन से भी बचना चाहिए !
वैवस्वत मन्वंतर के अट्ठाईसवें द्वापर में भगवान शिव के अंशावतार महर्षि व्यास ने इस निर्जला एकादशी के व्रत के महत्व को पांडवों को बताया था,
इस कथा के पीछे भी एक घटना है-कि जब सर्वज्ञ वेदव्यास पांडवों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली
भीम ने पूछा कि देव ! मेरे पेट में 'वृक' नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है।
तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊँगा ? महर्षि व्यास ने कहा, नहीं वत्स ! तुम ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष
की निर्जला नाम की एकादशी का व्रत करो तो तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों काफल प्राप्त होगा। और तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त
कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे। इस सलाह पर भीम भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। तभी से वर्ष भर की चौबीस एकादशियों का
पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में भीमसेनी एकादशी नाम दिया गया गया ! इस दिन जो प्राणी स्वयं निर्जल रहकर
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का जप करता है वह जन्म जन्मांतर के पापों से छुटकारा पाते हुए गोलोक वासी होता है ! पं जयगोविन्द शास्त्री

मंगलवार, 3 जून 2014


गंगे तव दर्शनात मुक्तिः...........
विष्णुपदी माँ गंगा का प्राकट्य पर्व गंगा दशहरा ८ जून रबिवार को है सूर्यवंशी महाराजा भागीरथ का अपने पितामहों का उद्धार करने का संकल्प
लेकर हिमालय पर्वत पर घोर तपस्या करके गंगा माँ प्रसन्न किया, जिसके फलस्वरूप ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र, बृषभ राशिगत सूर्य
एवं कन्या राशिगत चन्द्र की यात्रा के मध्य गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण हुआ ! इनकी महिमा का गुणगान करते हुए भगवान
महादेव श्रीविष्णु से कहते हैं कि हे हरे ! ब्राहमण की शापाग्नि से दग्ध होकर भारी दुर्गति में पड़े हुए जीवों को गंगा के शिवा दूसरा कौन
स्वर्गलोक में पहुँचा सकता है क्योंकि गंगा शुद्ध, विद्यास्वरूपा, इच्छा ज्ञान एवं क्रियारूप, दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों तापों को शमन करने
वाली, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को देने वाली शक्ति स्वरूपा हैं, इसीलिए इन आनंदमयी, शुद्ध धर्मस्वरूपिणी, जगत्धात्री,
 ब्रह्मस्वरूपिणी अखिल विश्व कि रक्षा करने वाली गंगा को मै अपने मस्तक पर धारण करता हूँ ! कलयुग में काम, क्रोध, मद, लोभ, मत्सर,
इर्ष्यादि अनेकानेक विकारों का समूल नाश करने में गंगा के सामान कोई और नही है ! विधिहीन, धर्महीन आचरणहीन, मनुष्यों को भी गंगा का
सानिध्य मिलजाय तो वह मोह एवं अज्ञान के भव सागर से पार हो जाता है, इसदिन ''ॐ नमः शिवाय नारायन्यै दशहरायै गंगायै स्वाहा'' मन्त्रों के
द्वारा गंगा का पूजन करने से जीव को मृत्युलोक में बार-बार भटकना नहीं पड़ता ! गंगा दशहरा को लेकर शास्त्रों कई ज्योतिषीययोग ग्रहयोग
बताएं गए हैं जिनमे जब गंगा दर्शन, स्नान, पूजन दान, जप, तपादि अति शुभ हो जाता है ! बहुत से विद्वानों का मत है कि निष्कपट भाव से
इनके दर्शन करने मात्र से जीव को कष्ट से मुक्ति मिल जाती है इसवर्ष इसदिन हस्त नक्षत्र होने के परिणामस्वरूप गंगा स्नान अति पुण्यदाई
रहेगा ! पं जयगोविंद शास्त्री

