शुक्रवार, 27 मार्च 2015

शक्तितत्व की पूजा का दिन 'दुर्गाष्टमी'
महादैत्य महिसासुर का वध करने के लिए देवताओं के तेज से प्रकट होने वाली माँ दुर्गा अपने हाथों में अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, वज्र, पद्म, धनुष, कुण्डिका, दंड, शक्ति,
खड्ग, ढाल, शंख, घंटा, मधुपात्र, शूल, पाश, और चक्र धारण करती है ! नवरात्र के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है, दैत्यों का संहार करते
समय माँ ने कहा, 'एकै वाहं जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा' ! अर्थात- इस संसार में एक मै ही हूँ दूसरी और कोई शक्ति नहीं ! सभी चराचर जगत जड़-चेतन, दृश्य-अदृश्य
रूपों में मै ही हूँ ! मैं सृष्टि सृजन के समय भवानी, युद्ध क्षेत्र में दुर्गा, क्रोध के समय काली और जीवात्माओं की रक्षा एवं उनके पालन के समय विष्णु बन जाती हूँ ! सभी
नारियों में स्त्रीतत्व रूप में मैं ही हूँ ! इसलिए नारी का सम्मान करना मेरी पूजा करने जैसा है ! माँ पृथ्वी पर कन्याओं के रूप में विचरण करती हैं ! जिनमे दो वर्ष की कन्या
को कुमारी, तीन वर्ष की कन्या को अ+उ+म त्रिदेव-त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छह वर्ष की कालिका, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की शाम्भवी,
नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा के समान मानी जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है ।
दुर्गा सप्तशती में कहागया है कि 'कुमारीं पूजयित्या तू ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम्' अर्थात- दुर्गापूजन से पहले कुवांरी कन्याका पूजन करने के पश्च्यात ही माँ दुर्गा का पूजन करें ! भक्तिभाव से की गई एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो कन्या की पूजा से भोग, तीन की चारों पुरुषार्थ, और राज्यसम्मान,पांच की पूजा से -बुद्धि-विद्या, छ: की पूजा से
कार्यसिद्धि, सात की पूजा से परमपद, आठ की पूजा अष्टलक्ष्मी और नौ कन्या की पूजा से सभी एश्वर्य की प्राप्ति होती है। पुराण के अनुसार इनके ध्यान और मंत्र इसप्रकार हैं !
मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम् । नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्। जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरुपिणि । पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते।।
कुमार्य्यै नम:, त्रिमूर्त्यै नम:, कल्याण्यै नमं:, रोहिण्यै नम:, कालिकायै नम:, चण्डिकायै नम:, शाम्भव्यै नम:, दुगायै नम:, सुभद्रायै नम: !!
इन दुर्गारुपी कन्याओं का पूजन करते समय पहले उनके पैर धुलें पुनः पंचोपचार बिधि से पूजन करें और तत्पश्च्यात सुमधुर भोजन कराएं और प्रदक्षिणा करते हुए यथा शक्ति
वस्त्र, फल और दक्षिणा देकर विदा करें ! इस तरह महाष्टमी/नवमी के दिन कन्याओं का पूजन करके भक्त माँ दुर्गा की कृपा पा सकते हैं ! पं जयगोविन्द शास्त्री

