रविवार, 22 नवंबर 2015

जगत चैतन्यता दिवस कार्तिकशुक्ल एकादशी   "आज''
जड़ता में भी चैतन्यता का संचार करने वाली 'प्रबोधिनी' एकादशी 22 नवंबर रबिवार को है | आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल
एकादशी तक के मध्य श्रीविष्णु शयन करते हैं, और भौदों शुक्ल एकादशी को करवट बदलते हैं | प्राणियों के पाप का नाश करके पुण्य की वृद्धि और धर्म-कर्म में प्रवृति कराने वाले श्रीविष्णु कार्तिक शुक्ल एकादशी को निद्रा से जागते हैं तभी इस एकादशी का फल अमोघ है इसीदिन से शादी-विवाह जैसे सभी मांगलिक कार्य आरम्भ हो जाते हैं | पद्मपुराण के अनुसार 'अश्वमेध सहस्राणि राजसूय शतानि च' अर्थात प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने वाले को हजार अश्वमेध और सौ राजसूय यज्ञ करने के बराबर फल मिलता है | सुखद दाम्पत्य जीवन, पुत्र-पौत्र एवं बान्धवों की अभिलाषा रखने वाले गृहस्थों और मोक्ष की इच्छा रखने वाले संन्यासियों के लिए यह एकादशी अमोघ फलदाई कही गयी है, एकादशी का माहात्म्य बताते हुए गीता में स्वयं श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि, तिथियों में मै एकादशी हूँ | अतः एकादशी के दिन श्रीकृष्ण का आवाहन-पूजन आदि करने से उस प्राणी के लिए कुछ भी करना शेष नहीं रहता | श्रीविष्णु के शयन के फलस्वरूप देवताओं की शक्तियां तथा सूर्यदेव का तेज क्षीण हो जाता हैं, सूर्य कमजोर होकर अपनी नीचराशि में चले जाते हैं या नीचा-भिलाषी हो जाते है जिसके परिणामस्वरूप ग्रहमंडल की व्यवस्था बिगड़ने लगती है प्राणियों पर अनेकों प्रक्रार की व्याधियों का प्रकोप होता है | देवोत्थानी एकादशी को श्रीविष्णु निद्रा का परित्याग कर पुनः सुप्त सृष्टि में नूतनप्राण का संचार करेंगे | भक्तगण श्री विष्णु की क्षीरसागर में शयन करनेवाली मूर्ति-छायाचित्र को घर के मध्यभाग या उत्तर-पूर्व भाग में स्थापित करें और ध्यान, आवाहन, आसन, पादप्रच्छालन, स्नान आदि कराकर वस्त्र, यज्ञोपवीत, चंदन, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, ऋतूफल, गन्ना, केला, अनार, आवंला, सिंघाड़ा अथवा जो भी उपलब्द्ध सामग्री हो वो अर्पण करते हुए 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' या ॐ नमो नारायणाय'का जप करे | श्रीविष्णु सहस्त्रनाम, नारायण कवच, श्रीमद्भागवत महापुराण, पुरुषसूक्त और श्रीसूक्त का पाठ अथवा श्रवण करने से प्राणी दैहिक, दैविक, एवं भौतिक तीनों तापों से मुक्त हो जाता है | पं जयगोविन्द शास्त्री 

