रविवार, 13 नवंबर 2011


पुण्यापुण्ये ही पुरुषः पर्यायेण समश्नुते ! भुन्जतश्च क्षयं याति पापं पुण्यमथापि वा !
न तु भोगादृते पुण्यं किंचित वा कर्म मानवं ! पावकं वा पुनात्याशु क्षयो भोगात प्रजायते !!
माता पार्वती को समझाते हुए भगवान् शिव कहते हैं, हे देवि ! पाप-पुण्य दोनों परिणाम फल अवश्यमेव मनुष्य को भोगने पड़ते हैं,और भोगने ही क्षय भी हो जाते हैं !पुण्य अथवा पाप कर्म का सुख-दुःख रूपी कर्म फल बिना भोगे मनुष्य को छुटकारा नहीं मिलता क्यों की भोग से ही पाप क्षय होता है इसे निश्चय जानो !!

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