मंगलवार को इंडिगो एयरलाईन द्वारा दिल्ली से लखनऊ की यात्रा के मध्य सपा अध्यक्ष आदरणीय श्रीमुलायम सिंह यादव जी के साथ मुलाक़ात/वार्ता अविस्मरणीय रही | उनकी शालीनता-सादगी बेमिशाल थी, उन्होंने मुझसे पूछा कि आजकल अमरउजाला' में लिखना बंद क्यों कर दिया ! मैं तो अवाक़ रह गया और अपनी व्यस्तता का हवाला देकर कहा कि नेता जी मैं शीघ्र ही लिखना आरम्भ करूँगा |
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शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016
सोमवार, 3 अक्टूबर 2016
अच्छे विद्यार्थी बनने के लिए करें माँ ब्रह्मचारिणी का स्तवन- पं जयगोविन्द शास्त्री
ब्रह्मं चारयितुम शीलं यस्याः सा ब्रह्मचारिणी
अर्थात- जो ब्रह्मज्ञान दिलाकर मोक्ष मार्ग को प्रसस्त करे वे ही माँ ब्रह्म चारिणी हैं | माँ शक्ति का दूसरा रूप देवी ब्रह्म चारिणी का है जिस प्रकार नवधा भक्ति में परमेश्वर प्राप्ति के नौ मार्ग बताये गए हैं उसी प्रकार देवी सती भी नौ रूपों के द्वारा अलग-अलग तप करके परमेश्वर श्री शिव को प्राप्त किया | तभी इन नौ दुर्गाओं को नवधा भक्ति का सूक्ष्म तत्व भी कहा जाता है ये वही माँ हैं जो भक्तों को मोहजाल से मुक्ति दिलाती हैं |नवरात्र के दूसरे दिन इन्हीं माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-आराधना की जाती है | साधक इस दिन अपने मन को माँ के श्रीचरणों मे एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और माँ की कृपा प्राप्त करते हैं | ऋषि मुनियों ने कहा है कि 'वेदस्तत्वंतपो ब्रह्म, वेदतत्व और ताप का अर्थ है ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है, इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमण्डल रहता है | श्रद्धालु भक्त व साधक अनेक प्रकार से भगवती की अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए व्रत-अनुष्ठान व साधना करते हैं | अपनी कुंडलिनी जागृत करने के लिए साधक इस दिन स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं |माँ का ध्यान मंत्र इस प्रकार है- 'दधाना कपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू | देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||
पूजन विधि -
माँ मूलरूप से तपस्विनी हैं भगवान् शिव को पति रूप में पाने के लिए इन्होंने हजारों वर्ष तक घोर तपस्या की और जंगल के फलों-पत्तों को खाकर अपनी साधना पूर्ण की और शिव को प्राप्त किया इसलिए इनका का स्वरूप बहुत ही सादा और भव्य है | मात्र एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में चन्दन माला लिए हुए प्रसन्न मुद्रा में भक्तों को आशीर्वाद दे रही हैं। अन्य देवियों की तुलना में वह अतिसौम्य क्रोध रहित और तुरन्त वरदान देने वाली देवी हैं | नवरात्र के दूसरे दिन शाम के समय देवी के मंडपों में ब्रह्मचारिणी दुर्गा का स्वरूप बनाकर उसे सफेद वस्त्र पहनाकर हाथ में कमंडल और चंदन माला देने के बाद फल, फूल एवं धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करके आरती करने का विधान है | इनकी आराधना में ॐ या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: || इस सबसे सरल मंत्र के द्वारा पूजा के लिए लाये गए पदार्थों को अर्पित करना चाहिए |लाभ- इनकी आराधना से घर में सौम्य लक्ष्मी का वास रहता है दरिद्रता दरवाजे से वापस चली जाती है | विद्यार्थियों के लिए इनकी आराधना करना अति लाभप्रद रहता है उन्हें किसी भी तरह की शिक्षा प्रतियोगिता में सफलता और गृहस्थों के लिए सदैव सुख शान्ति बनी रहती है | पं जयगोविन्द शास्त्री
ब्रह्मं चारयितुम शीलं यस्याः सा ब्रह्मचारिणी
अर्थात- जो ब्रह्मज्ञान दिलाकर मोक्ष मार्ग को प्रसस्त करे वे ही माँ ब्रह्म चारिणी हैं | माँ शक्ति का दूसरा रूप देवी ब्रह्म चारिणी का है जिस प्रकार नवधा भक्ति में परमेश्वर प्राप्ति के नौ मार्ग बताये गए हैं उसी प्रकार देवी सती भी नौ रूपों के द्वारा अलग-अलग तप करके परमेश्वर श्री शिव को प्राप्त किया | तभी इन नौ दुर्गाओं को नवधा भक्ति का सूक्ष्म तत्व भी कहा जाता है ये वही माँ हैं जो भक्तों को मोहजाल से मुक्ति दिलाती हैं |नवरात्र के दूसरे दिन इन्हीं माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-आराधना की जाती है | साधक इस दिन अपने मन को माँ के श्रीचरणों मे एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और माँ की कृपा प्राप्त करते हैं | ऋषि मुनियों ने कहा है कि 'वेदस्तत्वंतपो ब्रह्म, वेदतत्व और ताप का अर्थ है ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है, इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमण्डल रहता है | श्रद्धालु भक्त व साधक अनेक प्रकार से भगवती की अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए व्रत-अनुष्ठान व साधना करते हैं | अपनी कुंडलिनी जागृत करने के लिए साधक इस दिन स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं |माँ का ध्यान मंत्र इस प्रकार है- 'दधाना कपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू | देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||
