रविवार, 13 नवंबर 2011



जीवात्मा परमात्मा से भिन्न है, इस भिन्नता का कारण उसकी अहंता, ममता तथा आशक्ति है | जिसके कारण वह परब्रह्म को भूलकर प्रकृति के भोगों की और आकर्षित होकर उसके फल भोगती है, किन्तु जब जीवात्मा का भोगों से वैराग्य हो जाता है तो वह प्रकृति से अलग होकर पुनः उस परब्रह्म में लीन हो जाती है,इसी को योग कहते हैं ! जबतक जीवात्मा प्रकृति से संयुक्त रहती है तबतक उसके जन्म-मृत्यु व दुखों का अंत नहीं होता किन्तु जब वह परमात्मा से मिल जाती है तो परमानन्द का अनुभव करती है,अतः परमात्मा ही आनंदमय है !

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