Pt Jaigovind Shastri Astrologer
आयुः कर्म च वित्तं च विद्या निधनमेव च ! पञ्च एतानि विविच्यन्ते जायमानस्य देहिनः !!
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सोमवार, 21 नवंबर 2011
बुधवार, 16 नवंबर 2011
PT JAIGOVIND SHASTRI ASTROLOGER
अहिंसकस्य दान्तस्य धर्मार्जित धनस्य च ! नित्यं च नियमस्थस्य सदा सानु ग्रहा ग्रहाः !!
ग्रहाः पूज्या सदा रूद्र इच्छता विपुलं यशः !श्रीकामः शांतिकामो वा ग्रहयज्ञं समाचरेत !!
..... अहिंसक, जितेन्द्रिय, नियम में स्थित और न्याय से धन अर्जित करने वाले मनुष्यों पर सदा ग्रहों की कृपा बरसती रहती है ! यश ,धन, आरोग्य,उत्तम पद और संतानप्राप्ति तथा सभी तरह की परेशानियों से बचने के लिए ग्रहों की पूजा सदा करनी चाहिए ! क्यों कि ! ग्रहाः राज्यं प्रयच्छन्ति, ग्रहाः राज्यं हरन्ति च ! अर्थात -ग्रह अनुकूल हों तो राज्य दे देतें हैं,और प्रतिकूल होने पर तत्काल हरण भी कर लेते हैं !!
रविवार, 13 नवंबर 2011
पूर्व जन्म कृतं यत्तु पापं व पुण्यमेव वा ! इह जन्मनि भो देवि ! भुज्यते सर्वदेहिभिः !!
पुण्येन जायते विद्या पुण्येन जायते सुतः! पुण्येन सुंदरी नारी पुण्येन लभते श्रियम !!
कूष्म अंडम नारिकेलं च पञ्चरत्नम समन्वितम ! गंगामध्ये च दातव्यम ततः पाप क्षयो भवेत् !!
माता पार्वती को समझाते हुए भगवान् शिव कहते हैं, हे देवि ! मनुष्य ने जो पूर्व जन्म में कर्म (पाप-पुण्य) किया है, वही इस जन्म में उन्हें को भोगना पड़ता है ! पुण्य ही से विद्या,पुण्य ही से पुत्र और सुंदर स्त्री की प्राप्ति तथा पुण्य ही से अनेकों प्रकार की संपत्ति मिलती है ! सफेद कोंहड़ा और नारियल में पञ्च रत्न भरकर गंगा के मध्य में दान करे तो सब पाप नष्ट हो जायेंगे !!
पुण्यापुण्ये ही पुरुषः पर्यायेण समश्नुते ! भुन्जतश्च क्षयं याति पापं पुण्यमथापि वा !
न तु भोगादृते पुण्यं किंचित वा कर्म मानवं ! पावकं वा पुनात्याशु क्षयो भोगात प्रजायते !!
माता पार्वती को समझाते हुए भगवान् शिव कहते हैं, हे देवि ! पाप-पुण्य दोनों परिणाम फल अवश्यमेव मनुष्य को भोगने पड़ते हैं,और भोगने ही क्षय भी हो जाते हैं !पुण्य अथवा पाप कर्म का सुख-दुःख रूपी कर्म फल बिना भोगे मनुष्य को छुटकारा नहीं मिलता क्यों की भोग से ही पाप क्षय होता है इसे निश्चय जानो !!
यथा बाणप्रहाराणां वारणं कवचं स्मृतं ! तथा देवोपघातानां शान्तिर्भवति वारणं !!
अहिंसकस्य दान्तस्य धर्मार्जित धनस्य च ! नित्यं च नियमस्थस्य सदा सानु ग्रहा ग्रहाः !!
ग्रहाः पूज्या सदा रूद्र इच्छता विपुलं यशः !श्रीकामः शांतिकामो वा ग्रहयज्ञं समाचरेत !!