पूजन विधि -
माँ मूलरूप से तपस्विनी हैं भगवान् शिव को पति रूप में पाने के लिए इन्होंने हजारों वर्ष तक घोर तपस्या की और जंगल के फलों-पत्तों को खाकर अपनी साधना पूर्ण की और शिव को प्राप्त किया इसलिए इनका का स्वरूप बहुत ही सादा और भव्य है | मात्र एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में चन्दन माला लिए हुए प्रसन्न मुद्रा में भक्तों को आशीर्वाद दे रही हैं। अन्य देवियों की तुलना में वह अतिसौम्य क्रोध रहित और तुरन्त वरदान देने वाली देवी हैं | नवरात्र के दूसरे दिन शाम के समय देवी के मंडपों में ब्रह्मचारिणी दुर्गा का स्वरूप बनाकर उसे सफेद वस्त्र पहनाकर हाथ में कमंडल और चंदन माला देने के बाद फल, फूल एवं धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करके आरती करने का विधान है | इनकी आराधना में ॐ या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: || इस सबसे सरल मंत्र के द्वारा पूजा के लिए लाये गए पदार्थों को अर्पित करना चाहिए |लाभ- इनकी आराधना से घर में सौम्य लक्ष्मी का वास रहता है दरिद्रता दरवाजे से वापस चली जाती है | विद्यार्थियों के लिए इनकी आराधना करना अति लाभप्रद रहता है उन्हें किसी भी तरह की शिक्षा प्रतियोगिता में सफलता और गृहस्थों के लिए सदैव सुख शान्ति बनी रहती है | पं जयगोविन्द शास्त्री
शनिवार, 1 अक्टूबर 2016
माँ शैलपुत्री का आशीर्वाद लायेगा परिवार में खुशहाली- पं जयगोविन्द शास्त्री
शारदीय नवरात्र में नौदुर्गा पूजन के क्रम में प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा आराधना की जाती है | इन्हीं की आराधना से हम सभी मनोवांछित फल
प्राप्त कर सकते हैं | पर्वतराज हिमालय के यहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा था | माँ का वाहन
वृषभ, दाहिने हाथ में त्रिशूल, और बायें हाथ में कमल सुशोभित है | अपने पूर्व जन्म में ये सती नाम से प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं
इनका विवाह भगवान शिव से हुआ था | प्रजापति दक्ष अपने जमाईराज को पसंद नहीं करते थे जिसके कारण एकबार यज्ञ करने के अवसर पर उन्होंने
अपने दामाद शिव को यज्ञ में सम्लित होने के लिए निमंत्रण नहीं दिया जिसके परिणाम स्वरूप उनकी पत्नी सती ने बिना बुलाये ही पिता से प्रश्न करने के
लिए यज्ञ में सम्लित होने गईं वहाँ अपने पति भगवान शिव के विषय में अशोभनीय बातें सुनकर अपने शरीर को योगाग्नि में भस्म कर दिया |
और अगले जन्म में हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं | इस जन्म में भी शैलपुत्री देवी शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं |
नव दुर्गाओं में माँ शैलपुत्री का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त हैं ये सहजभाव से भी पूजन करने पर मनोवांछित फल प्रदान करती हैं |
इस दिन उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं | यहीं से उनकी योगसाधना का आरम्भ होता है तभी माँ के इसी स्वरूप का आज के दिन
ध्यान-पूजन किया जाता है | माँ की आराधना करने के लिए इन मन्त्रों के द्वारा ध्यान करें |
ध्यान-
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृत शेखराम् | वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्वनीम् ||
पूर्णेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम् ||
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥
अर्थात- माँ वृषभ पर विराजित हैं | इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल है, और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है | यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं |
इन्ही के पूजन के साथ नवरात्र का शुभारंभ होता है इनकी पूजा में लाल पुष्प, का प्रयोग उत्तम रहेगा
गृहस्थों के लिए माँ शैलपुत्री की पूजा बिधि-
नवरात्र के प्रथम दिन सुबह स्नान-ध्यान करके माता दुर्गा, भगवान् गणेश नवग्रह कुबेरादि की मूर्ति के साथ-साथ कलश स्थापन करें |
कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक आदि लिख दें | कलश स्थापन के समय अपने पूजा गृह में पूर्व के कोण की तरफ अथवा
घर के आँगन से पोर्वोत्तर भाग में पृथ्वी पर सात प्रकार के अनाज रखें, संभव हो तो नदी की रेत रखें फिर जौ भी डाले इसके उपरांत कलश में जल
गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, मोली, चन्दन, अक्षत, हल्दी, रुपया पुष्पादि डालें फिर ॐ भूम्यै नमः कहते हुए कलश को सात अनाजों सहित
रेत के ऊपर स्थापित करें, अब कलश में थोडा और जल-गंगाजल डालते हुए ॐ वरुणाय नमः कहें और जल से भर दें इसके बाद आम का पल्लव या
पीपल, बरगद, गूलर अथवा पाकर में से किसी भी वृक्ष का पल्लव कलश के ऊपर रखें तत्पश्च्यात जौ अथवा कच्चा चावल कटोरे मे भरकर कलश के ऊपर
रखें और अब उसके ऊपर चुन्नी से लिपटा हुआ नारियल रखें | हाथ में हल्दी, अक्षत पुष्प लेकर इच्छित संकल्प लें
पश्च्यात इस मंत्र से दीप पूजन करें | ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्र जनार्दनः ! दीपो हरतु में पापं पूजा दीप नमोस्तु ते | यह मंत्र पढ़ें !
