रविवार, 13 नवंबर 2011

परमात्मा ने परम पिता के रूप हमें पांच ज्ञान इन्द्रियाँ,पांच कर्म इन्द्रियाँ और एक मन इन ग्यारह को देकर जीवात्मा को एकादशी की तरह पूर्ण बना दिया है ! पिता का स्थान आकाश से भी ऊँचा है और माता का पृथ्वी से,अतः पिता को परमात्मा के सामान माने- वही आप के संसार में आने का माध्यम बने और अच्छी तरह देश-विदेश में आप को पढ़ाया लिखाया,बड़े होने पर पिता ने अछे-बुरे की पहचान अथवा कार्य करने की पूर्ण स्वतंत्रा प्रदान की, बिजनेस करने के लिए धन आदि दिया,इतनी मदद करने पर भी यदि आप असफल रहते हैं,तो पिता को दोषी नही माना जासकता क्यों की फेलियर आप हैं पिता नहीं ! यही भूमिका परमात्मा की है, परमात्मा आप के फेलियर के जिम्मेवार नहीं,बल्कि आप के ही कर्म जिम्मेवार हैं ! ॐ तत्सत ॐ

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