ब्रह्मा जी ने भगवान् रूद्र से कहा- हे देव ! जैसे शरीर में कवच पहन लेने से बाण नहीं लगते, वैसे ही ग्रह शान्ति करने से किसी प्रकार का कष्ट शेष नहीं रहपाता ! अहिंसक, जितेन्द्रिय, नियम में स्थित और न्याय से धन अर्जित करने वाले मनुष्यों पर सदा ग्रहों की कृपा बरसती रहती है ! यश ,धन, आरोग्य,उत्तम पद और संतानप्राप्ति तथा सभी तरह की परेशानियों से बचने के लिए ग्रहों की पूजा सदा करनी चाहिए ! क्यों कि ! ग्रहाः राज्यं प्रयच्छन्ति, ग्रहाः राज्यं हरन्ति च ! अर्थात -ग्रह अनुकूल हों तो राज्य दे देतें हैं,और प्रतिकूल होने पर तत्काल हरण भी कर लेते हैं !
यथा बाणप्रहाराणां वारणं कवचं स्मृतं ! तथा देवोपघातानां शान्तिर्भवति वारणं !!
अहिंसकस्य दान्तस्य धर्मार्जित धनस्य च ! नित्यं च नियमस्थस्य सदा सानु ग्रहा ग्रहाः !!
ग्रहाः पूज्या सदा रूद्र इच्छता विपुलं यशः !श्रीकामः शांतिकामो वा ग्रहयज्ञं समाचरेत !!
ब्रह्मा जी ने भगवान् रूद्र से कहा- हे देव ! जैसे शरीर में कवच पहन लेने से बाण नहीं लगते, वैसे ही ग्रह शान्ति करने से किसी प्रकार का कष्ट शेष नहीं रहपाता ! अहिंसक, जितेन्द्रिय, नियम में स्थित और न्याय से धन अर्जित करने वाले मनुष्यों पर सदा ग्रहों की कृपा बरसती रहती है ! यश ,धन, आरोग्य,उत्तम पद और संतानप्राप्ति तथा सभी तरह की परेशानियों से बचने के लिए ग्रहों की पूजा सदा करनी चाहिए ! क्यों कि ! ग्रहाः राज्यं प्रयच्छन्ति, ग्रहाः राज्यं हरन्ति च ! अर्थात -ग्रह अनुकूल हों तो राज्य दे देतें हैं,और प्रतिकूल होने पर तत्काल हरण भी कर लेते हैं !
अहिंसकस्य दान्तस्य धर्मार्जित धनस्य च ! नित्यं च नियमस्थस्य सदा सानु ग्रहा ग्रहाः !!
ग्रहाः पूज्या सदा रूद्र इच्छता विपुलं यशः !श्रीकामः शांतिकामो वा ग्रहयज्ञं समाचरेत !!
ब्रह्मा जी ने भगवान् रूद्र से कहा- हे देव ! जैसे शरीर में कवच पहन लेने से बाण नहीं लगते, वैसे ही ग्रह शान्ति करने से किसी प्रकार का कष्ट शेष नहीं रहपाता ! अहिंसक, जितेन्द्रिय, नियम में स्थित और न्याय से धन अर्जित करने वाले मनुष्यों पर सदा ग्रहों की कृपा बरसती रहती है ! यश ,धन, आरोग्य,उत्तम पद और संतानप्राप्ति तथा सभी तरह की परेशानियों से बचने के लिए ग्रहों की पूजा सदा करनी चाहिए ! क्यों कि ! ग्रहाः राज्यं प्रयच्छन्ति, ग्रहाः राज्यं हरन्ति च ! अर्थात -ग्रह अनुकूल हों तो राज्य दे देतें हैं,और प्रतिकूल होने पर तत्काल हरण भी कर लेते हैं !
जीवात्मा एवं परमात्मा में ही अन्तः करण की वृत्तिओं को स्थापित करलेना ही उत्तम योग है, अहिंसा, सत्य, अस्तेय,ब्रह्मचर्य,और अपरिग्रह ये पांच "यम" हैं,भोग और मोक्ष को प्रदान करने वाले शौच, संतोष, तप, स्वाद्ध्याय और ईश्वरआराधन ये "नियम" भी पांच ही होते हैं!!! इसी प्रकार दुर्भाग्य को जन्म देनेवाली और पुण्य को नष्ट करने वाली "हिंसा" के भी दस भेद हैं, उद्वेग डालना, संताप देना, रोगी बनाना, शरीर से रक्त निकालना,चुंगली करना, किसी की कामयाबी में रुकावट डालना ,किसी के छिपे रहस्यों को उजागर करना, दुसरे को सुख से वंचित करना, अकारण कैद करना और प्राणदंड देना ये सब हिंसा के ही प्रकार हैं !!