माँ की आराधना के समय नवार्ण मंत्र ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ! से सभी पूजन सामग्री अर्पण कर सकते हैं इस प्रक्रार माँ की कृपा से आपके घर
में दुःख-दारिद्र्य कलह,और निर्धनता का प्रवेश कभी नही होगा | पं जयगोविन्द शास्त्री
शारदीय नवरात्र में नौदुर्गा पूजन के क्रम में प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा आराधना की जाती है | इन्हीं की आराधना से हम सभी मनोवांछित फल
प्राप्त कर सकते हैं | पर्वतराज हिमालय के यहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा था | माँ का वाहन
वृषभ, दाहिने हाथ में त्रिशूल, और बायें हाथ में कमल सुशोभित है | अपने पूर्व जन्म में ये सती नाम से प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं
इनका विवाह भगवान शिव से हुआ था | प्रजापति दक्ष अपने जमाईराज को पसंद नहीं करते थे जिसके कारण एकबार यज्ञ करने के अवसर पर उन्होंने
अपने दामाद शिव को यज्ञ में सम्लित होने के लिए निमंत्रण नहीं दिया जिसके परिणाम स्वरूप उनकी पत्नी सती ने बिना बुलाये ही पिता से प्रश्न करने के
लिए यज्ञ में सम्लित होने गईं वहाँ अपने पति भगवान शिव के विषय में अशोभनीय बातें सुनकर अपने शरीर को योगाग्नि में भस्म कर दिया |
और अगले जन्म में हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं | इस जन्म में भी शैलपुत्री देवी शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं |
नव दुर्गाओं में माँ शैलपुत्री का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त हैं ये सहजभाव से भी पूजन करने पर मनोवांछित फल प्रदान करती हैं |
इस दिन उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं | यहीं से उनकी योगसाधना का आरम्भ होता है तभी माँ के इसी स्वरूप का आज के दिन
ध्यान-पूजन किया जाता है | माँ की आराधना करने के लिए इन मन्त्रों के द्वारा ध्यान करें |
ध्यान-
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृत शेखराम् | वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्वनीम् ||
पूर्णेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम् ||
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥
अर्थात- माँ वृषभ पर विराजित हैं | इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल है, और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है | यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं |
इन्ही के पूजन के साथ नवरात्र का शुभारंभ होता है इनकी पूजा में लाल पुष्प, का प्रयोग उत्तम रहेगा
गृहस्थों के लिए माँ शैलपुत्री की पूजा बिधि-
नवरात्र के प्रथम दिन सुबह स्नान-ध्यान करके माता दुर्गा, भगवान् गणेश नवग्रह कुबेरादि की मूर्ति के साथ-साथ कलश स्थापन करें |
कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक आदि लिख दें | कलश स्थापन के समय अपने पूजा गृह में पूर्व के कोण की तरफ अथवा
घर के आँगन से पोर्वोत्तर भाग में पृथ्वी पर सात प्रकार के अनाज रखें, संभव हो तो नदी की रेत रखें फिर जौ भी डाले इसके उपरांत कलश में जल
गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, मोली, चन्दन, अक्षत, हल्दी, रुपया पुष्पादि डालें फिर ॐ भूम्यै नमः कहते हुए कलश को सात अनाजों सहित
रेत के ऊपर स्थापित करें, अब कलश में थोडा और जल-गंगाजल डालते हुए ॐ वरुणाय नमः कहें और जल से भर दें इसके बाद आम का पल्लव या
पीपल, बरगद, गूलर अथवा पाकर में से किसी भी वृक्ष का पल्लव कलश के ऊपर रखें तत्पश्च्यात जौ अथवा कच्चा चावल कटोरे मे भरकर कलश के ऊपर
रखें और अब उसके ऊपर चुन्नी से लिपटा हुआ नारियल रखें | हाथ में हल्दी, अक्षत पुष्प लेकर इच्छित संकल्प लें
पश्च्यात इस मंत्र से दीप पूजन करें | ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्र जनार्दनः ! दीपो हरतु में पापं पूजा दीप नमोस्तु ते | यह मंत्र पढ़ें !
