रविवार, 13 नवंबर 2011


जीवात्मा एवं परमात्मा में ही अन्तः करण की वृत्तिओं को स्थापित करलेना ही उत्तम योग है, अहिंसा, सत्य, अस्तेय,ब्रह्मचर्य,और अपरिग्रह ये पांच "यम" हैं,भोग और मोक्ष को प्रदान करने वाले शौच, संतोष, तप, स्वाद्ध्याय और ईश्वरआराधन ये "नियम" भी पांच ही होते हैं!!! इसी प्रकार दुर्भाग्य को जन्म देनेवाली और पुण्य को नष्ट करने वाली "हिंसा" के भी दस भेद हैं, उद्वेग डालना, संताप देना, रोगी बनाना, शरीर से रक्त निकालना,चुंगली करना, किसी की कामयाबी में रुकावट डालना ,किसी के छिपे रहस्यों को उजागर करना, दुसरे को सुख से वंचित करना, अकारण कैद करना और प्राणदंड देना ये सब हिंसा के ही प्रकार हैं !!

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