अत्यन्त दुष्टस्य कलेरयमेको महान गुणः ! कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्त बन्धः परं व्रजेत !!
दशवर्षेशु यत्पुन्यम क्रियते तु कृते युगे ! त्रेतायांमेकवर्षेंण तत्पुन्यम साध्यते नृभिः !!
द्वापरे तच्च मासेन तद्दिनेंन कलौ युगे !
इस अत्यंत दुष्ट कलियुग में सबसे महान गुण यह है, कि इस युग में भगवान् श्री कृष्ण के नाम-गुण का संकीर्तन करने से मनुष्य संसार बंधन से मुक्त हुआ परं पद प्राप्त कर लेता है! सत्ययुग मे दश वर्षों में जो पुण्य लाभ किया जाता है, उसी पुण्य को त्रेता में मनुष्य एक वर्ष में सिद्ध कर लेते है,वही द्वापर में एक माह और कलियुग में एक दिन में ही प्राप्त किया जा सकता है !
श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पाद सेवनम ! अर्चनं वन्दनं दास्यंसख्यमात्म निवेदनम"
सतयुग में भक्त शिरोमणि प्रहलाद ने नवधा भक्ति का प्रतिपादन इस प्रकार किया है !श्रवण,कीर्तन, स्मरण, पादसेवन,अर्चन, वंदन,दास्य,सख्य, और आत्मनिवेदनम भक्ति मार्ग के ये नौ सोपान हैं ! भक्ति मार्ग के इस चरम सोपान को प्राप्त करलेने के बाद प्राणी भक्त प्रहलाद,भक्त हनुमान, परम भक्तिन शबरी,भक्त और भक्त सूरदास जैसा बन जाता है,जिसके लिए स्वयं परमात्मा भी चिन्तनशील रहते हैं !
"" अश्वत्थाय वरेण्याय सर्वैश्वर्यदायिने ।अनन्तशिवरुपाय वृक्षराजाय ते नमः ।।
अर्थात - जो अनंत शिवस्वरुप हैं सभी प्रक्रार के एश्वर्य को देने वाले हैं, ऐसे वृक्षों के राजा पीपल को मै नमस्कार करता हूँ !! मित्रों ! भगवान् कृष्ण ने कहा है, वृक्षों में मै पीपल हूँ ! उनकी इसी वाणी का अनुशरण करते हुए वासुदेव कृष्ण के ही जन्म दिवस" कृष्ण जन्माष्टमी "पर दिल्ली में यमुना जी के आँचल में पीपल के पौधे का वृक्षारोपण करते - पं.जय गोविन्द शास्त्री
"" अश्वत्थाय वरेण्याय सर्वैश्वर्यदायिने ।अनन्तशिवरुपाय वृक्षराजाय ते नमः ।।
अर्थात - जो अनंत शिवस्वरुप हैं सभी प्रक्रार के एश्वर्य को देने वाले हैं, ऐसे वृक्षों के राजा पीपल को मै नमस्कार करता हूँ !! मित्रों ! भगवान् कृष्ण ने कहा है, वृक्षों में मै पीपल हूँ ! उनकी इसी वाणी का अनुशरण करते हुए वासुदेव कृष्ण के ही जन्म दिवस" कृष्ण जन्माष्टमी "पर दिल्ली में यमुना जी के आँचल में पीपल के पौधे का वृक्षारोपण करते - पं.जय गोविन्द शास्त्री
आरोग्यं भास्करादिच्छेय मिछ्येध्द्ताशनात ! ईश्वराज्ज्ञान नमन्विच्छेन्मोक्षमिच्छे ज्जनार्द्नात !!
दुर्गादिभिस्तथा रक्षां भैर्वाद्यैस्तु दुर्गमं ! विद्यासारं सरस्वत्या लक्ष्म्या चैश्वर्यवर्धनम !!
पार्वत्या चैव शौभाग्यं शच्या कल्याण संतति !स्कंदात प्रजाभिवृद्धिं च सर्वं चैव गणाधिपात !!
