बुधवार, 6 मई 2020

राम नवमी विशेष, श्री राम की जन्मकुंडली का विश्लेषण

राम नवमी विशेष, श्री राम की जन्मकुंडली का विश्लेषण
शनि और मंगल के प्रभाव से त्यागी हुए राम, राहु के कारण पतन की राह पर दौड़ा रावण
भगवान राम का जन्म कर्क लग्न और कर्क राशि में ही हुआ | इनके जन्म के समय लग्न में ही गुरु और चंद्र, तृतीय पराक्रम भाव में राहु, चतुर्थ माता
के भाव में शनि, और सप्तम पत्नी भाव में मंगल बैठे हुए हैं जबकि नवम भाग्यभाव में उच्चराशिगत शुक्र के साथ केतु, दशम भाव में उच्च राशि का
सूर्य और एकादश भाव में बुध बैठे हुए हैं |
रावण की जन्मकुंडली सिंह लग्न की है, कहीं-कहीं रावण की जन्मकुंडली का तुला लग्न में जन्म लेने का वृतांत भी आया है किंतु सिंह लग्न की
कुंडली का प्रभाव रावण के जीवन में सर्वाधिक रहा है | अतः फलित ज्योतिष के विद्वान रावण की जन्म कुंडली को सिंह लग्न का ही मानते हैं |
रावण की कुंडली के लग्न में ही सूर्य और वृहस्पति, द्वितीय भाव में उच्च राशि पर बुध, तृतीय पराक्रम भाव में उच्च राशि में शनि, और पंचम
विद्या भाव में राहु बैठे हुए हैं, छठे भाव में मंगल, एकादश लाभ भाव में केतु  और द्वादश भाव में चंद्र और शुक्र बैठे हैं दोनों जन्म कुंडलियों में
बड़े-बड़े लोगों की भरमार है |
भगवान राम की जन्मकुंडली में श्रेष्ठतम गजकेसरी योग, हंस योग, शशक योग, महाबली योग, रूचक योग, मालव्य योग, कुलदीपक योग, कीर्ति योग
सहित अनेकों योगों की भरमार है | लंकापति रावण की जन्म कुंडली में सूर्य, बुध, शनि, मंगल और चंद्रमा अपने अपने उच्च भाव में बैठे हुए हैं |
श्री राम की कुंडली में बनी युवकों पर ध्यान दें चंद्रमा और बृहस्पति का एक साथ होना ही जातक धर्म और वीर वेदांत में रुचि लेने वाला होता है |
बृहस्पति की पंचम विद्या भाव पर अमृत दृष्टि, सप्तम पत्नी भाव पर मार्ग दृष्टि और नवम भाग्य भाव पर  अमृत दृष्टि पढ़ रही है | जिसके
फलस्वरूप भगवान राम की कीर्ति और भाग्योदय का शुभारंभ 16वें वर्ष में ही हो गया था, और पूर्ण भाग्योदय 25 वर्ष से आरंभ हुआ |
पराक्रम भाव में उच्च राशिगत राहू ने इन्हें शत्रुमर्दी और पराक्रमी बनाया तो चतुर्थ भाव में उच्चराशि का शनिदेव भी चक्रवर्ती योग निर्मित कर रहे हैं |
माता के शनि होने के कारण मात्र सुख में कमी दर्शा रहे हैं जबकि जन्म कुंडली में बने हुए अन्य योग परम शुभ फलदाई हैं | सप्तम पत्नी भाव गुरु की
नीच और मारक दृष्टि तथा मंगल का उच्च राशि का तो होना दांपत्य जीवन में कमी दिखाता है | जो स्वयं भगवान राम के जीवन में भी दांपत्य जीवन के
सुख की अल्पता का द्योतक है | भौतिक सुख के कारक शुक्र का केतु के साथ बैठना और राहु की दृष्टि का परिणाम ही है कि भगवान राम कहीं न कहीं
भौतिक सुखों से दूर रहे | चर्चित विषय रहा सूर्य का दशम भाव में बैठना और शनि का चतुर्थ माता के भाव में बैठना परस्पर एक-दूसरे पर मारक दृष्टि का
परिणाम रहा कि भगवान राम के जीवन में पितृ वियोग अधिक रहा | यदि हम गौर करें तो उच्च राशि का शनि भगवान राम की जन्म कुंडली के मारकेश
भी हैं जो सुख भाव में बैठे हैं इसलिए यह कहावत सत्य सिद्ध होती है कि राम को किसी ने हंसते हुए नहीं देखा | मंगल और शनि देव भगवान राम का
जीवन अति संघर्षशील बनाया |
रावण की जन्मकुंडली में जितने भी ग्रह अपने अपने घर में बैठे हैं वह अपने शुभ प्रभाव में ही बढ़ोतरी कर रहे हैं|  सूर्य और बृहस्पति का लग्न में बैठना
रावण की महान विद्वान होने की तरफ संकेत दे रहा है | किन्तु पंचम विद्या भाव में राहु से ग्रसित है अतः संतान संबंधी चिंता की वृद्धि का परिचायक तो
है ही जातक बुद्धि का प्रयोग गलत एवं अनैतिक कार्यों में करता है | फलित ज्योतिष में यदि किसी भी जातक की जन्मकुंडली में विद्या भाव में राहू हो और
शत्रुक्षेत्री हो तो वह व्यक्ति अपने विवेक का उपयोग गलत कार्यों में करता है | बड़े-बड़े ग्रह योगों के बावजूद राहू ने रावण की बुद्धि भ्रमित कर दी इसलिए
रावण का पतन हुआ |

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