माँ की आराधना के समय नवार्ण मंत्र ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ! से सभी पूजन सामग्री अर्पण कर सकते हैं इस प्रक्रार माँ की कृपा से आपके घर
में दुःख-दारिद्र्य कलह,और निर्धनता का प्रवेश कभी नही होगा | पं जयगोविन्द शास्त्री
शनिवार, 30 जुलाई 2016
शिवकृपा प्राप्ति का मुख्य पर्व 'श्रावण शिवरात्रि' सोमवार को PT JAIGOVIND SHASTRI ASTROLOGER
यूँ तो सनातन धर्म में सृष्टि संहार के स्वामी श्रीरूद्र की उपासना के लिए श्रावण माह को सर्वाधिक पुण्यफलदाई माना गया है, किन्तु इसवर्ष पड़ने वाली 'श्रावण शिवरात्रि' को सोमवार दिन भी है इसलिए यह 'अमृतयोग' तुल्य शुभमुहूर्तयोग बन गया है ऐसे में प्राणियों को इस दिन शिवोपासना अथवा रुद्राभिषेक का कोई भी सुअवसर खोना नहीं चाहिए | सम्पूर्ण श्रावणमाह में शिव-शक्ति पृथ्वी पर ही निवास करते हैं अतः सभी देव-दनुज, नाग, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, शिवगण, शिव भक्त आदि 'शिवः अभिषेक प्रियः, श्रावणे पूजयेत शिवम्' आदि-आदि सूक्तिओं के संकेत से भगवान् रूद्र की आराधना एवं अभिषेक करते हैं | इस माह के आरम्भ होते ही शिवभक्त कांवडि़ये हरिद्वार, ऋषिकेश और गोमुख से गंगाजल भरकर कांवड़ उठाये अपने-अपने घर को लौटते हैं | मार्ग में इन शिवभक्तों द्वारा ॐ नमः शिवाय, बोल बं, 'बम-बम भोले' आदि के उद्घोष से पूरा वातावरण शिवमय हो जाता है | वेदों के अनुसार 'मुमुक्षुः तीर्थ वारिणाः' | शिवरात्रि के दिन किसी भी तीर्थजल, समुद्र्जल, गंगाजल से अभिषेक शिव को अतिशय प्रिय है, किन्तु गंगाजल के द्वारा भगवान शंकर का अभिषेक सर्वोत्तम माना गया है | ऋषियों का कहना है कि 'भावी मेट सकहिं त्रिपुरारी | अर्थात- ब्रह्मा जी द्वा
रा प्राणियों के भाग्य में लिखा गया त्रिबिध दुःख भी भगवान् शिव ही समाप्त कर सकते हैं | जो श्रद्धालु मंदिर नहीं जा पाते हैं, वे घर में ही रखे शिव परिवार का अभिषेक कर सकते हैं सभी गृहस्थ शिवभक्तों को इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि घर में दो शिवलिंग न हों और अभिषेक करने के समय शिव परिवार के सभी सदस्य, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी एवं आभूषण नागदेवता सभी शिवलिंग के चारों ओर विराजमान रहें | वैरागियों, साधुसंतों, बालब्रह्मचारियों, घर-पारिवार से मुक्त शिवभक्तों के लिए ऐसा करना अनिवार्य नहीं है, वै केवल शिवलिंग की ही पूजा करते हैं, उनके लिए कहागया है कि 'शिवलिंगेपि सर्वेषां देवानां पूजनं भवेत' अर्थात शिवलिंग पर ही सभी देवों का भी अभिषेक करें | शुक्ल यजुर्वेद में विभिन्न द्रव्यों से भगवान शिव का अभिषेक करने का फल बताया गया है | गन्ने के रस से शीघ्र विवाह श्री एवं धन प्राप्ति, शहद कर्जमुक्ति एवं पूर्ण पति का सुख, दही से पशुधन की वृद्धि, कुश एवं जल से आरोग्य शरीर, मिश्री एवं दूध से उत्तम विद्या प्राप्ति, कच्चे दूध से पुत्र सुख, और गाय के घी द्वारा रुद्राभिषेक करने पर सर्वकामना पूर्ण होती है | भगवान रूद्र को भस्म, लाल चंदन, रुद्राक्ष, आक का फूल, धतूरा फल, बिल्व पत्र और भांग विशेष रूप से प्रिय हैं अतः इन्ही पदार्थों से आगामी श्रावण शिवरात्रि सोमवार 1अगस्त को शिवपूजन करें | पं जयगोविन्द शास्त्री
यूँ तो सनातन धर्म में सृष्टि संहार के स्वामी श्रीरूद्र की उपासना के लिए श्रावण माह को सर्वाधिक पुण्यफलदाई माना गया है, किन्तु इसवर्ष पड़ने वाली 'श्रावण शिवरात्रि' को सोमवार दिन भी है इसलिए यह 'अमृतयोग' तुल्य शुभमुहूर्तयोग बन गया है ऐसे में प्राणियों को इस दिन शिवोपासना अथवा रुद्राभिषेक का कोई भी सुअवसर खोना नहीं चाहिए | सम्पूर्ण श्रावणमाह में शिव-शक्ति पृथ्वी पर ही निवास करते हैं अतः सभी देव-दनुज, नाग, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, शिवगण, शिव भक्त आदि 'शिवः अभिषेक प्रियः, श्रावणे पूजयेत शिवम्' आदि-आदि सूक्तिओं के संकेत से भगवान् रूद्र की आराधना एवं अभिषेक करते हैं | इस माह के आरम्भ होते ही शिवभक्त कांवडि़ये हरिद्वार, ऋषिकेश और गोमुख से गंगाजल भरकर कांवड़ उठाये अपने-अपने घर को लौटते हैं | मार्ग में इन शिवभक्तों द्वारा ॐ नमः शिवाय, बोल बं, 'बम-बम भोले' आदि के उद्घोष से पूरा वातावरण शिवमय हो जाता है | वेदों के अनुसार 'मुमुक्षुः तीर्थ वारिणाः' | शिवरात्रि के दिन किसी भी तीर्थजल, समुद्र्जल, गंगाजल से अभिषेक शिव को अतिशय प्रिय है, किन्तु गंगाजल के द्वारा भगवान शंकर का अभिषेक सर्वोत्तम माना गया है | ऋषियों का कहना है कि 'भावी मेट सकहिं त्रिपुरारी | अर्थात- ब्रह्मा जी द्वा