मूर्तिभेदा महेशस्य त एते यन्मयोदिता !!
अर्थात -सूर्य से आरोग्य की,अग्नि से श्री की, शिव से ज्ञान की,जनार्दन से मोक्ष की,दुर्गा आदि देवियों से रक्षा की,भैरव आदि देवता से सभी आपत्तियों से पार पाने की,सरस्वती से विद्या-तत्व,लक्ष्मी से धन-ऐश्वर्य बृद्धि की,पार्वती से सौभाग्य की,इन्द्राणी से कल्याण की,स्कंध से संतान-बृद्धि की और गणेश से सभी वस्तुओं की याचना करनी चाहिए ! ये सभी भगवान् शिव की ही विभिन्न मूर्तिया हैं !!
दुर्गादिभिस्तथा रक्षां भैर्वाद्यैस्तु दुर्गमं ! विद्यासारं सरस्वत्या लक्ष्म्या चैश्वर्यवर्धनम !!
पार्वत्या चैव शौभाग्यं शच्या कल्याण संतति !स्कंदात प्रजाभिवृद्धिं च सर्वं चैव गणाधिपात !!
मूर्तिभेदा महेशस्य त एते यन्मयोदिता !!
अर्थात -सूर्य से आरोग्य की,अग्नि से श्री की, शिव से ज्ञान की,जनार्दन से मोक्ष की,दुर्गा आदि देवियों से रक्षा की,भैरव आदि देवता से सभी आपत्तियों से पार पाने की,सरस्वती से विद्या-तत्व,लक्ष्मी से धन-ऐश्वर्य बृद्धि की,पार्वती से सौभाग्य की,इन्द्राणी से कल्याण की,स्कंध से संतान-बृद्धि की और गणेश से सभी वस्तुओं की याचना करनी चाहिए ! ये सभी भगवान् शिव की ही विभिन्न मूर्तिया हैं !!
जीवात्मा और परमात्मा में भेद है,जीवात्मा एक बार में एक ही जगह रह सकता है,पर परमात्मा सर्वव्यापी है ! जीवात्माएँ अनंत हैं किन्तु परमात्मा एक ही हैं ! जीवात्मा काम,क्रोध,मद,लोभ,राग,द्वेष,सुख -दुःख आदि गुणों को जानने वाली हैं !परमात्मा इससे परे केवल इसका साक्षी मात्र है ! प्राण, अपान, निमेष, उन्मेष, जीवन, मन,गति,इन्द्रिय, आत्मा के लिंग अर्थात कर्म और गुण हैं ! जीव व्याप्त है, ईश्वर व्यापक है ! जीवों के कर्तव्य अकर्तव्य कर्म ईश्वर नहीं करता स्वयं जीव ही करता है ! इस प्रकार आनंदमय शब्द जीवात्मा का वाचक नहीं हो सकता, वह परब्रह्म का ही वाचक है ! अतः परब्रह्म ही सम्पूर्ण आनंदमय है ! "हरिॐ तत्सत"
जीवात्मा परमात्मा से भिन्न है, इस भिन्नता का कारण उसकी अहंता, ममता तथा आशक्ति है | जिसके कारण वह परब्रह्म को भूलकर प्रकृति के भोगों की और आकर्षित होकर उसके फल भोगती है, किन्तु जब जीवात्मा का भोगों से वैराग्य हो जाता है तो वह प्रकृति से अलग होकर पुनः उस परब्रह्म में लीन हो जाती है,इसी को योग कहते हैं ! जबतक जीवात्मा प्रकृति से संयुक्त रहती है तबतक उसके जन्म-मृत्यु व दुखों का अंत नहीं होता किन्तु जब वह परमात्मा से मिल जाती है तो परमानन्द का अनुभव करती है,अतः परमात्मा ही आनंदमय है !