बुधवार, 11 नवंबर 2015

दीपोत्सव पर करें लक्ष्मी-कुबेर को प्रसन्न
महालक्ष्मी का प्राकट्यपर्व दीपावली 11 नवंबर बुधवार को है | देवराज इंद्र के अभद्र आचरण के कारण जब महर्षि दुर्वासा ने तीनों लोकों को श्रीहीन होने काश्राप दे दिया तो व्याकुल देवता त्रिदेवों की शरण में गए, महादेव ने उन्हें समुद्रमंथन का सुझाव दिया, जिसे देवता और दानव सहमत हो गए | मंथन कीप्रक्रिया आरम्भ करने के लिए नागराज वासुकी को रस्सी और मंदराचल पर्वत को मथानी के रूप में उपयोग किया गया | समुद्रमंथन के मध्य कार्तिककृष्णपक्ष अमावस्या को श्रीमहालक्ष्मी प्रकट हुईं थीं, तभी से इसदिन को श्रीमहालक्ष्मी की आराधना एवं प्रकाशपर्व के रूप में मनाया जाता है | इसदिन श्रीमहालक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ श्रीगणेश, कुबेर नवग्रह,षोडशमातृका, सप्तघृत मातृका, दसदिक्पाल और वास्तुदेव का आवाहन-पूजन करने से वर्षपर्यंतअष्टलक्ष्मी की कृपा बनी रहती है | परिवार में मांगलिक कार्यों और सुख-शान्ति से आत्मसुख मिलता है | इसदिन घर में आरही लक्ष्मी की स्थिरता के लिएदेवताओं के कोषाध्यक्ष धन एवं समृद्धि के स्वामी कुबेर का पूजन-आराधन करने से नष्ट हुआ धन भी वापस मिल जाता है, व्यापार वृद्धि हेतु कुबेर यंत्रश्रेष्ठतम् है इसे किसी भी तरह के सोने, चांदी, अष्टधातु, तांबे, भोजपत्र, आदि पर निर्मितकर पूजन करना श्रेष्ठ होता है इन्हीं वस्तुओं पर यंत्रराज श्रीयंत्रभी निर्मित कर सकते हैं ! गृहस्त लोगों के लिए महालक्ष्मी पूजन के समय सर्वप्रथम गणेश जी के लिए ॐ गं गणपतये नमः | कलश के लिएॐ वरुणाय नमः | नवग्रह के लिए ॐ नवग्रहादि देवताभ्यो नमः | सोलह माताओं की प्रसन्नता के लिए ॐ षोडश मातृकायै नमः | लक्ष्मी केलिए ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः | कुबेर के लिए ॐ कुबेराय वित्तेश्वराय नमः | मंत्र का प्रयोग करना सर्वोत्तम रहेगा | अमावस्या के दिनअपने-अपने निवास स्थान में पूजा के लिए सायं 05 बजकर 30 मिनट से रात्रि 08 बजकर 42 मिनट तक का समय सर्वश्रेष्ठ रहेगा | इस अवधि केमध्य बुधवार दिन, प्रदोषबेला, स्थिर लग्न बृषभ, गुरु का नक्षत्र विशाखा, शुभ चौघडिया और तुला राशिगत सूर्य-चन्द्र की युति होने से दीपावली पूजनकई गुना अधिक शुभफलदायी रहेगा | साधकों के लिए ईष्ट आराधना, कुल देवी-देवता का पूजन, मंत्र सिद्धि अथवा जागृत करने, श्रीसूक्त, लक्ष्मी सूक्त,कनकधारा स्तोत्र, आदि का जप-पाठ करने के लिए उपयुक्त निशीथकाल का शुभसमय रात्रि 08 बजकर 43 मिनट से 10 बजकर 31 मिनट तक रहेगा !तांत्रिक जगत के लिए महानिशीथ काल रात्रि 10 बजकर 32 मिनट से मध्यरात्रि 01 बजकर 34 मिनट तक रहेगा | पं जयगोविन्द शास्त्री

