रविवार, 13 नवंबर 2011


जीवात्मा और परमात्मा में भेद है,जीवात्मा एक बार में एक ही जगह रह सकता है,पर परमात्मा सर्वव्यापी है ! जीवात्माएँ अनंत हैं किन्तु परमात्मा एक ही हैं ! जीवात्मा काम,क्रोध,मद,लोभ,राग,द्वेष,सुख-दुःख आदि गुणों को जानने वाली हैं !परमात्मा इससे परे केवल इसका साक्षी मात्र है ! प्राण, अपान, निमेष, उन्मेष, जीवन, मन,गति,इन्द्रिय, आत्मा के लिंग अर्थात कर्म और गुण हैं ! जीव व्याप्त है, ईश्वर व्यापक है ! जीवों के कर्तव्य अकर्तव्य कर्म ईश्वर नहीं करता स्वयं जीव ही करता है ! इस प्रकार आनंदमय शब्द जीवात्मा का वाचक नहीं हो सकता, वह परब्रह्म का ही वाचक है ! अतः परब्रह्म ही सम्पूर्ण आनंदमय है ! "हरिॐ तत्सत"

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