परमात्मा ने परम पिता के रूप हमें पांच ज्ञान इन्द्रियाँ,पांच कर्म इन्द्रियाँ और एक मन इन ग्यारह को देकर जीवात्मा को एकादशी की तरह पूर्ण बना दिया है ! पिता का स्थान आकाश से भी ऊँचा है और माता का पृथ्वी से,अतः पिता को परमात्मा के सामान माने- वही आप के संसार में आने का माध्यम बने और अच्छी तरह देश-विदेश में आप को पढ़ाया लिखाया,बड़े होने पर पिता ने अछे-बुरे की पहचान अथवा कार्य करने की पूर्ण स्वतंत्रा प्रदान की, बिजनेस करने के लिए धन आदि दिया,इतनी मदद करने पर भी यदि आप असफल रहते हैं,तो पिता को दोषी नही माना जासकता क्यों की फेलियर आप हैं पिता नहीं ! यही भूमिका परमात्मा की है, परमात्मा आप के फेलियर के जिम्मेवार नहीं,बल्कि आप के ही कर्म जिम्मेवार हैं ! ॐ तत्सत ॐ
!! श्रद्धया दीयते यस्मात तत श्राद्धं-अर्थात जो श्रद्धा से दिया जाय वही श्राद्ध है !! जो भी जीवात्मा अपने पितरों को भक्ति सहित श्राद्ध-तर्पण करके उन्हें तृप्त करता है,वै पितृ गण प्रसन्न होकर श्राद्ध करने वाले अपने परिवार को अनेकों प्रक्रार की समृधि,आयु-आरोग्य,संतान, ख्याति एवं स्वर्गादि प्रदान करते हैं ! ये पितृ गण हमेशा ही शीघ्र प्रसन्न होने वाले,शांत चित्त,पवित्रपरायण,प्रियवादी अपने भक्तों को सुख देनेवाले हैं !मनुष्य को अपनी शक्ति-सामर्थ्य के अनुसार श्राद्ध अवश्य करना चाहिए !!
!! मासे मासे शनौ वारे वृक्षे विष्णु स्वरूपिणी ! विधिवत पूजनं कुर्यात पूर्व पापं विशुद्ध्यति !! !! शनिवारे कृतं पूजा लक्ष्मी वसति सर्वदा ! क्रियते दीप दानं च ऋण मुक्तिः तदा भवेत !! अर्थात - जो जीवात्मा हर एक मास में शनिवार को विष्णु स्वरुप पीपल वृक्ष का बिधिवत पूजन करता है,वह जन्म-जन्मान्तर में किये हुए अपने पापों से मुक्ति पाकर विशुद्ध हो जाता है ! शास्त्र कहते है कि, शनिवार के दिन पीपल वृक्ष का दर्शन,स्पर्श अथवा पूजन करने से घर में लक्ष्मी का वास होता है, और शायंकाल में वृक्ष के समीप दिया जलाने से कर्ज से मुक्ति मिलतो है ! ध्यान रहे मित्रों -सूर्योदय अथवा सूर्यास्त से 72 मिनट पहले से लेकर 72 मिनट बाद तक कि अवधि ही पीपल वृक्ष की पूजा में श्रेष्ठ मानी गयी गयी है !!
मित्रों प्रणाम ! दीपावली पर कैसे करें माँ महालक्ष्मी की पूजा.? कैसे पायें क़र्ज़ से मुक्ति.? मान सम्मान की कैसे होगी रक्षा.? शिक्षा प्रतियोगिता में कैसे पायें बड़ी कामयाबी.? कैसे मिलेगी बेरोजगारी से मुक्ति >? आप की सभी समस्याओं का निदान है इस आलेख में जो आज ही अमर उजाला समाचार पत्र के श्रद्धा पेज पर, सभी संसकरणों में छपा है ! अगर आलेख पढ़ने में परेशानी हो रही हो तो कृपया इसे डाउन लोड करें फिर जितना चाहें बड़ा करके पढ़ें ! पं.जय गोविन्द शास्त्री
!! मित्रों प्रणाम ! मृत्यु लोक के न्यायाधीश भगवान् शनिदेव पहुचे तुला राशि में !! मृत्युलोक के दंडाधिकारी भगवान् शनि इस सदी में पहली बार अपनी उच्च राशि तुला में प्रवेश कर रहे हैं , इनके राशि परिवर्तन का प्रभाव आप पर कैसा रहेगा यह जानने के लिए आज ही पढ़े मेरा आलेख अमरउजाला समाचार पत्र के श्रद्धा पेज पर - पं. जय गोविन्द शास्त्री
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