सोमवार, 9 नवंबर 2015

आरोग्य शरीर के लिए करें धन्वंतरी की पूजा 'धनतेरस'
भगवान् विष्णु के अंशावतार एवं देवताओं के वैद्य भगवान धन्वन्तरि का प्राकट्य पर्व कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी को मनाया जाता है | पूर्वकाल में देवराज इंद्र के अभद्र आचरण के परिणामस्वरूप महर्षि दुर्वासा ने तीनों लोकों को श्रीहीन होने का श्राप दे दिया था जिसके कारण अष्टलक्ष्मी पृथ्वी से अपने लोक
चलीं गयीं | पुनः तीनोलोकों में श्री की स्थापना के लिए व्याकुल देवता त्रिदेवों के पास गए और इस संकट से उबरने का उपाय पूछा, महादेव ने समुद्रमंथन का सुझाव दिया जिसे देवताओं और दैत्यों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया | समुद्र मंथन की भूमिका में मंदराचल पर्वत को मथानी और नागों के राजा वासुकी को मथानी के लिए रस्सी बनाया गया | वासुकी के मुख की ओर दैत्य और पूंछ की ओर देवताओं को किया गया मंथन आरम्भ हुआ, समुद्रमंथन से चौदह प्रमुख रत्नों की उत्पत्ति हुई जिनमें चौदहवें रत्न के रूप में स्वयं भगवान् धन्वन्तरि प्रकट हुए जो अपने हाथों में अमृतकलश लिए हुए थे | भगवान् विष्णु ने इन्हें देवताओं का वैद्य एवं वनस्पतियों और औषधियों का स्वामी नियुक्त किया | इन्हीं के वरदान स्वरूप सभी वृक्षों-वनस्पतियों में रोगनाशक शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ | आजकल व्यापारियों ने धनतेरस का भी बाजारीकरण हो गया है और इसदिन को विलासिता पूर्ण वस्तुओं के क्रय का दिन घोषित कर रखा है जो सही नहीं है इसका कोई भी सम्बन्ध धन्वन्तरि से नहीं है ये आरोग्य और औषधियों के देव हैं न कि हीरे-जवाहरात या अन्य भौतिक वस्तुओं के |अतः इसदिन इनकी पूजा-आराधना अपने और परिवार के स्वस्थ शरीर के लिए करें क्योंकि संसार का सबसे बड़ा धन आरोग्य शरीर है | आयुर्वेद के अनुसार भी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति स्वस्थ शरीर और दीर्घायु से ही संभव है, शास्त्र भी कहते हैं कि 'शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम्' अर्थात धर्म का साधन भी निरोगी शरीर ही है तभी आरोग्य रुपी धन के लिए ही भगवान् धन्वन्तरि की पूजा आराधना की जाती है | ऐसा माना जाता है की इस दिन की आराधना प्राणियों को वर्षपर्यंत निरोगी रखती है | समुंद मंथन की अवधि के मध्य शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरी और अमावस्याको महालक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ | धन्वंतरी ने ही जनकल्याण के लिए अमृतमय औषधियों की खोज की थी | इन्हीं के वंश में शल्य चिकित्सा के जनक दिवोदास हुए महर्षि विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत उनके शिष्य हुए जिन्होंने आयुर्वेद का महानतम ग्रन्थ सुश्रुत संहिता की रचना की | पं जयगोविन्द शास्त्री