रा प्राणियों के भाग्य में लिखा गया त्रिबिध दुःख भी भगवान् शिव ही समाप्त कर सकते हैं | जो श्रद्धालु मंदिर नहीं जा पाते हैं, वे घर में ही रखे शिव परिवार का अभिषेक कर सकते हैं सभी गृहस्थ शिवभक्तों को इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि घर में दो शिवलिंग न हों और अभिषेक करने के समय शिव परिवार के सभी सदस्य, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी एवं आभूषण नागदेवता सभी शिवलिंग के चारों ओर विराजमान रहें | वैरागियों, साधुसंतों, बालब्रह्मचारियों, घर-पारिवार से मुक्त शिवभक्तों के लिए ऐसा करना अनिवार्य नहीं है, वै केवल शिवलिंग की ही पूजा करते हैं, उनके लिए कहागया है कि 'शिवलिंगेपि सर्वेषां देवानां पूजनं भवेत' अर्थात शिवलिंग पर ही सभी देवों का भी अभिषेक करें | शुक्ल यजुर्वेद में विभिन्न द्रव्यों से भगवान शिव का अभिषेक करने का फल बताया गया है | गन्ने के रस से शीघ्र विवाह श्री एवं धन प्राप्ति, शहद कर्जमुक्ति एवं पूर्ण पति का सुख, दही से पशुधन की वृद्धि, कुश एवं जल से आरोग्य शरीर, मिश्री एवं दूध से उत्तम विद्या प्राप्ति, कच्चे दूध से पुत्र सुख, और गाय के घी द्वारा रुद्राभिषेक करने पर सर्वकामना पूर्ण होती है | भगवान रूद्र को भस्म, लाल चंदन, रुद्राक्ष, आक का फूल, धतूरा फल, बिल्व पत्र और भांग विशेष रूप से प्रिय हैं अतः इन्ही पदार्थों से आगामी श्रावण शिवरात्रि सोमवार 1अगस्त को शिवपूजन करें | पं जयगोविन्द शास्त्री
रविवार, 10 जुलाई 2016
शनि स्तोत्र - पं जयगोविन्द शास्त्री
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीशनि स्तोत्र मंत्रस्य, कश्यप ऋषिः,
त्रिष्टुप् छन्दः, सौरिर्देवता, शं बीजम्, निः शक्तिः,
कृष्णवर्णेति कीलकम्, धर्मार्थ-काम-मोक्षात्मक-चतुर्विध
पुरुषार्थ-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः|
कर न्यासः-
शनैश्चराय अंगुष्ठाभ्यां नमः | मन्दगतये तर्जनीभ्यां नमः |
अधोक्षजाय मध्यमाभ्यां नमः | कृष्णांगाय अनामिकाभ्यां
नमः | शुष्कोदराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। छायात्मजाय
करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः |
हृदयादि-न्यासः-
शनैश्चराय हृदयाय नमः | मन्दगतये शिरसे स्वाहा |
अधोक्षजाय शिखायै वषट् | कृष्णांगाय कवचाय हुम् |
शुष्कोदराय नेत्र-त्रयाय वौषट् | छायात्मजाय अस्त्राय फट् |
दिग्बन्धनः- ''ॐ भूर्भुवः स्वः''........शनिदेव का ध्यान मंत्र-
नीलद्युतिं शूलधरं किरीटिनं गृध्रस्थितं त्रासकरं धनुर्धरम् |
चतुर्भुजं सूर्यसुतं प्रशान्तं वन्दे सदाभीष्टकरं वरेण्यम् ||
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च |
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ||
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च |
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ||
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै नम: |
नमो दीर्घायशुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तुते ||
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम: ||
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने ||
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तुते |
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ||
अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते |
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ||
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च |
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ||
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे |
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ||
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा: |
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ||
