रविवार, 13 नवंबर 2011


पूर्व जन्म कृतं यत्तु पापं व पुण्यमेव वा ! इह जन्मनि भो देवि ! भुज्यते सर्वदेहिभिः !!
पुण्येन जायते विद्या पुण्येन जायते सुतः! पुण्येन सुंदरी नारी पुण्येन लभते श्रियम !!
कूष्म अंडम नारिकेलं च पञ्चरत्नम समन्वितम ! गंगामध्ये च दातव्यम ततः पाप क्षयो भवेत् !!

माता पार्वती को समझाते हुए भगवान् शिव कहते हैं, हे देवि ! मनुष्य ने जो पूर्व जन्म में कर्म (पाप-पुण्य) किया है, वही इस जन्म में उन्हें को भोगना पड़ता है ! पुण्य ही से विद्या,पुण्य ही से पुत्र और सुंदर स्त्री की प्राप्ति तथा पुण्य ही से अनेकों प्रकार की संपत्ति मिलती है ! सफेद कोंहड़ा और नारियल में पञ्च रत्न भरकर गंगा के मध्य में दान करे तो सब पाप नष्ट हो जायेंगे !!

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