सोमवार, 28 सितंबर 2015

पितृपक्ष पर्व 28 सितंबर से
अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान एवं श्रद्धा प्रकटकर आशीर्वाद प्राप्ति का पवित्रपर्व श्राद्ध 28 सितंबर सोमवार से आरम्भ हो रहा है, इसदिन प्रतिपदा तिथि सुबह 08 बजकर 20 मिनट पर ही आरंभ हो रही है, अतः प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध इसीदिन दोपहर 11बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक के मध्य करना शुभ रहेगा | शास्त्रों-पुराणों में पितृों की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि पितृो वै जनार्दनः, पितृो वै वेदाः, पितृो वै ब्रह्मः, पितृ ही जनार्दन हैं, पितृ ही वेद है, पितृ ही ब्रह्म हैं, अतः जन्म-जन्मान्तर तक अनेकों योनियों में भटकते हुए जीव जब मनुष्य योनि में आता है तो उसे पितृरुपी जनार्दन के प्रतिश्राद्ध-तर्पण करने का अवसर मिलता है जिससे उसे वर्तमान के साथ-साथ भविष्य में भी होनेवाले जन्मों में उत्तम लोक और उत्तम योनि प्राप्त हो | जो मनुष्य वर्ष पर्यन्त दान-पुण्य, पूजा-पाठ आदि नहीं करते वै भी आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में केवल अपने पितृों का श्राद्ध-तर्पण करके ईष्टकार्यसिद्धि एवं उन्नति प्राप्त कर सकते हैं | एक वर्ष में बारह महीने की बारह अमावस्यायें, सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग के प्रारम्भ की चारों तिथियाँ, मनुवों के आरम्भ की चौदह मन्वादि तिथियाँ, बारह संक्रांतियां, बारह वैधृति योग, बारह व्यतिपात योग, पंद्रह महालय-श्राद्ध पक्ष की तिथियाँ, पांच अष्टका, पांच अन्वष्टका और पांच पूर्वेद्युह ये श्राद्ध करने के 96 अवसर हैं जिनमें मनुष्य अपने पूर्जवों के प्रति श्राद्ध तर्पण करके पितृदोष से मुक्ति पा सकता है | जिन जातकों की जन्मकुंडलियों में पितृदोष हो, उनके लिए तो यह अवसर वरदान की तरह है क्योंकि इन्हीं दिनों पितृ पृथ्वी पर पधारते हैं | श्राद्ध का समय आ गया है ऐसा विचार करके पितृ अपने-अपने कुलों में मन के सामान तीव्र गति से आ पहुचते हैं, और जिन ब्राह्मणों को श्राद्ध में भोजन कराया जाता है,उन्हीं के शरीर में प्रविष्ट होकर पितृगण भी भोजन करते हैं, उसके बाद अपने कुल के श्राद्धकर्ता को आशीर्वाद देकर पुनः पितृलोक चले जाते हैं | किसी भी माह की जिस तिथि में परिजन की मृत्यु हुई हो श्राद्धपक्ष में उसी तिथि के आने पर अपने पितृ का श्राद्ध करें | पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गयी हो उन नारियों का श्राद्ध नवमी तिथि में करें | एकादशी में वैष्णव सन्यासी का श्राद्ध, शस्त्र, आत्म हत्या, विष, वाहन दुर्घटना,सर्पदंश, ब्राह्मण श्राप ,वज्रघात, अग्नि से जले हुए, दंतप्रहार-पशु से आक्रमण, फांसी लगाकर मृत्य, ज्वरप्रकोप, क्षयरोग, हैजा, डाकुओं के मारे जाने से हुई मृत्यु वाले पूर्जवों का श्राद्ध चतुर्दशी को करें | जिन पूर्जवों की तिथि ज्ञात न हो एवं मृत्यु पश्च्यात अंतिम संस्कार न हुआ हो उनका श्राद्ध-तर्पण अमावस्या को करना चाहिए | सभी पितृों के स्वामी भगवान् विष्णु के शरीर के पसीने से तिल की और रोम से कुश की उतपत्ति हुई है, अतः तर्पण और अर्घ्य के समय तिल और कुश का प्रयोग करें |
 पं जय गोविन्द शास्त्री 

