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शुक्रवार, 25 जुलाई 2014
गुरुवार, 24 जुलाई 2014
शनि के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए लगाएं शमी का वृक्ष, करें इन मंत्रो से प्रार्थना...
शमी शमयते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी । अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी ॥
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया । तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता ॥
हे शमी वृक्ष ! आप पापों का क्षय करने वाले और दुश्मनों को पराजित करने वाले
हैं आप अर्जुन का धनुष धारण करने वाले और श्रीराम को भी अति प्रिय हैं जिस
तरह श्री राम ने आपकी पूजा की, मैं भी करता हूँ मेरे विजपथ पर आने वाली
सभी बाधाओं से दूर कर के उसे सुखमय बना दीजिये ! 'शिवसंकल्पमस्तु'
सोमवार, 14 जुलाई 2014
ॐ नमः शिवाय ! करालं महाकाल कालं कृपालं ॐ नमः शिवाय 'श्रावणमास
में ही माँ शक्ति ने पार्वती रूप में तपस्या करके भगवानशिव को पुनः पति
रूप में प्राप्त किया था अतः इस माह में शिव की आराधना/अभिषेक आदि
करने से मनुष्य के लिए इस पृथ्वी सबकुछ पाना संभव रहजाता है !
ॐ नमः शिवाय ! करालं महाकाल कालं कृपालं ॐ नमः शिवाय....
में ही माँ शक्ति ने पार्वती रूप में तपस्या करके भगवानशिव को पुनः पति
रूप में प्राप्त किया था अतः इस माह में शिव की आराधना/अभिषेक आदि
करने से मनुष्य के लिए इस पृथ्वी सबकुछ पाना संभव रहजाता है !
ॐ नमः शिवाय ! करालं महाकाल कालं कृपालं ॐ नमः शिवाय....
शनिवार, 12 जुलाई 2014
अष्टाविंशे द्वापरे तु पराशरसुतो हरिः ! यदा भविष्यति व्यासो नाम्ना द्वैपायनः प्रभुः !!
व्यासाय विष्णुरुपाय विष्णु रुपाय व्यासवे ! नमो वै ब्रह्म निधये वाशिष्ठाय नमो नमः !!
भगवान शिव ने कहा, हे ! नन्दीश्वर, जब अट्ठाईसवें द्वापर में भगवान श्री महाविष्णु
पराशरपुत्र व्यास रूप में प्रकट होंगें तब वै द्वैपायन नाम से विख्यात होकर वेदों का
विस्तार करेंगें ! इस प्रकार अट्ठाईस द्वापर में आषाढ़शुक्ल पूर्णिमा को भगवान
व्यास का जन्म हुआ ! विष्णु स्वरुप होने और वेदों का विस्तार करने के
फलस्वरूप वै वेद व्यास कहलाये तथा देवों तथा मनुष्यों में गुरुरूप में पूजित
हुए ! तभी से इनके जन्मदिन को गुरुपूर्णिमा के रूप मनाया जाने लगा !
गुरुवार, 10 जुलाई 2014
पुरुष एवेद गूँ सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्व्यम् ! उतामृतवत्वस्येशानो यदन्ने नातिरोहति !
अर्थात - इस जगत में भूत, भविष्य एवं वर्तमान में जो कुछ हुआ, हो रहा है, होने
वाला है वह इन विराट पुरुष का ही अवयव है प्रत्येक कल्प में जीव देहधारी होकर
इन्हीं के अंश रूप में रहते हैं यही परमात्मा जीव रूप में पूर्वकर्मवश जन्म मृत्यु के
चक्कर में पड़कर भी अजमर-अमर और अजन्मा है ! इति वेदाः !
शुक्रवार, 4 जुलाई 2014
'देवताओं की तपस्या का पावन पर्व है, 'चातुर्मास्य'
ऋषियों, मुनियों, योगियों, यक्षों, गंधर्वो, नागों, किन्नरों एवं देवताओं आदि की तपस्या का पावन पर्व 'चातुर्मास्य' आषाढ़ शुक्ल एकादशी 09 जुलाई बुधवार
से आरम्भ हो रहा है, भगवान श्रीहरि के योगनिद्रा में प्रवृत्त हो जाने के साथ ही तपस्या का यह पर्व आरंभ होगा, जो कार्तिक शुक्ल एकादशी (हरिप्रबोधिनी)
03 नवम्बर तक चलेगा | इस मध्य भगवान विष्णु का शयन काल रहेगा जिसके परिणाम स्वरूप देव शक्तियां क्षीण होती जायेगी | इस व्रत को गृहस्तवर्ग
भी कर सकते है | देवर्षि नारद के पूछने पर भगवान शिव ने इस व्रत की विधि और महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि देवर्षि ! इस अवधि के मध्य
न तो घर में या मंदिर में मूर्ति आदि स्थापना/प्राणप्रतिष्ठा होती है न ही विवाह आदि यज्ञोपवीत आदि कर्म होते है इस व्रत को करने से प्राणी संसार के सभी
भोगों ऐश्वर्यों को प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है उसके लिए कुछ भी पाना श्रेष्ठ नहीं रह जाता ! आराधना की बिधि इसप्रकार है कि गृहस्त अपने घर
में चतुर्भुज श्रीविष्णु की प्रतिमा स्थापित करे ! प्रतिमा को पीताम्बर पहनाएं, उसे शुद्ध एवं सुंदर पलंगपर, जिसके ऊपर सफेद चादर बिछी हो और तकिया रखी
हो, स्थापित करे | फिर दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, शर्करा, लावा और गंगाजल से स्नान कराकर उत्तम गोपी चन्दन का लेप करें पुनः गंगा जलसे स्नान
कराकर गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, पुष्प, सुगन्धित पदार्थों से श्रृंगार करे ! इस प्रकार श्रीहरि की पूजा करके इस मंत्र से प्रार्थना करे !
सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम् | विबुद्धे त्वयि बुध्येत जगत्सर्वं चराचरम् || अर्थात हे ! जगदीश्वर ! जगन्नाथ ! आपके सो जानेपर यह सारा
जगत् सो जाता है तथा आपके जागृत होने पर सम्पूर्ण चराचर जगत् जग उठता है | इस प्रकार भगवान विष्णु की प्रार्थना करे और ॐ नमो नारायण' का जप
प्रतिदिन इन्हीं ध्यान मंत्र से पूजन जप करे ऐसा करने से नारायण उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करदेते हैं | वेदों में भी कहा गया है कि अहिंसा श्रेष्ठ धर्म है
इसलिए जीव हत्या न करे, वाणी पर संयम रखे ! व्रत के मध्य गुड़ छाछ दही दूध आदि के सेवन से बचे किन्तु बाल बृद्ध एवं रोगियों के लिए यह परहेज
मान्य नही होगा ! कार्तिक शुक्ल एकादशी को व्रत समाप्ति हेतु उद्यापन कर ब्राह्मण भोजन दानपुण्य करके प्राणी समस्त भवबंधनों से मुक्त होकर श्रीविष्णु
लोक वासी होता है ! पं जयगोविंद शास्त्री
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