प्रसादं कुरु मे सौरे ! वरदो भव भास्करे |
एवं स्तुत: तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ||
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीशनि स्तोत्र मंत्रस्य, कश्यप ऋषिः,
त्रिष्टुप् छन्दः, सौरिर्देवता, शं बीजम्, निः शक्तिः,
कृष्णवर्णेति कीलकम्, धर्मार्थ-काम-मोक्षात्मक-चतुर्विध
पुरुषार्थ-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः|
कर न्यासः-
शनैश्चराय अंगुष्ठाभ्यां नमः | मन्दगतये तर्जनीभ्यां नमः |
अधोक्षजाय मध्यमाभ्यां नमः | कृष्णांगाय अनामिकाभ्यां
नमः | शुष्कोदराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। छायात्मजाय
करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः |
हृदयादि-न्यासः-
शनैश्चराय हृदयाय नमः | मन्दगतये शिरसे स्वाहा |
अधोक्षजाय शिखायै वषट् | कृष्णांगाय कवचाय हुम् |
शुष्कोदराय नेत्र-त्रयाय वौषट् | छायात्मजाय अस्त्राय फट् |
दिग्बन्धनः- ''ॐ भूर्भुवः स्वः''........शनिदेव का ध्यान मंत्र-
नीलद्युतिं शूलधरं किरीटिनं गृध्रस्थितं त्रासकरं धनुर्धरम् |
चतुर्भुजं सूर्यसुतं प्रशान्तं वन्दे सदाभीष्टकरं वरेण्यम् ||
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च |
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ||
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च |
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ||
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै नम: |
नमो दीर्घायशुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तुते ||
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम: ||
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने ||
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तुते |
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ||
अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते |
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ||
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च |
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ||
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे |
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ||
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा: |
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ||
प्रसादं कुरु मे सौरे ! वरदो भव भास्करे |
एवं स्तुत: तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ||
शुक्रवार, 8 जुलाई 2016
अमर उजाला समाचार पत्र के श्रद्धा पेज पर प्रकाशित आज का मेरा आलेख
सूर्य, बुध एवं शुक्र के एक साथ आने से बनेगा अद्भुद योग
ग्रह अनुकूल हों तो दीन दरिद्र को भी राजपाट दे देते हैं लेकिन प्रतिकूल हों तो राजा को भी रंक बना देते हैं इस तरह के अनेकों उदाहरण देखे भी गए हैं अतः ग्रहों के शुभाशुभ प्रभाव से कोई नहीं बच सका | कुछ इसी तरह के ग्रह संयोग इनदिनों बनने वाले हैं | वर्तमान में सूर्य, बुध और शुक्र एक साथ कर्क राशि में मिलने वाले हैं शुक्र पहले से ही कर्क राशि में हैं, बुध 11 जुलाई को और सूर्य 16 जुलाई को पहुचेंगें जिसके परिणाम स्वरूप 'त्रिग्रही' योग का निर्माण होगा जिसका भारतवर्ष और जनमानस प्रभाव कुछ इस तरह पड़ेगा |स्वतंत्र भारत की प्रभाव राशि कर्क है और पन्द्रह अगस्त सन् उन्नीस सौ सैतालीस मध्यरात्रि के समय जब भारतवर्ष को आज़ादी मिली तो उस समय भी कर्क राशि में ही सूर्य, बुध और शुक्र एक साथ विराजमान थे | इस अवधि में इन ग्रहों द्वारा निर्मित 'त्रिग्रही' योग देश की प्रगति के लिए अति उत्तम है क्योंकि वर्तमान संवतवर्ष के भी राजा शुक्र और मंत्री बुध ही हैं जिसके फलस्वरूप आने वाला समय देश और देश की जनता के लिए अति शुभ रहेगा |
वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की जन्मकुंडली में बिगत तीन महीने से बना हुआ अशुभ ग्रह गोचर भी समाप्त हो जाएगा | इनदिनों बनने वाले