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

सिद्धि विनायक चतुर्थी 17 सितंबर को
सभी प्रकार की विपत्तियों का हरण करके धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करने वाले श्रीसिद्धि विनायक गणेश का जन्मदिन
भौदों शुक्लपक्ष चतुर्थी बृहस्पतिवार को मनाया जायेगा | गणेशभक्तों के लिए सबसे बड़ी खुशखबरी यह है कि इस वर्ष का जन्मदिन स्वयं गणेश के जन्म नक्षत्र स्वाति में ही पड़ रहा है जो अत्यंत दुर्लभ संयोग है, अतः इस वर्ष की विनायक आराधना का फल परम शुभकारी और कर्ज से मुक्ति दिलाने वाला सिद्ध होगा | गणेश सभी गणों, ॠद्धियों और सिद्धियों के स्वामी हैं जो सरल पूजा-पाठ से ही प्रसन्न होकर अपने भक्तों का अभीष्ट फल प्रदान करते हैं | पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पंचभूतों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश में पृथ्वी शिव, जल गणेश, तेज-अग्नि शक्ति, वायु सूर्य और आकाश विष्णु हैं इन पांच तत्वों के वगैर जीव-जगत की कल्पना नहीं की जा सकती | जल तत्व के अधिपति गणेश हर जीव में रक्त रूप में विराजते हुए चारों देवों सहित पंचायतन में पूज्य हैं जैसे श्रृष्टि का कोई भी शुभ-अशुभ कार्य जल के बिना पूर्ण नहीं हो सकता वैसे ही गणेश पूजन के बिना कोई भी जप-तप, अनुष्ठान आदि कर्म पूर्ण नहीं नहीं हो सकते | ज्योतिषशास्त्र में अश्विनी आदि सभी नक्षत्रों के अनुसार देवगण, मनुष्यगण और राक्षसगण इन तीनो गणों के ईश गणेश ही हैं | 'ग' ज्ञानार्थवाचक और 'ण' निर्वाणवाचक है 'ईश' अधिपति हैं अर्थात ज्ञान-निर्वाणवाचक गण के ईश गणेश ही परब्रह्म हैं | योग-शास्त्रीय साधना में शरीर में मेरुदंड के मध्य जो सुषुम्ना नाडी है, वह ब्रह्मरंध्र में प्रवेश करके मष्तिष्क के नाडी समूह से मिलजाती है इसका आरम्भ मूलाधार चक्र ही है इसी 'मूलाधार चक्र' को गणेश स्थान कहते हैं |गणेश्वरो विधिर्विष्णु: शिवो जीवो गुरुस्तथा | षडेते हंसतामेत्य मूलाधारादिषु स्थिताः | आध्यात्मिक भाव से विनायक जगत की आत्मा है सबके स्वामी हैं सबके ह्रदय की बात समझ लेने वाले सर्वज्ञ हैं ! इन्द्रियों के स्वामी होने से भी इन्हें गणेश कहा गया है | इनका सर हाथी का और वाहन मूषक है | ये पाश, अंकुश और वरमुद्रा धारण करते हैं पाश मोह का प्रतीक है जो तमोगुण प्रधान है अंकुश वृत्तियों का प्रतीक है जो रजोगुण प्रधान है वरमुद्रा सत्वगुण का प्रतीक है इनकी उपासना करके प्राणी तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण से ऊपर उठकर इनकी कृपा का पात्र बनता है | हम इस वर्ष की अति शुभफल कारी सिद्धिविनायक चतुर्थी का भक्ति-भाव से पूजन करके अपने सकल मनोरथ सिद्ध करसकते हैं | पं जयगोविन्द शास्त्री 

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

बृहस्पति का उदय, महंगाई पर नियंत्रण
देवगुरु बृहस्पति विगत माह 12 अगस्त को दोपहर 11 बजकर 54 मिनट पर अस्त हो गये थे जो आगामी 07 सितंबर सोमवार को दिन
के 03 बजकर 52 पर उदय हो रहे हैं | इनके उदय होने के साथ ही बढ़ रही महंगाई एवं बीमारियों में कमी आएगी, वर्षा के अच्छे आसार बनेंगें, जिससे किसानों को अधिक लाभ होगा किन्तु तेज हवाओं और चक्रवातीय/समुद्रीय तूफानों का खतरा भी बढेगा | गुरु के उदय होने का सर्वाधिक लाभ शेयर बाज़ार पर पड़ेगा जिसके फलस्वरूप हीरे-जवाहरात, सोने-चांदी तथा कमोडिटी सेक्टर्स के निवेशकों को भारी मुनाफा होगा | इन सेक्टर्स में निवेशकों का रुझान बढेगा जिसका प्रभाव देश के विदेशी मुद्राभंडार की वृद्धि के रूप में होगा | डालर के मुकाबले रुपये में भी मजबूती आयेगी | निफ्टी के टॉप 30 कंपनियों के शेयरों में भी भारी सुधार से बाज़ार में खरीदारी का माहौल बनेगा | शीघ्र ही निफ्टी सूचकांक 8000 {आठ हज़ार} का आंकड़ा भी पार कर लेगा | बैंकिंग एवं बीमा सेक्टर्स, आई टी, फार्मा, गैस, टेलिकॉम तथा भारी उद्योग के सेक्टर्स के निवेशकों को और भी जल्दी राहत के आसार बनेंगें | जिन जातकों के बृहस्पति वर्तमान समय में अशुभ गोचर में हैं या, जो इनकी महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशासे प्रभावित हैं उनके लिए के गुरु का उदय होना शुभ संकेत है | परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों अथवा प्रतियोगिताओं में बैठने वाले अन्य जातकों के लिए भी यह वरदान की तरह है | किसी भी जातक की जन्मकुंडली में गुरु छठें, आठवें और बारहवें भाव में अशुभ फलदायी होते हैं | जो जातक का गर्ग, गौतम एवं शांडिल्य गोत्र में ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए हों, वै यदि मांस-मदिरापान का सेवन कर रहे हों तो, ऐसे जातकों के त्रिकोण लग्न, पंचम एवं नवम् भाव/गोचर में भी से गुरु अशुभ फलदायी होते हैं | वर्तमान में सिंह राशिस्थ गुरु मीन राशि के छठें, मकर राशि के आठवें एवं कन्या राशि के बारहवें भाव में चल रहे हैं जिसके परिणाम स्वरूप इन जातकों को अधिक संयम और सावधानी बरतने की जरुरत है | पं जयगोविन्द शास्त्री 

शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

शिवशक्ति का कैलाश प्रस्थान दिवस 'श्रावण पूर्णिमा'
माहपर्यंत भगवान शिव के पृथ्वी पर भ्रमण और उन्हें समर्पित श्रावण माह का कल अंतिम दिन है, पूर्णिमा के दिन जब चन्द्र अपनी सम्पूर्ण कलाओं और सहस्रों शीतल रश्मियों से संसार को आच्छादित कर देते हैं, और माँ महालक्ष्मी पाताल लोक के राजा बलि के यहाँ से बलि को रक्षासूत्र बांधकर विष्णु को मुक्त करा लेती हैं तो भगवान् शिव माँ शक्ति और गणों के साथ कैलाश पर्वत की ओर प्रस्थान करते हैं | इसप्रकार मोक्षदायिक मायाक्षेत्र में श्रावण कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमापर्यंत शिव के निवास की यह अंतिम तिथि रहती है | इसदिन रुद्राभिषेक करना, पंचाक्षर मंत्र का जाप, जप-तप, पूजा-पाठ और दान्पुन्य विशेष महत्व रहता है | वैदिक ब्राह्मणों द्वारा इसदिन 'श्रावणी उपाकर्म' किया जाता हैं इसलिए वैदिक ब्राह्मण गण इसदिन प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में पवित्र नदी तालाब तीर्थ या देवालय पहुँच कर हेमाद्रिसंकल्प करते हैं | इस आध्यात्मिक विधान में षठकर्म, तीर्थों का आह्वाहन, संकल्प, पंचगव्य स्नान सहित शिखा सिंचन, नवीन यज्ञोपवीत धारण पश्च्यात विष्णु पूजन करना चाहिए | पुनः प्रजापिता ब्रह्मा, चारोंवेद और ऋषियों का पुरुष सूक्त के मंत्रों द्वारा आवाहन/स्तवन करना चाहिए | विधान पूर्ण होने पर आचार्य के हाथों रक्षावंधन बंधवाया जाता है | जिस स्थान पर सामूहिक व्यवस्था हो वहाँ सभी एक दूसरे को रक्षासूत्र बांधे | इसदिन ग्रामीण क्षेत्रों में कुल पुरोहित द्वारा रक्षा सूत्र बांधने का विधान है | सभी सनातनधर्मी ब्राह्मण अपनी वाणी की पवित्रता, सत्याचरण, मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेकर यज्ञोपवीत बदलते हैं | पूजनोपरान्त विष्णु-लक्ष्मी के दर्शन से सुख, और समृद्धि की प्राप्ति तो होती ही है साथ ही इस पूर्णिमा के दिन पर शिवलिंग पर शहद, और पंचामृत का लेप करने से प्राणी कर्ज सेमुक्ति पा लेता है विद्यार्थियों को इसदिन शिवालिंग पर मिश्री और दूध के अमृततुल्य मिश्रण का लेप करते हुए उत्तम विद्या की प्राप्ति हेतु प्रार्थना करना करना चाहिए |अविवाहित अथवा विवाह में विलंब हो रही महिलाओं को गन्ने के रस से अभिषेक करने चाहिए शिव-शक्ति की कृपा से उनके जीवन में उत्तम दाम्पत्य सुख की प्राप्ति होगी |    पं जयगोविन्द शास्त्री