बुधवार, 25 मार्च 2015

नूतन संवत् 'कीलक' में राजा शनि और मंत्री मंगल
कीलक नामक बयालीसवां विक्रमी संवत् 2072 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का आरम्भ आज दोपहर 3बजकर 05 मिनट पर उत्तराभाद्रपद नक्षत्र एवं शुक्ल योग
में हो रहा है उस समय क्षितिज पर कर्क लग्न का उदय हों रहा होगा, परन्तु सम्वत्सर का संकल्पमान सूर्योदय कालीन तिथि 21मार्च से मान्य होगा !
इसीदिन से चैत्र नवरात्र प्रतिपदा का आरम्भ भी हो जायेगा ! शास्त्रों के अनुसार इसी तिथि को सत्ययुग का आरम्भ भी हुआ था, इसलिए इसदिन को
स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है ! इसदिन दिनभर के किये गये जप-तप, पूजा-पाठ, दान-पुण्य का फल अक्षुण रहता है ! सभी मांगलिक कार्यों, श्राद्ध, तर्पण,
पिंडदान आदि का संकल्प करते समय वर्ष पर्यन्त ''कीलक'' नामक संवत् का उच्चारण किया जायेगा ! संवत् में वर्षा की स्वामिनी रोहिणी का वास समुद्र
में रहेगा जिसके फलस्वरूप वर्षा अधिक होगी धान्यादि की पैदावार प्रचुर मात्रा में रहेगी ! संवत् का वाहन महिष तथा वास माली के घर रहेगा ! जिसका
फल मिलाजुला किन्तु सकारात्मक रहेगा ! वर्ष के दशाधिकारियों में बृहस्पति एवं चन्द्र को तीन-तीन, शनि के पास दो और मंगल तथा बुध को एक-एक
अधिकार मिला हुआ है जो जनमानस के लिए शुभ संकेत है !  वर्ष पर्यन्त पूर्ण प्रशासन शनि और मंगल के पास रहेगा इसलिए अनुशासन की दृष्टि से
ये साल जाना जाएगा ! शनिदेव मृत्युलोक के न्यायदाता है इसलिए इसवर्ष अन्य वर्षों की अपेक्षा न्यायिक प्रणाली अधिक विश्वसनीय रहेगी ! कर्क लग्न
की संवत् की कुंडली में केन्द्र और त्रिकोण में कुल सात ग्रह हैं जो देश का सकल घरेलु उत्पाद मजबूती के साथ तो बढ़ेगा ही साथ महँगाई दर में भी
गिरावट आएगी, परन्तु प्राकृतिक आपदाओं जैसे आँधी-तूफ़ान, महामारी का वर्चस्व कायम रहेगा ! शनि और मंगल के प्रभाव से विश्वभर में भारत की
संप्रभुता, एकता, अखंडता का संकल्प बरकार रखने में सरकार को कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ेगा ! इन्हीं योगों के फलस्वरूप जेल में कुमार्गियों, भ्रष्ट
नेताओं और अफसरों की संख्या बढ़ेगी ! संवत् के मध्य 17 जून से 16 जुलाई तक मलमास/पुरुषोत्तम रहेगाजिसमें भगवान विष्णु की पूजा आराधना
सहस्त्रनाम, पुरुषसूक्त आदि का पाठ करना उत्तम रहेगा लेकिन शादी-विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश यज्ञोपवीत आदि कार्य वर्जित रहेंगें ! पं जयगोविन्द शास्त्री


मंगलवार, 17 मार्च 2015

'सूर्य का मीन राशि में प्रवेश के साथ ही खरमास आरम्भ'
भगवान सूर्य 14 मार्च की मध्यरात्रि पश्च्यात 04 बजकर 18 मिनट पर मीन राशि में प्रवेश कर रहे हैं | इस राशि पर सूर्य 14 अप्रैल दोपहर 01 बजकर 45 मिनट
तक रहेंगें | इनके मीन राशि में पहुचते ही उग्र 'खरमास' आरम्भ हो जाएगा, जिसके परिणाम स्वरुप शादी-विवाह और अन्य सभी मांगलिक कार्यों पर विराम लग
जाएगा | सूर्य को सृष्टि की आत्मा कहा गया है जीव की उत्पत्ति में भी इनका अहम योगदान रहता है, शास्त्र कहते हैं कि 'सूर्य रश्मितो जीवोऽभि जायते' अर्थात
सूर्य की किरणों से ही जीव की उत्पत्ति होती है | इस यात्रा के समय सूर्यदेव के साथ विष्णु और विश्वकर्मा दो देव, जमदग्नि और विश्वामित्र दो ऋषि, काद्रवेय और
कम्बलाश्वतर दो नाग, सूर्यवर्चा और धृतराष्ट नामक दो गन्धर्व साथ चलेंगें | अपनी सुंदरता से बड़े बड़े योगियों-ऋषियों का मन हरण करलेने वाली तिलोत्तमा और
रम्भा नाम की दो अप्सरायें भी सूर्य की यात्रा में मनोरंजन हेतु साथ चलेंगी | साथ ही ऋतजित और सत्यजित दो महाबलवान सारथी तथा ब्रह्मोपेत और यज्ञोपेत
नामक दो राक्षस भी सेवा हेतु साथ-साथ रहेंगे |ये सभी देव-दानव अपने अतिशय तेज के प्रभाव से सूर्य को और भी तेजवान बनाते हैं | चारों वेद और ऋषिगण अपने
बनाए गये वाक्यों से सूर्य की स्तुति करते हुए साथ चलेंगें | इस प्रक्रार अपने रथ पर चलते हुए सूर्य सातो द्वीपों और सातों समुद्रों समेत सृष्टि का भ्रमण करते हुए
दिन-रात्रि का निर्माण करते हैं | आदिकाल से सूर्य सभी बारह राशियों के स्वामी थे ! बाद में इन्होंने एक राशि का अधिपति चंद्रमा को और मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और
शनि को दो दो राशियों का अधिपति बना दिया ! सभी राशियों की स्वामी सिंह राशि के अधिपति स्वयं रहे | इनकी आराधना अथवा जल का अर्घ्य देने से जातकों
की जन्मकुंडलियों के सूर्यजनित दोष नष्ट हो जाते हैं | जिन जातकों की जन्मकुंडलियों में सूर्य नीच राशिगत हों, बाल्या अथवा बृद्धा अवस्था में हों ,या जिनका जन्म
अमावस्या या संक्रांतिकाल में हुआ हो, जिनकी जन्मकुंडलियों में अधिकतर ग्रह कमजोर, नीच, शत्रुक्षेत्री हों जो मारकेश और शनि की शाढ़ेसाती से ग्रसित हों, वै सभी
जातक भगवान सूर्य का षडाक्षर मंत्र 'ॐ नमः खखोल्काय' का जप करके सभी कष्टों से मुक्ति पा सकते हैं | सूर्य में पूर्व जन्मों के सभी पापों का शमन करने की
शक्ति है अतः इनका पूर्व के जन्मों में किया गया पापनाशक मंत्र 'ॐ सूर्यदेव महाभाग ! त्र्योक्य तिमिरापह | मम पूर्वकृतं पापं क्षम्यतां परमेश्वरः || पढ़ते हुए प्रतिदिन
प्रातःकाल लाल सूर्य के समय सूर्य नमस्कार करने और अर्घ्य देने से आयु, विद्या-बुद्धि और यश की प्राप्ति होती है ! पं जयगोविन्द शास्त्री