योगों के प्रभाव से भारत सरकार के द्वारा लोकसभा में लाये गये बिल तो आसानी से पास होंगे ही बल्कि पन्द्रह अगस्त से पहले जी,एस,टी बिल भी आ जाए तो उसपर भी बात बन सकती है | स्टॉक मार्केट की दृष्टि से भारतवर्ष की कुंडली और वर्तमान सरकार की कुंडली के ग्रह अति सकारात्मकफल देने वालेहैं जिसके परिणाम स्वरूप यूरोपीय यूनियन से ब्रिटेन के अलग हो जाने के बावजूद भारतवर्ष की अर्थव्यवस्था पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा बल्कि बैंकिंग सेक्टर्स, बीमा, आई टी, मेटल्स, हैवी इंडस्ट्री जैसे क्षेत्रों में निवेशकों का रुझान तो बढेगा ही साथ कमोडिटी सेक्टर्स में लॉन्गटर्म के निवेशकों के लिए भी लाभ के अच्छे योग रहेंगें | मोदी सरकार के शपथग्रहण के समय की तुला लग्न की कुंडली के अनुसार यह योग दशमकर्म भाव में बनरहा रहा है यह केंद्र और कर्म दो नामो से जाना जाता है अतः सरकार के द्वारा किये जारहे कार्य एवं आरम्भ की गई कल्याणकारी योजनायें अति प्रभावशाली ढंग से कार्य करेंगी | केंद्रसरकार के मंत्रियों में नई ऊर्जा का संचार होगा | कृषक वर्ग के लिए यह योग अति कल्याणकारी रहेगा | इन ग्रहों का एक नकारत्मक प्रभाव यह रहेगा किजलतत्व की राशि कर्क में इनका मिलन अतिवर्षा एवं देश के कई भागों में अतिबाढ़ जैसे हालात उत्पन्न कर सकता है | पं जयगोविन्द शास्त्रीग्रह अनुकूल हों तो दीन दरिद्र को भी राजपाट दे देते हैं लेकिन प्रतिकूल हों तो राजा को भी रंक बना देते हैं इस तरह के अनेकों उदाहरण देखे भी गए हैं अतः ग्रहों के शुभाशुभ प्रभाव से कोई नहीं बच सका | कुछ इसी तरह के ग्रह संयोग इनदिनों बनने वाले हैं | वर्तमान में सूर्य, बुध और शुक्र एक साथ कर्क राशि में मिलने वाले हैं शुक्र पहले से ही कर्क राशि में हैं, बुध 11 जुलाई को और सूर्य 16 जुलाई को पहुचेंगें जिसके परिणाम स्वरूप 'त्रिग्रही' योग का निर्माण होगा जिसका भारतवर्ष और जनमानस प्रभाव कुछ इस तरह पड़ेगा |स्वतंत्र भारत की प्रभाव राशि कर्क है और पन्द्रह अगस्त सन् उन्नीस सौ सैतालीस मध्यरात्रि के समय जब भारतवर्ष को आज़ादी मिली तो उस समय भी कर्क राशि में ही सूर्य, बुध और शुक्र एक साथ विराजमान थे | इस अवधि में इन ग्रहों द्वारा निर्मित 'त्रिग्रही' योग देश की प्रगति के लिए अति उत्तम है क्योंकि वर्तमान संवतवर्ष के भी राजा शुक्र और मंत्री बुध ही हैं जिसके फलस्वरूप आने वाला समय देश और देश की जनता के लिए अति शुभ रहेगा |
वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की जन्मकुंडली में बिगत तीन महीने से बना हुआ अशुभ ग्रह गोचर भी समाप्त हो जाएगा | इनदिनों बनने वाले
शुक्रवार, 24 जून 2016
मानसिक विकारों और कुष्ट रोगों से मुक्ति दिलाती है, 'योगिनी एकादशी'
परमेश्वर श्री विष्णु ने मानवकल्याण के लिए अपने शरीर से पुरुषोत्तम मास की एकादशियों को मिलाकर कुल छबीस एकादशियों को प्रकट किया | कृष्ण पक्ष और शुक्लपक्ष में पड़ने वाली इन एकादशियों के नाम और उनके गुणों के अनुसार ही उनका नामकरण भी किया | इनमें उत्पन्ना, मोक्षा, सफला, पुत्रदा,षट्तिला, जया, विजया, आमलकी, पापमोचनी, कामदा, वरूथिनी, मोहिनी, निर्जला, देवशयनी और देवप्रबोधिनी आदि हैं | सभी एकादशियों में नारायण समतुल्य फल देने का सामर्थ्य हैं इनकी पूजा-आराधना करनेवालों को किसी और पूजा की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि, ये अपने भक्तों की सभी कामनाओं की पूर्ति कराकर उन्हें विष्णुलोक पहुचाती हैं | इनमे 'योगिनी' एकादशी तो प्राणियों को उनके सभी प्रकार के अपयश और चर्मरोगों से मुक्ति दिलाकर जीवन सफल बनाने में सहायक होती है | पद्मपुराण के अनुसार 'योगिनी' एकादशी समस्त पातकों का नाश करने वाली संसारसागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए सनातन नौका के समान है |साधक को इसदिन व्रती रहकर भगवान विष्णु की मूर्ति को 'ॐ नमोऽभगवते वासुदेवाय' मंत्र का उच्चारण करते हुए स्नान आदि कराकर वस्त्र, चंदन, जनेऊ गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, ताम्बूल, नारियल आदि अर्पित करके कर्पूर से आरती उतारनी चाहिए | योगिनी एकादशी देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुदंर रूप,गुण और यश देने वाली है | इस एकादशी के संदर्भ में पद्मपुराण में एक कथा भी है जिसमे धर्मराज युधिष्ठिर के सवालों का जवाब