शनिवार, 31 मई 2014


प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी  की सरकार
  एनडीए के शपथ ग्रहण के लिए मारकेश की सूक्ष्मदशा तक समाप्त होने की हुई प्रतीक्षा !
स्वतंत्र भारत के इतिहास में शायद यह पहला कालखण्ड है जब किसी पार्टी के सदस्यों ने चुनाव के लिए पर्चा भरने से लेकर सरकार के गठन
तक सूक्ष्म से सूक्ष्म मुहूर्तों को ध्यान में रखकर शपथ ली हो ! यहाँतक कि श्री नरेंद्र मोदी जी के शपथ ग्रहण मुहूर्त तुला लग्न, के लिए मारकेश
मंगल की सूक्ष्मदशा तक समाप्त होने की प्रतीक्षा की गई जो शायं 06 बजकर 09 मिनट पर समाप्त हुई ! जनता की उम्मीदों पर कितनी खरी
उतरेगी मोदी सरकार, कैसा रहेगा इस सरकार का भविष्य..? इसका ज्योतिषीय विश्लेषण करते हैं !
मोदी सरकार का शपथ ग्रहण ज्येष्ठ कृष्णपक्ष त्रयोदशी सोमवार को भरणी नक्षत्र, शोभन योग, तुला लग्न और मेष राशि के चन्द्र की
यात्रा के मध्य शायं 06 बजकर 12 मिनट पर हुआ ! तुला लग्न की एनडीए सरकार की कुंडली में लग्न में ही शनि और राहू बैठे हैं जिनके
द्वारा निर्मित पंचमहापुरुष योगों में प्रधान 'शशक' एवं चक्रवर्ती योग, राहू द्वारा निर्मित महान कुटनितिज्ञ और कुशल सेनापति योग बना है
इस लग्न पर लग्न के स्वामी शुक्र की पूर्ण दृष्टि है साथ ही केतु, चन्द्रमा और गुरु की पूर्ण दृष्टी भी है जो सरकार के काम-काज एवं निर्णय
लेने में मजबूती लाएगी ! सप्तम भाव में चन्द्र, केतु, शुक्र एवं अष्टमभाव में सूर्य बैठे हैं जबकि बुध-गुरु नवम भाग्यभाव तथा मंगल द्वादश
हानिभाव में बैठे हैं ! कुंडली पर गौर करे तो केंद्र और त्रिकोण में सात ग्रह बैठे है, जो सरकार को पूरी मजबूती देने के लिए प्रतिबद्ध हैं
केवल सूर्य और मंगल ही केंद्र-त्रिकोण से बाहर है ! इसलिए लग्न में ही जनता के कारक उच्चराशिगत शनिदेव का बैठना साथ ही उनके साथ राहू की
युति सरकार के लिए निर्णय लेने जनप्रिय सरकार बनाने की दृष्टि से  वरदान सिद्ध होगी इन दोनों ग्रहों के शुभ प्रभाव स्वरुप सरकार जनहित में कई
कठोर फैसले लेगी जिसके दूरगामी परिणाम अति सकारात्मक रहेंगें शनिदेव मृत्युलोक के दंडाधिकारी भी है इसलिए न्यायालय संबंधी मामलों का भी
कठोरता से पालन करते हुए भ्रष्टाचारियों पर कड़ी कार्रवाई होगी ! यही ग्रह स्थिति सरकार का सबसे मजबूत पक्ष भी है !
लग्न के अतिरिक्त इस कुंडली का भाग्य भाव भी अति बलवान है ! भाग्येश बुध का अपनी ही राशि मिथुन में बैठना साथ ही पराक्रमभाव के स्वामी
बृहस्पति के साथ बुध की युति हमारी विदेश निति को मजबूत तो करेगा ही साथ ही व्यापार की दृष्टि से आयात-निर्यात के सेक्टर्स का लिए अति
लाभकारी सिद्ध होगा ! कुंडली के सप्तम भाव में लग्नेश शुक्र और कर्म भाव के स्वामी चन्द्रमा की केतु के साथ युति, उस पर भी शनि, राहू और मंगल
की पूर्ण दृष्टि के फलस्वरूप सरकार परिवहन, विज्ञान एवं टेक्नोलोजी के क्षेत्र में सफलता के नए आयाम कायम करेगी !
वर्तमान समय में मोदी सरकार पर शुक्र की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा 08 अप्रैल 2016 तक चलेगी ! सरकार के लिए ये लगभग 23 महीने अति
महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे ! इसी दशा के मध्य सरकार का आगे का भविष्य भी छुपा हुआ है ! उसके बाद 08 अप्रैल तक 2017तक
सूर्य, 08 दिसम्बर 2018 तक चन्द्रमा की अंतर्दशा चलेगी ! इस सरकार की कुंडली में सबसे बड़ा चौकाने वाला एक पहलू और भी है कि जब इस
देश में सत्रहवीं लोकसभा चुनाव '2019' की तैयारी हो रही होगी तो उस समय इस सरकार पर मारकेश मंगल की अंतर दशा 8दिसंबर 2018 से आरम्भ हो
चुकी होगी, अतः इस सरकार के कार्यकाल के अंतिम 3/4 महीने मान-सम्मान के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकते है ! अतः सरकार को कदम कदम पर
सावधान रहना होगा !   पं जयगोविंद शास्त्री