शुक्रवार, 13 मार्च 2015

अब बृश्चिक राशि में शनिदेव हुए वक्री
शनिदेव 14 मार्च शनिवार की रात्रि 08 बजकर 21 मिनट पर वर्तमान बृश्चिक राशि की 10 अंश 51 कला और 32 विकला का भोग करने के पश्च्यात वक्री हो रहे हैं, इस
अवधि में ये 04 माह 19 दिनोंतक वक्रगति से चलते हुए भी राशि परवर्तन नहीं करेंगें और 02 अगस्त को दोपहर 11 बजकर 20 मिनट पर 04 अंश 12 कला तक भोगने
के पश्च्यात मार्गी हो जायेंगें ! भगवान शिव द्वारा शनिदेव को मृत्युलोक के प्राणियों का दंडाधिकारी नियुक्त किया गया है इसलिए शनि प्राणियों के जीवित रहते हुए ही
उनके शुभ-अशुभ कर्मों के अनुसार दंड का निर्धारण करते हैं और इसी जन्म में उन्हें दण्डित भी करते हैं ! शनि वृद्ध, तीक्ष्ण, आलसी, श्याम वर्ण, वायु प्रकृति प्रधान हैं, मकर
और कुंभ राशि के स्वामी शनि तुला राशि पर उच्च और मेष राशि में नीच संज्ञक होते हैं ! इनका वक्री होना बृश्चिक राशि वालों के लिए तो कुछ अशुभ रहेगा ही साथ ही
शासन सत्ता अथवा सरकारों के लिए अशांति कारक रहेगा ! सरकारों के मध्य आपसी सहमति बनाना भी कठिन रहेगा ! सभी राशियों पर शनि की वक्रगति का क्या असर
रहेगा, ? एवं क्या सावधानी बरतनी चाहिए. ? इसका ज्योतिषीय विश्लेषण करते हैं !
मेष - स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें, षड्यंत्र से बचें, वाहन सावधानी से चलायें ! बृषभ - पति/पत्नी आपसी कलह से बचें, व्यापार में लेन-देन के प्रति सजग रहें !
मिथुन - ऋण-रोग से बचें, शत्रुओं पर विजय, कोर्ट-कचहरी के मामलें आपके पक्ष में ! कर्क- प्रेम सम्बन्धों से निराशा, संतान और शिक्षा के प्रति लापरवाह ना बनें !
सिंह - पारिवारिक अशांति, मानसिक उलझन, सामान चोरी होने का भय ! कन्या - क्रोध बृद्धि, भाईयों में मतभेद, कार्य बाधा, सफलता मिलने में देरी !
तुला - वाणी पर नियंत्रण रखें, नेत्र विकार से बचें, आकस्मिक लाभ के योग !बृश्चिक - अजीब सा भय, स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल, दूसरों के लिए अशुभ कहने से बचें !
धनु - अशुभ समाचार से कष्ट, व्यर्थ भागदौड़ और यात्राओं अधिक व्यय ! मकर - परिवार के बड़े सदस्य के लिए हानि, लाभ मार्ग प्रसस्त होंगें ! स्वास्थ के प्रति सजग रहें !
कुंभ - कार्य-व्यापार में मंदी, नौकरी-पेशा वालों के लिए स्थान परिवर्तन के योग ! मीन - जल्दबाजी के निर्णय परेशानी का सबब, धार्मिक कार्यों-यात्राओं पर अधिक व्यय !
वक्री शनि के अशुभ प्रभाव से बचने के उपाय - शनिदेव उन्हीं को अधिक परेशान करते हैं जो दिन का अधिक समय दूसरों को परेशान करने अथवा हानि पहुचाने में लगे
रहते हैं, इसलिए अपने आचरण में सुधार लायें ! माता-पिता एवं परिवार के अन्य बुजुर्गों की सेवा करें ! सत्कर्मों के प्रति लगाव और आचरण में सुधार ही शनि के अशुभ
प्रभाव से बचने के सरल उपाय हैं ! पीपल एवं शमीवृक्ष का आरोपण करना भी अतिशुभ फलदाई रहेगा ! पं जयगोविन्द शास्त्री