देते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे नृपश्रेष्ठ ! अलकापुरी में राजाधिराज महान शिवभक्त कुबेर के यहाँ हेममाली नाम वाल यक्ष रहता था | उसका कार्य नित्यप्रति भगवान शंकर के पूजनार्थ मानसरोवर से फूल लाना था | एक दिन जब पुष्प लेकर आरहा था तो मार्ग से कामवासना एवं पत्नी 'विशालाक्षी' के मोह के कारण अपने घर चला गया और रतिक्रिया में लिप्त होने के कारण उसे शिव पूजापुष्प के ने पुष्प पहुचाने की बात याद नही रही | अधिक समय व्यतीत होनेपर कुबेर क्रोधातुर होकर उसकी खोज के लिए अन्य यक्षों को भेजा | यक्ष उसे घर से दरबार में लाये उसकी बात सुनकर क्रोधित कुबेर ने उसे कोढ़ी होने का शाप दे दिया | शाप से कोढ़ी होकर हेम माली इधर-उधर भटकता हुआ एक दिन दैवयोग से मार्कण्डेय ॠषि के आश्रम में जा पहुँचा और करुणभाव से अपनी व्यथा बताई | ॠषि ने अपने योगबल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया और उसके सत्यभाषण से प्रसन्न होकर योगिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी | हेममाली ने व्रत का आरम्भ किया और व्रत के प्रभाव से हेममाली का कोढ़ समाप्त हो गया और वह दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक चला गया | पं जयगोविन्द शास्त्री
परमेश्वर श्री विष्णु ने मानवकल्याण के लिए अपने शरीर से पुरुषोत्तम मास की एकादशियों को मिलाकर कुल छबीस एकादशियों को प्रकट किया | कृष्ण पक्ष और शुक्लपक्ष में पड़ने वाली इन एकादशियों के नाम और उनके गुणों के अनुसार ही उनका नामकरण भी किया | इनमें उत्पन्ना, मोक्षा, सफला, पुत्रदा,षट्तिला, जया, विजया, आमलकी, पापमोचनी, कामदा, वरूथिनी, मोहिनी, निर्जला, देवशयनी और देवप्रबोधिनी आदि हैं | सभी एकादशियों में नारायण समतुल्य फल देने का सामर्थ्य हैं इनकी पूजा-आराधना करनेवालों को किसी और पूजा की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि, ये अपने भक्तों की सभी कामनाओं की पूर्ति कराकर उन्हें विष्णुलोक पहुचाती हैं | इनमे 'योगिनी' एकादशी तो प्राणियों को उनके सभी प्रकार के अपयश और चर्मरोगों से मुक्ति दिलाकर जीवन सफल बनाने में सहायक होती है | पद्मपुराण के अनुसार 'योगिनी' एकादशी समस्त पातकों का नाश करने वाली संसारसागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए सनातन नौका के समान है |साधक को इसदिन व्रती रहकर भगवान विष्णु की मूर्ति को 'ॐ नमोऽभगवते वासुदेवाय' मंत्र का उच्चारण करते हुए स्नान आदि कराकर वस्त्र, चंदन, जनेऊ गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, ताम्बूल, नारियल आदि अर्पित करके कर्पूर से आरती उतारनी चाहिए | योगिनी एकादशी देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुदंर रूप,गुण और यश देने वाली है | इस एकादशी के संदर्भ में पद्मपुराण में एक कथा भी है जिसमे धर्मराज युधिष्ठिर के सवालों का जवाब देते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे नृपश्रेष्ठ ! अलकापुरी में राजाधिराज महान शिवभक्त कुबेर के यहाँ हेममाली नाम वाल यक्ष रहता था | उसका कार्य नित्यप्रति भगवान शंकर के पूजनार्थ मानसरोवर से फूल लाना था | एक दिन जब पुष्प लेकर आरहा था तो मार्ग से कामवासना एवं पत्नी 'विशालाक्षी' के मोह के कारण अपने घर चला गया और रतिक्रिया में लिप्त होने के कारण उसे शिव पूजापुष्प के ने पुष्प पहुचाने की बात याद नही रही | अधिक समय व्यतीत होनेपर कुबेर क्रोधातुर होकर उसकी खोज के लिए अन्य यक्षों को भेजा | यक्ष उसे घर से दरबार में लाये उसकी बात सुनकर क्रोधित कुबेर ने उसे कोढ़ी होने का शाप दे दिया | शाप से कोढ़ी होकर हेम माली इधर-उधर भटकता हुआ एक दिन दैवयोग से मार्कण्डेय ॠषि के आश्रम में जा पहुँचा और करुणभाव से अपनी व्यथा बताई | ॠषि ने अपने योगबल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया और उसके सत्यभाषण से प्रसन्न होकर योगिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी | हेममाली ने व्रत का आरम्भ किया और व्रत के प्रभाव से हेममाली का कोढ़ समाप्त हो गया और वह दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक चला गया | पं जयगोविन्द शास्त्री
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